"अरस्तु का विरेचन सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

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विरेचन का उल्लेख अरस्तू की रचनाओं में केवल दो स्थानों पर मिलता है। प्रथम उल्लेख उसके ‘पोयटिक्स’ (काव्यशास्त्र) ग्रंथ में, जहाँ ट्रैजेडी के स्वरूप की ओर संकेत किया गया है और दूसरा ‘राजनीतिक’ नामक ग्रंथ में जहाँ उन्होंने संगीत की उपयोगिता प्रतिपादित की है। इन स्थलों पर उन्होंने विरेचन शब्द का सूत्र रूप में एवं उसके स्वरूप की चर्चा की है। अरस्तू का कथन है- ‘‘संगीत का अध्ययन एक नहीं वरन् अनेक उद्देश्यों की सिद्धि के लिए होना चाहिए, अर्थात् शिक्षा के लिए विरेचन (शुद्धि) के लिए। संगीत से बौद्धिक आनन्द की भी उपलब्धि होती है। ..... धार्मिक रागों के प्रभाव से वे शान्त हो जाते हैं, मानों उनके आवेश का शमन और विरेचन हो गया हो।
 
इस प्रकार विरेचन से अभिप्राय शुद्धि से है। अरस्तू के ये विचार त्रासदी-विवेचन के संदर्भसन्दर्भ में फुटकर रूप में मिलते हैं। विशेष सुव्यवस्थितरूप से इनका सम्पादन नहीं किया गया है।
 
आधुनिक युग में अरस्तू के सीमित और अल्प शब्दों ने पूर्ण काव्य-शास्त्रीय सिद्धान्त का रूप धारण कर लिया है। अतः एक प्रश्न स्वाभाविकरूप से उठा कि करुणा और त्रास के उद्रेक तथा रेचन से अरस्तू का मूलतः क्या अभिप्राय था? इस संदर्भसन्दर्भ में अरस्तू के परवर्ती व्याख्याकारों ने विरेचन के भिन्न-भिन्न अर्थ और व्याख्याएँ प्रस्तुत कीं-
 
=== धर्मपरक अर्थ ===