"हत्ती": अवतरणों में अंतर

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बोगजकोइ की पट्टिकाओं पर प्राय: 200 पैरों के खत्ती कानून की धाराएँ खुदी हैं। साधारणत: खत्तियों की दंडनीति असूरी, बाबुली, यहूदी दंडनीति से कहीं मृदुल थी। प्राणदंड अथवा नाक कान काटने की सजा शायद ही कभी दी जाती थी। कुछ यौनापराध संबंधी दंड तो इतने नगण्य थे कि खत्तियों की आचारचेतना पर विद्वानों को संदेह होने लगता है। उस विधान का एक बड़ा अंश राष्ट्र के आर्थिक जीवन से संबंध रखता है। उससे प्रगट है कि वस्तुओं के मूल्य, नाप तौल के पैमाने, बटखरे आदि निश्चित कर लिए गए थे। कृषि और पशुपालन संबंधी प्रधान समस्याओं का उसमें आश्चर्यजनक मृदु हल खोजा गया है। उसमें कानून और न्याय के प्रति प्रकटित आदर वस्तुत: अत्यंत सराहनीय है। अनेक अभिलेखों में महार्ध धातुओं के प्रयोग, युद्धबंदियों के प्रबंध, चिकित्सक, शालिहोत्र आदि पर खत्ती में प्रचुर साहित्य उपलब्ध है। मध्यपूर्व में संभवत: पहले पहल अश्व का प्रयोग शुरु हुआ। उस दिशा में अश्वविज्ञान पर पहला साहित्य शायद खत्तियों के आर्य पड़ोसी मितन्नियों ने प्रस्तुत किया। उनसे खत्तियों ने सीखा फिर पड़ोसियों तथा उत्तरवर्ती सभ्यताओं को वे उसे सिखा गए।
 
खत्तियों के साहित्यभंडार में सबसे अधिक भाग धर्म का मिला है। खत्तियों के देवताओं की संख्या विपुल थी और प्राय: छह अन्याधारों से वे लिए गए थे। ऊपर संधिपत्रों पर देवसाक्ष्य का उल्लेख किया जा चुका है। इन्हीं संधिपत्रों पर देवताओं के नाम खुदे हैं जो सुमेरा, बाबुली, हुर्री, कस्सी, खत्ती और भारतीय हैं। इन देवताओं के अतिरिक्त खत्ती आकाश, पृथ्वी, पर्वतों, नदियों, कूपों, वायु और मेघों की भी आराधना करते थे, जैसा उनके इस धार्मिक साहित्य के संदर्भोंसन्दर्भों से प्रमाणित है।
 
पौराणिक आनुवृत्तिक साहित्य में प्राधान्य उनका है जो सुमेरी बाबुली से ले लिए गए हैं। खत्तियों में बाबुली आधार से अनूदित "गिल्गमेश" महाकाव्य बड़ा लोकप्रिय हुआ उस काव्य के अनेक खंड अक्कादी, खत्ती और हुर्री में लिखे बोगजकोइ के उस भंडार में मिले थे। हुर्री में लिखे "गिल्गमेश के गीत" तो पंद्रह से अधिक पट्टिकाओं पर प्राप्त हुए थे। खत्तियों से ही ग्रीकों ने गिल्गमेश का पुराण पाया। खत्तियों के उस धार्मिक साहित्य में अक्कादी साहित्य की ही भाँति सूत्र और गायन थे। मंदिरों आदि में होनेवाली यज्ञादि क्रियाओं को नर और नारी दोनों ही प्रकार के पुरोहित संपन्न करते थे। दोनों के नाम अनुष्ठानों में लिखे जाते थे। अनुष्ठान मंत्रदोष, प्रायश्चित्त आदि के संबंध के थे। अपनी संस्कृति के निर्माण में जितना योग अन्य संस्कृतियों से सर्वथा उदार भाव से खत्तियों ने लिया उतना संभवत: किसी और जाति ने नहीं। कोशनिर्माण का एक प्रयत्न उन्होंने ही अनेक भाषाओं के पर्याप्त एक साथ समानांत स्तंभों में लिखकर किया। विविध भाषाओं के समानांतर पर्यायों से ही भाषाविज्ञान की नींव की पहलीं ईंट रखी जा सकी। वह ईंट खत्तियों ने प्रस्तुत की। खत्तियों के अंतकाल में आर्य ग्रीकों (एकियाई दोरियाइ) के आक्रमण ग्रीस पर हुए और लघुएशिया पर भी उनका दबदबा धीरे धीरे बढ़ा जब उन्होंने त्राय का प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर नष्ट कर दिया।
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