"नवीकरणीय संसाधन": अवतरणों में अंतर
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विश्व में और भारत में भी जिस तेजी से वनों का दोहन हो रहा है और वनावरण घट रहा है, इन्हें सभी जगह नवीकरणीय की श्रेणी में रखना उचित नहीं प्रतीत होता। वन अंतरराष्ट्रीय दिवस के मौके पर वन संसाधन पर जारी आंकड़ों में [[खाद्य एवं कृषि संगठन]] (एफ॰ए॰ओ॰) के अनुसार वैश्विक स्तर पर वनों के क्षेत्रफल में निंरतर गिरावट जारी है और विश्व का वनों वाला क्षेत्र वर्ष 1990 से 2010 के बीच प्रतिवर्ष 53 लाख हेक्टेयर की दर से घटा है।<ref> [http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=84206 वैश्विक वन क्षेत्र में निरंतर गिरावट जारी: एफ॰ए॰ओ॰], बिजनेस स्टैण्डर्ड </ref> इसमें यह भी कहा गया है कि [[उष्णकटिबंधीय वन|उष्णकटिबंधीय वनों]] में सर्वाधिक नुकसान [[दक्षिण अमेरिका]] और [[अफ्रीका]] में हुआ है।
मौजूदा आंकलनों के अनुसार भारत में वन और वृक्ष क्षेत्र 78.29 मिलियन हेक्टेयर है, जो देश के भैगोलिक क्षेत्र का 23.81 प्रतिशत है। 2009 के आंकलनों की तुलना में, व्याख्यात्मक बदलावों को ध्यान में रखने के पश्चात देश के वन क्षेत्र में 367 वर्ग
वन संसाधनों का महत्व इसलिए भी है कि ये हमें बहुत से प्राकृतिक सुविधाएँ प्रदान करते हैं जिनके लिये हम कोई मूल्य नहीं प्रदान करते और इसीलिए इन्हें गणना में नहीं रखते। उदाहरण के लिये हवा को शुद्ध करना और सांस लेने योग्य बनाना एक ऐसी प्राकृतिक सेवा है जो वन हमें मुफ़्त उपलब्ध करते हैं और जिसका कोई कृत्रिम विकल्प इतनी बड़ी जनसंख्या के लिये नहीं है। वनों के क्षय से जनजातियों और आदिवासियों का जीवन प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है<ref>[http://pib.nic.in/newsite/hindirelease.aspx?relid=13588 वन स्थिति रिपोर्ट २०११], पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार </ref> और बाकी लोगों का अप्रत्यक्ष रूप से।
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