"शिया-सुन्नी विवाद": अवतरणों में अंतर
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'''शिया-सुन्नी विवाद''' [[इस्लाम]] के सबसे घातक लड़ाइयों में से एक है। इसकी शुरुआत इस्लामी पैग़म्बर [[मुहम्मद]] साहब की मृत्यु के बाद, सन ६३२ में, इस्लाम के उत्तराधिकारी पद की लड़ाई को लेकर हुई। मुहम्मद साहब के नेतृत्व में पूरा अरबी प्रायद्वीप एक मत और साम्राज्य के अधीन पहली बार आया था। इतने बड़े साम्राज्य के अधिकारी बनने की होड़ से इस मतभेद का जन्म हुआ। कुछ लोगों का कहना था कि मुहम्मद साहब ने अपने चचेरे भाई और दामाद अली को इस्लाम का वारिस बनाया है जबकि अन्य लोगों ने माना कि मुहम्मद साहब ने सिर्फ़ हज़रत अली का ध्यान रखने को कहा है और असली वारिस अबू बकर को होना चाहिए। जो लोग अली के उत्तराधिकार के समर्थक थे उन्हें [[शिया]] कहा गया जबकि अबू बकर के नेता बनाने के समर्थकों को [[सुन्नी]] कहा गया।
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