"कला": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
Dr.jagdish (वार्ता | योगदान) |
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कलाओं में कला, श्रेष्ठ-कला वह है [[चित्रकला]]। मनुष्य स्वभाव से ही अनुकरण की प्रवृत्ति रखता है। जैसा देखता है उसी प्रकार अपने को ढालने का प्रयत्न करता है। यही उसकी आत्माभिव्यंजना है। अपनी रंगों से भरी तूलिका से चित्रकार जन भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है तो दर्शक हतप्रभ रह जाता है। पाषाण युग से ही जो चित्र प्राइज़ होते रहे हैं ये मात्र एक विधा नहीं, अपितू ये मानवता के विकास का एक निश्चित सोपान प्रस्तुत करते हैं। चित्रों के माध्यम से आखेट करने वाले आदिम मानव ने न केवल अपने संवेगों को बल्कि रहस्यमय प्रवृत्ति और जंगल के खूंखार प्रवासियों के विरुद्ध अपने अस्तित्व के लिए किए गए संघर्ष को भी अभिव्यक्त किया है। धीरे-धीरे चित्रकला शिल्पकला सोपान चढ़ी। सिन्धुघाटी सभ्यता में पाए गए चित्रों में पशु-पक्षी मानवआकृति सुन्दर प्रतिमाएं, ज्यादा नमूने भारत की आदिसभ्यता की कलाप्रियता का द्योतक है।
[[अजन्ता]], बाध आदि के गुफा चित्रों की कलाकृतियों पूर्व बौद्धकाल के अन्तर्गत आती है। भारतीय कला का
[[मधुबनी शैली]], पहाड़ी शैली, तंजौर शैली, मुगल शैली, बंगाल शैली अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण आज जनशक्ति के मन चिहिन्त है। यदि भारतीय संस्कृति की मूर्ति कला व शिल्प कला के दर्शन करने हो तो दक्षिण के मन्दिर अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। जहां के मीनाक्षी मन्दिर, वृहदीश्वर मन्दिर, कोणार्क मन्दिर अपनी अनूठी पहचान के लिए प्रसिद्ध है।
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