"आपेक्षिकता सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

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द्रव्यमान का संबंध भौतिकी में दो प्रकार से आता है। किसी पिंड पर जब [[बल]] कार्य करता है तब पिंड का स्थान बदलता है और उसका [[वेग]] बदलता है। जब तक बल कार्य करता है तब तक पिंड को [[त्वरण]] मिलता है। यांत्रिकी के नियमों के अनुसार बल (F), पिंड का द्रव्यमान (m) और त्वरण (a) में निम्नलिखित संबंध है :
 
: ''''F = ma''' -- (१)
 
इस समीकरण में जो द्रव्यमान '''m''' है उसको जड़त्व या आश्रित (अथवा अवस्थितित्वीय) द्रव्यमान कहते हैं। द्रव्यमान का दूसरा संबंध [[न्यूटन]] के गुरुत्त्वीय क्षेत्र में आता है। न्यूटन द्वारा दिये गये गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के अनुसार यदि दो द्रव्यमान, '''m1''' तथा '''m2''', दूरी '''dr''' पर हों, तो उनके बीच में निम्नलिखित गुरुत्वाकर्षणीय बल '''F''' काम करेगा :
 
: '''F = G m1 m2 / r<sup>2</sup>''' -- (२)
 
इस समीकरण में '''G''' गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक है। यदि हम '''m1''' को [[पृथ्वी]] का द्रव्यमान समझें और '''m2''' को धरती के पास स्थित किसी अन्य पिंड का द्रव्यमान समझें तो यह समीकरण (२) द्रव्यमान '''m2''' का [[भार]] व्यक्त करेगा। न्यूटन की यांत्रिकी में [[गतिविज्ञान]] तथा गुरुत्वाकर्षण स्वतंत्र और भिन्न हैं, किंतु दोनों में ही द्रव्यमान का संबंध आता है। द्रव्यमान के इन दो स्वतंत्र तथा भिन्न विभागों में प्रयुक्त कल्पनाओं का एकीकरण आइंस्टाइन ने अपने सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत में किया। यह ज्ञात था कि जड़त्व पर आश्रित द्रव्यमान (समीकरण १) और गुरुत्वीय द्रव्यमान (समीकरण २) समान होते हैं। आइंस्टाइन ने द्रव्यमान की इस समानता का उपयोग करके गतिविज्ञान और गुरुत्वाकर्षण को एकरूप किया और सन् १९१५ ई. में व्यापक आपेक्षिकता सिद्धांत प्रस्तुत किया।
 
== इन्हें भी देखें ==