"के-पीजी सीमा": अवतरणों में अंतर

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'''के-पीजी सीमा''' (K–Pg boundary) या '''के-टी सीमा''' (K–T boundary) [[पृथ्वी]] पर मौजूद एक पतली [[भूविज्ञान|भूवैज्ञानिक​]] [[स्तरिकी|परत]] है। यह सीमा [[मध्यजीवी महाकल्प]] (<small>Mesozoic Era</small>, मीसोज़ोइक महाकल्प) के [[चाकमय कल्प]] (<small>Cretaceous Period</small>, क्रीटेशस काल) नामक अंतिम चरण के अंत और [[नूतनजीव महाकल्प]] (<small>Cenozoic Era</small>, सीनोज़ोइक महाकल्प) के पैलियोजीन कल्प (<small>Paleogene Period</small>) नामक प्रथम चरण की शुरुआत की संकेतक है। के-पीजी सीमा [[क्रीटेशस-पैलियोजीन विलुप्ति घटना]] के साथ सम्बन्धित मानी जाती है जिसमें विश्व भर के [[डायनासोर]] मारे गये और पृथ्वी की उस समय की लगभग ७५% [[वनस्पति]] व [[जानवर]] [[जाति (जीवविज्ञान)|जातियाँ]] हमेशा के लिये [[विलुप्त]] हो गई। इस सीमा की आयु आज से लगभग ६.६ करोड़ वर्ष पूर्व निर्धारित की गई है।<ref>{{cite book|author=Ogg, James G.; Gradstein, F. M; Gradstein, Felix M.|title=A geologic time scale 2004|publisher=Cambridge University Press|location=Cambridge, UK|year=2004|isbn=0-521-78142-6}}</ref>
 
== क्षुद्रग्रह प्रहार और महाविलुप्ति का प्रस्ताव ==
सन् १९८० में एक अध्ययन ने दुनिया भर की [[अवसादी शैल|परतदार शिलाओं]] पर जाँच करी और पाया कि उनमें के-पीजी सीमा वाली परत में अत्याधिक [[इरिडियम]] नामक धातु का संकेंद्रण (कॉन्सनट्रेशन​) था। यह धातु पृथ्वी की ऊपरी सतहों में कम ही मिलती है। पाया गया कि कई शिलाओं की के-पीजी सीमा में औसत से ३० गुना से लेकर १२० गुना इरिडियम का जमावड़ा उपस्थित था। इस जमावड़े का पृथ्वी पर स्वयं ही पैदा होने का कोई कारण ज्ञात​ नहीं है लेकिन इस से मिलता-जुलता इरिडीयम संकेंद्रण कई [[क्षुद्रग्रहों]] (ऐस्टरायडों) में मिलता है। वैज्ञानिकों ने पूर्ण विश्व की के-पीजी सीमा में बसे हुए इरिडियम की मात्रा का अनुमान लगाते हुए हिसाब लगाया कि उसे पृथ्वी पर लाने के लिये प्रहार करने वाला क्षुद्रग्रह कम-से-कम १० किमी का रहा होगा और उसके प्रहार ने १० [[भारतीय संख्या प्रणाली|नील]] (१०० ट्रिलियन) टन टीएनटी के ज़ोर का विस्फोट किया होगा। तुलना के लिये यह मानव द्वारा किये गये सबसे शक्तिशाली हाईड्रोजन बम के धमाके से २० लाख गुना अधिक है।<ref name="Alvarez">{{cite journal|title=Extraterrestrial cause for the Cretaceous–Tertiary extinction|author=Alvarez, LW, Alvarez, W, Asaro, F, and Michel, HV|year=1980|journal=Science|volume=208|issue=4448|pages=1095–1108|doi=10.1126/science.208.4448.1095|pmid=17783054|bibcode=1980Sci...208.1095A}}</ref>
 
इस प्रहार के कारण धूल का एक महान बादल पूरे विश्व पर फैल गया होगा, जिसमें [[गंधक के तेज़ाब]] की महीन बूंदे भी सम्मिलित रही होंगी। यह बादल कई वर्षों तक क़ायम रहा। इस धूल के कारण धरती पर पड़ने वाली सूरज की किरणों में अनुमानित २०% की कमी आई जिस से औसत तापमान में अत्यंत कमी आई। सौर-प्रकाश की कमी से पौधों में प्रकाश-संश्लेषण (फ़ोटोसिन्थसिस​) भी बहुत कम हुआ। पौधे मरे, फिर उन्हें खाने वाले प्राणी मरे और फिर उन प्राणियों को खाने वाले मांसाहारी जानवर मरे। साथ-ही-साथ जब वर्षा हुई तो उसमें तेज़ाब भी शामिल था। प्रहार के ज़ोर से बहुत से बड़े पत्थर भी वायुमंडल से बाहर अंतरिक्ष तक उछाले गए और फिर वापिस पृथ्वी पर तेज़ी से गिरे। अनुसंधान ने दिखाया है कि उस समय वायुमंडल में लगभग ३०% [[ऑक्सीजन]] था जो आज की तुलना में अधिक था। इस तेज़ गति से गिरते हुए मलबे ने अधिक ऑक्सीजन​ में आग पकड़ ली और पूरी पृथ्वी पर आकाश से जलते हुए मलबे की बारिश हुई। जब तक पृथ्वी लगभग १० वर्षों के बाद अपनी मामूली स्थिति में वापस पहुँच पाई और धूल बैठने के साथ आकाश से तेज़ाब भी धुलकर हट गया, तब तक विश्वभर के अधिकतर बड़े जीव विलुप्त हो चुके थे। डायनासोरों का युग समाप्त हो गया जिस से [[स्तनधारियों]] को उभरने का मौक़ा मिला।
 
== इन्हें भी देखें ==