"के-पीजी सीमा": अवतरणों में अंतर

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सन १९८० में [[नोबल पुरस्कार]] विजेता [[भौतिक विज्ञानी]] लुईस वाल्टर अल्वारेज़, उनके [[भूवैज्ञानिक|भू-विज्ञानी]] पुत्र वाल्टर अल्वारेज़, और रसायन विज्ञानी फ्रैंक असारो और हेलेन मिशेल ने अपने एक अध्ययन में दुनिया भर की [[अवसादी शैल|परतदार शिलाओं]] पर जाँच करी और पाया कि उनमें के-पीजी सीमा वाली परत में अत्याधिक [[इरिडियम]] नामक धातु का संकेंद्रण (कॉन्सनट्रेशन​) था। यह धातु पृथ्वी की ऊपरी सतहों में कम ही मिलती है। पाया गया कि कई शिलाओं की के-पीजी सीमा में औसत से ३० गुना से लेकर १२० गुना इरिडियम का जमावड़ा उपस्थित था। इस जमावड़े का पृथ्वी पर स्वयं ही पैदा होने का कोई कारण ज्ञात​ नहीं है क्यूंकि इरीडियम लोहे की तरफ आकर्षित होने वाला तत्व है इसलिए इसकी अधिकाँश मात्रा धरती के निर्मांण के समय ही कोर में मौजूद लोहे से आकर्षित हो के केन्द्र में चली गई। लेकिन इस से मिलता-जुलता इरिडीयम संकेंद्रण कई [[क्षुद्रग्रहों]] (ऐस्टरायडों) में मिलता है। वैज्ञानिकों ने पूर्ण विश्व की के-पीजी सीमा में बसे हुए इरिडियम की मात्रा का अनुमान लगाते हुए हिसाब लगाया कि उसे पृथ्वी पर लाने के लिये प्रहार करने वाला क्षुद्रग्रह कम-से-कम १० किमी का रहा होगा और उसके प्रहार ने १० [[भारतीय संख्या प्रणाली|नील]] (१०० ट्रिलियन) टन टीएनटी के ज़ोर का विस्फोट किया होगा। तुलना के लिये यह मानव द्वारा किये गये सबसे शक्तिशाली हाईड्रोजन बम के धमाके से २० लाख गुना अधिक है।<ref name="Alvarez">{{cite journal|title=Extraterrestrial cause for the Cretaceous–Tertiary extinction|trans_title=क्रेटैशियस-टर्शियरी के विलुप्ति का खगोलिय कारण|author=अल्वारेज़, एलडब्ल्यु, अल्वारेज़, डब्ल्यु, असारो, एफ, और मिशेल, एच वी|year=1980|journal=साइंस|volume=208|issue=4448|pages=1095–1108|doi=10.1126/science.208.4448.1095|pmid=17783054|bibcode=1980Sci...208.1095A}}</ref>
 
अल्वारेज़ के धूमकेतु की टक्कर वाले इस सिद्धांत के सबूत इस बात से भी सही प्रतीत होते हैं कि [[कॉन्ड्राइट]], [[उल्का पिंड]] और क्षुद्रग्रहों में मिलने वाले इरिडियम की भारी मात्रा जो कि लगभग ~455 अंश प्रति अरब है <ref>{{cite journal|author=डब्ल्यु. एफ. मैकडोनॉघ, एस. एस. सन|title=The composition of the Earth|=धरती का संयोजन|journal=केमिकल जियोलॉजी|volume=120|issue=3–4|pages=223–253|year=1995|doi=10.1016/0009-2541(94)00140-4}}</ref> धरती की उपरी परतों में मिलने वाले ~0.3 अंश प्रति अरब से कहीं ज्यादा है।<ref name="Alvarez"/> के-पीजी सीमा वाली परत में पाए जाने वाले [[क्रोमियम]] के <abbr title ="isotopic anomalies">समस्थानिक असंगतियाँ</abbr> कार्बनमय कॉन्ड्राइटों से बने क्षुद्रग्रहों और उल्कापिंडों के समान हैं।  [[:en: Shocked quartz|Shocked quartz]] [[en:Shocked quartz]] के कण, [[:en: tektite|tektite]] [[en:tektite]] शीशे की गोलियाँ जो कि टक्कर को इंगित करते हैं भी के-पीजी सीमा में भारी मात्रा में पाए जाते हैं, खासकर कैरेबियन द्वीपों के आसपास। यह सारे मिट्टी की एक परत में समाहित और गुथे हुए हैं जिसे अल्वारेज़ और साथियों ने दुनिया भर में इस भीषण टक्कर से फैला मलबा माना है।<ref name="Alvarez"/>
 
इस प्रहार के कारण धूल का एक महान बादल पूरे विश्व पर फैल गया होगा, जिसमें [[गंधक के तेज़ाब]] की महीन बूंदे भी सम्मिलित रही होंगी। यह बादल कई वर्षों तक क़ायम रहा। इस धूल के कारण धरती पर पड़ने वाली सूरज की किरणों में अनुमानित २०% की कमी आई जिस से औसत तापमान में अत्यंत कमी आई। सौर-प्रकाश की कमी से पौधों में प्रकाश-संश्लेषण (फ़ोटोसिन्थसिस​) भी बहुत कम हुआ। पौधे मरे, फिर उन्हें खाने वाले प्राणी मरे और फिर उन प्राणियों को खाने वाले मांसाहारी जानवर मरे। साथ-ही-साथ जब वर्षा हुई तो उसमें तेज़ाब भी शामिल था। प्रहार के ज़ोर से बहुत से बड़े पत्थर भी वायुमंडल से बाहर अंतरिक्ष तक उछाले गए और फिर वापिस पृथ्वी पर तेज़ी से गिरे। अनुसंधान ने दिखाया है कि उस समय वायुमंडल में लगभग ३०% [[ऑक्सीजन]] था जो आज की तुलना में अधिक था। इस तेज़ गति से गिरते हुए मलबे ने अधिक ऑक्सीजन​ में आग पकड़ ली और पूरी पृथ्वी पर आकाश से जलते हुए मलबे की बारिश हुई। जब तक पृथ्वी लगभग १० वर्षों के बाद अपनी मामूली स्थिति में वापस पहुँच पाई और धूल बैठने के साथ आकाश से तेज़ाब भी धुलकर हट गया, तब तक विश्वभर के अधिकतर बड़े जीव विलुप्त हो चुके थे। डायनासोरों का युग समाप्त हो गया जिस से [[स्तनधारियों]] को उभरने का मौक़ा मिला। <ref>{{cite book|author=Ocampo, A,ए. Vajdaओकैम्पो, Vवी. &वज्दा Buffetaut,और इ. Eबुफेटॉट|title=Unravelling the Cretaceous–Paleogene (KT) Turnover, Evidence from Flora, Fauna and Geology in Biological Processes Associated with Impact Events (Cockell, C, Gilmour, I & Koeberl, C, editors)|publisher=SpringerLinkस्प्रिंगर लिंक|year=2006|pages=197–219|isbn=978-3-540-25735-6257356|url=http://www.springerlink.com/content/vw75014157p2p278/|accessdate=2007-06-17}}</ref>
 
== इन्हें भी देखें ==