"विश्वनाथ प्रताप सिंह": अवतरणों में अंतर

छो रोबोट:{{authority control}} जोड़ रहा है
पंक्ति 36:
1989 का लोकसभा चुनाव पूर्ण हुआ। कांग्रेस को भारी क्षति उठानी पड़ी। उसे मात्र 197 सीटें ही प्राप्त हुईं। विश्वनाथ प्रताप सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को 146 सीटें मिलीं। भाजपा और वामदलों ने राष्ट्रीय मोर्चे को समर्थन देने का इरादा ज़ाहिर कर दिया। तब भाजपा के पास 86 सांसद थे और वामदलों के पास 52 सांसद। इस तरह राष्ट्रीय मोर्चे को 248 सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो गया। वी. पी. सिंह स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बता रहे थे। उन्हें लगता था कि राजीव गांधी और कांग्रेस की पराजय उनके कारण ही सम्भव हुई है। लेकिन चन्द्रशेखर और देवीलाल भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शरीक़ हो गए। अब विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी दूर ख़िसकती हुई नज़र आने लगी। ऐसे में यह तय किया गया कि वी. पी. सिंह की प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी होगी और चौधरी देवीलाल को उपप्रधानमंत्री बनाया जाएगा। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सादगी का चोला धारण करके अपनी चालें चली थीं। वह जनता के सामने आम आदमी बने लेकिन हृदय से कुटिल चाणक्य थे। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने सिखों के घाव पर मरहम रखने के लिए स्वर्ण मन्दिर की ओर दौड़ लगाई।
वी. पी. सिंह ने राजीव गांधी और कांग्रेस पार्टी के भ्रष्टाचार का ख़ुलासा करने का वादा किया था, लेकिन वह किसी भी आरोप को साबित नहीं कर सके। तब लोगों को एहसास हुआ कि वे छले गए हैं। उस समय तक राजीव गांधी की मृत्यु हो चुकी थी।
 
==विश्वनाथ प्रताप सिंह के विवादास्पद निर्णय==
व्यक्तिगत तौर पर विश्वनाथ प्रताप सिंह बेहद कुटिल स्वभाव के थे और प्रधानमंत्री के रूप में उनकी छवि एक कमजोर और राजनैतिक दूरदर्शिता के अभाव से ग्रस्त व्यक्ति की थी। उनकी इन्हीं खामियों ने कश्मीर में आतंकवादियों के हौसले बुलंद कर रखे थे। इसके अलावा उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशों को मान देश में सवर्ण और अन्य पिछड़े वर्ग जैसी दो नई समस्याएं पैदा कर दी। सरकारी नौकरियों और संस्थानों में आरक्षण के प्रावधान ने कई युवाओं के भविष्य को अंधकार में धकेल दिया। कितने ही युवा आत्मदाह के लिए मजबूर हो गए । वी.पी सिंह की इस भयंकर भूल ने समाज को कई भागों में विभाजित कर दिया । उनके द्वारा लिए गए गलत निर्णयों ने राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को हर कदम पर असफल साबित कर दिया । भारत की राजनीति में उन्हें एक सफल प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखा जा सकता । मंडल कमीशन की सिफारिशों के कारण ही विहार और उत्तर प्रदेश राज्य जातीय वीमारी से ग्रस्त राज्य हैं जहां मेधा का सम्मान नहीं है। <ref>http://politics.jagranjunction.com/2011/08/09/former-prime-minister-vishwa-nath-pratap-singh/</ref>
 
== निधन ==