"मीर तक़ी मीर": अवतरणों में अंतर
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==जीवन==
इनका जन्म [[आगरा]] (अकबरपुर) मे हुआ था । उनका बचपन अपने पिता की देख रेख मे बीता । उनके प्यार और करुणा के जीवन मे महत्त्व के प्रति नजरिये का मीर के जीवन पे गहरा प्रभाव पर जिसकी झलक उनके शेरो मे भी देखने को मिलती है | पिता के मरणोपरांत, ११ की वय मे,
उस समय शाही दरबार में फ़ारसी शायरी को अधिक महत्व दिया जाता था । मीर तक़ी मार को उर्दू में शेर कहने का प्रोत्साहन अमरोहा के सैयद सआदत अली ने दिया । २५-२६ साल की उम्र तक ये एक दीवाने शायर के रूप में ख्यात हो गए थे । १७४८ में इन्हें मालवा के सूबेदार के बेटे का मुसाहिब बना दिया गया । लेकिन १७६१ में एक बार फ़िर भारत पर आक्रमण हुआ । इसबार बारी थी अफ़गान सर्गना अहमद शाह अब्दाली (दुर्रानी) की । वो नादिर शाह का ही सेना पति था । [[पानीपत की तीसरी लड़ाई]] में मराठे हार गए । दिल्ली को फिर बरबादी के दिन देखने पड़े । लेकिन इस बार बरबाद दिल्ली को भी वे अपने सीने से कई दिनों तक लगाए रहे । [[अहमद शाह अब्दाली]] के दिल्ली पर हमले के बाद वह [[अशफ - उद - दुलाह]] के दरबार मे [[लखनऊ]] चले गये । अपनी जिन्दगी के बाकी दिन उन्होने लखनऊ मे ही गुजारे ।
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