"मीर तक़ी मीर": अवतरणों में अंतर

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==जीवन==
इनका जन्म [[आगरा]] (अकबरपुर) मे हुआ था । उनका बचपन अपने पिता की देख रेख मे बीता । उनके प्यार और करुणा के जीवन मे महत्त्व के प्रति नजरिये का मीर के जीवन पे गहरा प्रभाव पर जिसकी झलक उनके शेरो मे भी देखने को मिलती है | पिता के मरणोपरांत, ११ की वय मे, वो आगरा छोर कर [[दिल्ली]] आ गये । पिताजी के मरने के समय इनके उपर ३०० रुपयों का कर्ज था और पैतृक सम्पत्ति के नाम पर कुछ किताबें । १७ साल की उम्र में वे दिल्ली आ गए । बादशाह के दरबार में १ रुपया वजीफ़ा मुकर्रर हुआ । इसको लेने के बाद वे वापस आगरा आ गए । १७३९ में फ़ारस के नादिरशाह के भारत पर आक्रमण के दौरानसमसामुद्दौला मारे गए और इनका वजीफ़ा बन्द हो गया । इन्हें आगरा भी छोड़ना पड़ा और वापस दिल्ली आए । अब दिल्ली उजाड़ थी और कहा जाता है कि नादिर शाह ने अपने मरने की झूठी अफ़वाह पैलाने के बदले में दिल्ली में एक ही दिन में २०-२२००० लोगों को मार दिया था और भयानक लूट मचाई थी ।
 
उस समय शाही दरबार में फ़ारसी शायरी को अधिक महत्व दिया जाता था । मीर तक़ी मार को उर्दू में शेर कहने का प्रोत्साहन अमरोहा के सैयद सआदत अली ने दिया । २५-२६ साल की उम्र तक ये एक दीवाने शायर के रूप में ख्यात हो गए थे । १७४८ में इन्हें मालवा के सूबेदार के बेटे का मुसाहिब बना दिया गया । लेकिन १७६१ में एक बार फ़िर भारत पर आक्रमण हुआ । इसबार बारी थी अफ़गान सर्गना अहमद शाह अब्दाली (दुर्रानी) की । वो नादिर शाह का ही सेना पति था । [[पानीपत की तीसरी लड़ाई]] में मराठे हार गए । दिल्ली को फिर बरबादी के दिन देखने पड़े । लेकिन इस बार बरबाद दिल्ली को भी वे अपने सीने से कई दिनों तक लगाए रहे । [[अहमद शाह अब्दाली]] के दिल्ली पर हमले के बाद वह [[अशफ - उद - दुलाह]] के दरबार मे [[लखनऊ]] चले गये । अपनी जिन्दगी के बाकी दिन उन्होने लखनऊ मे ही गुजारे ।