"नागार्जुन (प्राचीन दार्शनिक)": अवतरणों में अंतर

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"माध्यमिक कारिका" के अतिरिक्त उनकी नि:संदिग्ध रचनाएँ निम्नलिखित हैं - युक्तिशतिका, शून्यतासप्तति, प्रतीत्यसमुत्पादहृदय, महायानविंशिका, विग्रहव्यावर्तनी, प्रज्ञापारमिताशास्त्र की तथा दशभूमि विभाषाशास्त्र की टीकाएँ। तिब्बती भाषा में "प्रमाणविघटन" (जिसमें न्यायशास्त्र के षोडश पदार्थों का खंडन किया गया है) तथा चीनी भाषा में उपाय कौशल्य हृदय (जिसका अनुवादकाल 472 ई. तथा कार्यविषय शास्त्रार्थ है) नागार्जुन की ही रचनाएँ मानी जाती है।
 
नागार्जुन की रचनाएँ अपनी शैली तथा युक्ति के लिए अत्यंत प्रख्यात हैं। इन रचनाओं में प्रसिद्धि पानेवाले ग्रंथ ये हैं -
नागार्जुन की रचनाएँ अपनी शैली तथा युक्ति के लिए अत्यंत प्रख्यात हैं। इन रचनाओं में प्रसिद्धि पानेवाले ग्रंथ ये हैं - (1) प्रमाणविघटन अथवा प्रमाणविध्वंसन, जिसमें गौतम के षोडश पदार्थों के रूप तथा लक्षण का खंडन किया गया है। संस्कृत मूल उपलब्ध नहीं है केवल तिब्बती में इसके मूल तथा टीका के अनुवाद प्राप्य है। (2) उपायकौशल्यहृदय शास्त्र, जिसमें प्रतिवादी के ऊपर विजय पाने के लिए जाति, निग्रह स्थान आदि शास्त्रार्थ के न्याय परिचित उपायों का विशिष्ट वर्णन किया गया है। (3) विग्रह व्यावर्तनी, 72 कारिकाओं में निबद्ध यह ग्रंथ मूल संस्कृत तथा तिब्बती अनुवाद दोनों में उपलब्ध है। वण्र्य-विषय है गौतम सम्मत प्रमाण का खंडन तथा तदुपरांत स्वाभिमत शून्यवाद का। युक्तियों से मंडन। छोटा होने पर भी बौद्धन्याय की जानकारी के लिए यह महत्वपूर्ण रचना है। (4) युक्तिषष्टिका, जिसके कतिपय श्लोक बौद्ध ग्रंथों में प्रमाण की दृष्टि से उद्घृत किए गए हैं। (5) सुहृल्लेख, इसका ऊपर उल्लेख किया गया है। मूल संस्कृत के अभाव में इसके वण्र्य विषय की जानकारी हमें इसके तिब्बती अनुवाद से ही होती है। नागार्जुन ने इस पत्र के द्वारा अपने सुहृद् यज्ञश्री शातवाहन को परमार्थ तथा व्यवहार की शिक्षा दी है। बौद्ध साहित्य में इस प्रकार की रचनाएँ उपलब्ध हैं जिनके द्वारा बौद्ध आचार्यों ने अपने किसी मान्य शिष्य को अथवा तत्वजिज्ञासु को बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का उपदेश दिया। (6) चतु:स्तव, तथागत की प्रशस्त स्तुति में लिखे गए चर स्तोत्रों का संग्रह जिसमें निरुपम स्तव तथा परमार्थ स्तव मूल संस्कृत में उपलब्ध हैं, परंतु अन्य दो अचिंत्य स्तव और लोकातीत स्तव - केवल तिब्बती अनुवाद में प्राप्य है। इस ग्रंथ में नागार्जुन की सरस काव्यप्रतिभा का पूरा परिचय पाठक को मिल जाता है। (7) नागार्जुन के कीर्तिमंदिर का स्तंभ स्थानीय महनीय दार्शनिक ग्रंथ है "माध्यमिक कारिका"। नागार्जुन के पांडित्य, व्यापक दार्शनिकता, उद्भट ताक्रिकता तथा नवीन कल्पना का भांडागार है यह उदात्त ग्रंथ जिसे आचार्य भव्य कृत प्रज्ञाप्रदीप - तथा आचार्य चंद्रकीर्ति रचित "प्रसन्नपदा" जैसी प्रौढ़ वृत्तियों के द्वारा अलंकृत होने का गौरव प्राप्त है। 27 प्रकरणों में विभक्त यह ग्रंथ कारिकाओं में ही निबद्ध है। यह प्रसन्नपदा के साथ मूल अनुवाद में लेनिनग्राद से नागराक्षरों में प्रकाशित भी हुआ है।
 
(1) प्रमाणविघटन अथवा प्रमाणविध्वंसन, जिसमें गौतम के षोडश पदार्थों के रूप तथा लक्षण का खंडन किया गया है। संस्कृत मूल उपलब्ध नहीं है केवल तिब्बती में इसके मूल तथा टीका के अनुवाद प्राप्य है।
 
(2) उपायकौशल्यहृदय शास्त्र, जिसमें प्रतिवादी के ऊपर विजय पाने के लिए जाति, निग्रह स्थान आदि शास्त्रार्थ के न्याय परिचित उपायों का विशिष्ट वर्णन किया गया है।
 
(3) विग्रह व्यावर्तनी, 72 कारिकाओं में निबद्ध यह ग्रंथ मूल संस्कृत तथा तिब्बती अनुवाद दोनों में उपलब्ध है। वण्र्य-विषय है गौतम सम्मत प्रमाण का खंडन तथा तदुपरांत स्वाभिमत शून्यवाद का। युक्तियों से मंडन। छोटा होने पर भी बौद्धन्याय की जानकारी के लिए यह महत्वपूर्ण रचना है।
 
(4) युक्तिषष्टिका, जिसके कतिपय श्लोक बौद्ध ग्रंथों में प्रमाण की दृष्टि से उद्घृत किए गए हैं।
 
(5) सुहृल्लेख, इसका ऊपर उल्लेख किया गया है। मूल संस्कृत के अभाव में इसके वण्र्य विषय की जानकारी हमें इसके तिब्बती अनुवाद से ही होती है। नागार्जुन ने इस पत्र के द्वारा अपने सुहृद् यज्ञश्री शातवाहन को परमार्थ तथा व्यवहार की शिक्षा दी है। बौद्ध साहित्य में इस प्रकार की रचनाएँ उपलब्ध हैं जिनके द्वारा बौद्ध आचार्यों ने अपने किसी मान्य शिष्य को अथवा तत्वजिज्ञासु को बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का उपदेश दिया।
 
(6) चतु:स्तव, तथागत की प्रशस्त स्तुति में लिखे गए चर स्तोत्रों का संग्रह जिसमें निरुपम स्तव तथा परमार्थ स्तव मूल संस्कृत में उपलब्ध हैं, परंतु अन्य दो अचिंत्य स्तव और लोकातीत स्तव - केवल तिब्बती अनुवाद में प्राप्य है। इस ग्रंथ में नागार्जुन की सरस काव्यप्रतिभा का पूरा परिचय पाठक को मिल जाता है।
 
(7) नागार्जुन के कीर्तिमंदिर का स्तंभ स्थानीय महनीय दार्शनिक ग्रंथ है "माध्यमिक कारिका"। नागार्जुन के पांडित्य, व्यापक दार्शनिकता, उद्भट ताक्रिकता तथा नवीन कल्पना का भांडागार है यह उदात्त ग्रंथ जिसे आचार्य भव्य कृत प्रज्ञाप्रदीप - तथा आचार्य चंद्रकीर्ति रचित "प्रसन्नपदा" जैसी प्रौढ़ वृत्तियों के द्वारा अलंकृत होने का गौरव प्राप्त है। 27 प्रकरणों में विभक्त यह ग्रंथ कारिकाओं में ही निबद्ध है। यह प्रसन्नपदा के साथ मूल अनुवाद में लेनिनग्राद से नागराक्षरों में प्रकाशित भी हुआ है।
 
==नागार्जुन का शून्यवाद==