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[[यज्ञ]] में नर बलि की तैयारी शुरू हुई, चार पुरोहितों को बुलाया गया। अब शुन:शेप को बलि स्तंभ से बांधना था। लेकिन इसके लिए उन चारों में से कोई तैयार नहीं हुआ, क्योंकि शुन:शेप [[ब्राह्मण]] था। तब अजीगर्त और सौ गायों के बदले खुद ही अपने बच्चे को यज्ञ स्तंभ से बांधने को तैयार हो गया। इसके बाद शुन:शेप को बलि देने की बारी आई। लेकिन पुरोहितों ने फिर मना कर दिया। ब्राह्माण की हत्या कौन करे? तब अजीगर्त और एक सौ गायों के बदले अपने बेटे को काटने के लिए भी तैयार हो गया। जब शुन:शेप ने देखा कि अब मुझे बचाने वाला कोई नहीं है, तो उसने [[ऊषा]] देवता का स्तवन शुरू किया। प्रत्येक [[ऋचा]] के साथ शुन:शेप का एक-एक बंधन टूटता गया और अंतिम ऋचा के साथ न केवल शुन:शेप मुक्त हो गया, बल्कि राजा हरिश्चंद भी श्राप मुक्त हो गए। इसी के साथ बालक शुन:शेप, ऋषि शुन:शेप बन गया, क्योंकि वह उसके लिए रूपांतरण की घड़ी थी।
 
कुछ और विद्वानो के अनुसार शुन:शेप कौशिको के कुल मे उतपन्न महान तपस्वी विश्वामित्र ( विश्वरथ ) व विश्वमित्र के शत्रु शाम्बर की पुत्री उग्र की खोई हुयी सन्तान था जिसे भरतो (कौशिको ) के डर से लोपमुद्रा ने अजीतगर्त के पास छिपा दिया था | भरतो ने उग्र को मार दिया |
== बाहरी कड़ियाँ==
*[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5222962.cms शुन:शेप का विलक्षण आख्यान]