"चमोली जिला": अवतरणों में अंतर

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हेमकुंड को स्न्रो लेक के नाम से भी जाना जाता है। यह समुद्र तल से 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां बर्फ से ढके सात पर्वत हैं, जिसे हेमकुंड पर्वत के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त तार के आकार में बना गुरूद्वारा जो इस झील के समीप ही है सिख धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। यहां विश्‍व के सभी स्थानों से हिन्दू और सिख भक्त काफी संख्या में घूमने के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरू गोविन्द सिंह जी, जो सिखों के दसवें गुरू थे, यहां पर तपस्या की थी। यहां घूमने के लिए सबसे अच्छा समय जुलाई से अक्टूबर है।
 
=== गोपेश्‍वर ===
चक्रप्रयाग वर्णन एवं श्री सिद्धपीठ श्री सिद्धेश्वर महादेव कथा
{{main|गोपेश्वर}}
मंगलाचरण
गोपेश्‍वर शहर में तथा इसके आस-पास बहुत सारे मंदिर है। यहां के प्रमुख आकर्षण केन्दों में पुराना शिव मंदिर, वैतामी कुंड आदि है।
शिव तनयवरिश्ठं सर्व कल्याणं मूर्तिम्,
It is the District Headquarter of Chamoli District..Till 1971, the district Headquarter oc Chamoli was in Chamoli..but in 1971, due to flood in Alakanand River, the chamoli washed away and it was shifted to Gopeshwar....it is a beautiful place..
परसु कमल हस्तं सोभितम मोदकेन।
अरूण कुसुम मालं व्याललम्बोदरं च,
मम ह्दय निवासं श्री गणेष नमामि।।
सर्वप्रथम ऋद्धि एवं सिद्धि जिनकी दो भार्या है। और संतोशी माता जिनकी पुत्री है लक्ष्य ओर लाभ जिनके सकल गुण मंडित दो पुत्र भक्तों का मनोरथ पूर्ण करने को कल्प वृक्ष है। जिनको मोदक और खांड प्रिय है। वह गणेष जी अपने गणों के साथ कुटुम्ब भर को मंगलकारी हो।
जिनके कंठ में कराल विश और मस्तक में गंगा जल बाम अंग में हिमालय की कन्या पार्वती भवानी भर्या रूप से विद्यामान है नन्दी स्कंद आदि अपने गणों से अधिश्टित प्रभु जो चक्रतीर्थ के स्वामी है। उन्ही प्रभु सिद्धेष्वर महादेव एवं अपने गुरू की हम वन्दना कर कथा प्रारम्भ कर रहे है तो महादेव से विनती है कि हमारी सोच को मानव कल्याण हेतु अग्रसर करने की कृपा एवं आषिर्वाद प्रदान करें।
षिव रहस्य
तारक ब्रह्ां परमं षिव इत्यक्षरद्धयम्।
नैतस्मादपरं किंचित तारकं ब्रह्ां सर्वथा।।
 
‘षिव’ यह दो अक्षर वाला नाम ही परब्रह्म स्वरूप एवं तारक है, इससे भिन्न और कोई दूसरा तारक नही है। अतः जिसकी जिव्हा पर सदैव कल्याणप्रद षिव का नाम रहता है उसका ब्रह्म तथा अन्तर दोनो षुद्ध हो जाते है। इस प्रकार से वह षिव सायुज्य प्राप्त करता है। जो मनुश्य किसी तीर्थ की मिटृ से षिवलिंग बनाकर उसका सविधि पूजन करता है। वह षिव स्वरूप हो जाता है। जो मनुश्य तीर्थ में भरम गोबर या बालू का षिव लिंग बनाकर एक बार भी उसका विधि सहित पूजन कर लेता है वह दस हजार कल्प एक स्वर्ग में निवास करता है। षिवलिंग का सविधि पूजन करने से मनुश्य, सन्तान, धन धान्य, विद्या, सदबुद्धि, दीर्घायु, और मोक्ष को पाता है। जो मनुश्य षिव षिव का उच्चारण करते हुए प्राण त्याग करता है। वह अपने करोडों जन्मों के पापों से मुक्त होकर ‘षिव लोक’ को पाता है।
 
=== पंच प्रयाग ===