"आनन्द केंटिश कुमारस्वामी": अवतरणों में अंतर
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== जीवनवृत्त ==
इनका जन्म कोलुपित्या, [[कोलंबो]] ([[श्रीलंका]]) में 22 अगस्त 1877 को हुआ था। उनके पिता सर मुतु कुमारस्वामी प्रथन [[हिंदू]] थे जिन्होंने 1863 ई. में [[इंग्लैंड]] से बैरिस्टरी पास की थी। वे [[पालि]] के विद्वान थे। उन्होने मिस एलिजाबेथ क्ले नामक अंग्रेज महिला से विवाह किया था। इस विवाह के चार ही वर्ष बाद वे दिवंगत हो गए।
तीन वर्ष श्रीलंका में रहकर उन्होंने 'सीलोन सोशल रिफ़ार्मेशन सोसाइटी' का संगठन किया और यूनिवर्सिटी आंदोलन का नेतृत्व किया। 1906 में [[लंदन]] से डी. एस-सी. की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत वे [[ललित कला|ललित कलाओं]] की ओर झुके और भारत तथा दक्षिणपूर्वी एशिया का भ्रमणकर प्राचीन मूर्तियों और चित्रों का अध्ययन किया। विज्ञान के विचक्षण विद्यार्थी होकर एवं लंका के मिनरालाजिकल सर्वे का सर्वोच्च पद छोड़ उन्होंने अपनी विशिष्ट अभिरुचि [[ललितकला]] के प्रति जागृत की और आज उस दिशा में उनका प्रयत्न इतना गहरा और सिद्ध है कि किसी को गुमान तक नहीं होता कि उनका संबंध [[विज्ञान]] से भी हो सकता था।
संसार में बहुत कम विद्वान ऐसे हुए हैं जिनकी प्रतिभा इतनी बहुमुखी रही हो जितनी आनंद कुमारस्वामी की थी। उनकी खोज दर्शन, पराविद्या, धर्म, मूर्ति और चित्रकला, भारतीय साहित्य, इस्लामी कला, संगीत, विज्ञान आदि के विविध क्षेत्रों में लब्धप्रतिष्ठ हुई। प्रत्येक क्षेत्र में जिस मौलिकता का उन्होंने परिचय दिया वह अन्यत्र दुर्लभ है। [[उपनिषद|उपनिषदों]] के भावतत्व का उन्होंने निरूपण कर कला के संदर्भ में उसकी जो अभिव्यंजना की वह सर्वथा नया दृष्टिकोण था। 1910 में [[कोलकाता|कलकत्ते]] की इंडियन सोसाइटी ऑव ओरिएंटल आर्ट के तत्वावधान में उन्होंने [[मुगल
== कृतियाँ ==
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