"भारत में राजभत्ता": अवतरणों में अंतर

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==भारत में राजभत्ते की समाप्ति==
 
नव स्वतंत्र [[भारत]] में राजभत्ते पर आम राय नकारात्मक थी, साथ ही उस समय की आर्थिक स्थिती के मद्देनज़र इस व्यवस्था को बहुमूल्य धन के व्यर्थ व्यय के रूप में देखा जाता था। साथइसके हीअलावा शाही ख़िताबों की आधिकारिक मान्यता को भी पूर्णतः असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता था। विशेश भत्तों एवं राजकिय उपादियों के उन्मूलन का प्रस्याव [[संसद]] में सबसे पहले 1969१९६९ में लाया गया था, जब उसे [[राज्य सभा]] की स्वीकृती केवल 1 मत से नहीं मिली थी। तत्कालीन प्रधानमंत्रीइंदिरा[[भारत के प्रधानमंत्री|प्रधानमंत्री]] [[इंदिरा गांधी]] द्वारा सारे नागरिकों के लिये सामान अधिकार एवं सरकारी धन का व्यर्थ व्यय का हवाला देते हुए इसे दोबारा 1971१९७१ में लाया गया और 26वें'''२६वें संविधानिक संशोधन''' के रूप में पारित कर दिया गया। इस संशोधन के बाद राजभत्ता और राजकिय उपादियों का भारत से सदा के लिये अंत हो गया और साथ ही अंत हो गया [[भारतवर्ष]] में हज़ारों सालों से चले आ रहे [[राजतंत्र]] के आखरी बचे अवशेषों का भी| इस विधेयक के पारित होन का कई पूर्व राजवंशों ने विरोध करते हुए अदालतों में याचिका दयर की, पर सारी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया। कई राजवंशियों ने 1971१९७१ के चुनावों में खड़े होने का फ़ैसला किया, परंतू किसी को भी सफ़लता प्राप्त नहीं हुई।
 
==इनहें भी देखें==
*[[ब्रिटिश भारत में रियासतें]]
*[[राजभत्ता]]
 
==संदर्भ==
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