"कन्नड़ भाषा": अवतरणों में अंतर

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|map=[[चित्र:Kannadaspeakers.png|center|250px]]<center><small>भारत में निवासी कन्नड़ भाषी</center></small>
}}
'''कन्नड''' ([[कन्नड]] : ಕನ್ನಡ|ಕನ್ನಡ)<ref name="googlebooks_jaimini">[http://www.archive.org/details/jaiminibharataa00sandgoog].[जैमिनी भारत: प्रसिद्ध कन्नड़कन्नड काव्य, अनुवाद एवं टीका सहित (१८५२)].[२०१०-११-१३].</ref> [[भारत]] के [[कर्नाटक]] राज्य में बोले जानेवाली [[भाषा]] है और कर्नाटक की [[राजभाषा]] है। यह भारत के सबसे ज़्यादाअधिक प्रयोग की जाने वाली भाषाओं में से एक है। ४.५० करोड़ लोग कन्नड भाषा प्रयोग करते हैं।<ref name=census /> ये भाषा एन्कार्टा के अनुसार विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली ३० भाषाओं की सूची में २७वें स्थान पर आती है।<ref name="encarta_lang_10million">''[http://encarta.msn.com/media_701500404/Languages_Spoken_by_More_Than_10_Million_People.html १ करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएं]''. [[एन्कार्टा]]. [http://www.webcitation.org/query?id=1257013011437361 Archived] 2009-10-31.</ref> ये [[द्रविड़ भाषा-परिवार]] में आती है पर इसमें [[संस्कृत]] से भी बहुत शब्द हैं। कन्नड भाषा इस्तेमाल करनेवाले इसको विश्वास से 'सिरिगन्नड' बोलते हैं। कन्नड भाषा कुछ २५०० साल से उपयोग में है। कन्नड लिपि कुछ १९०० साल से उपयोग में है। कन्नड अन्य द्रविड़ भाषाओं की तरह है। [[तेलुगु]], [[तमिल]] और [[मलयालम]] इस भाषा से मिलतेजुलते है। [[संस्कृत]] भाषा से बहुत प्रभावित हुई यह भाषा में संस्कृत में से बहुत सारे शब्द वही अर्थ से उपयोग किया जाता है। कन्नड भारत की २२ आधिकारिक भाषाओं में से एक है।<ref name="official">{{cite web|url=http://dpal.kar.nic.in/26%20of%201963%20(E).pdf|format=PDF|title=कर्नाटक आधिकारिक भाषा अधिनियम|work= संसदीय मामलों एवं विधि का आधिकारिक जालस्थल |publisher= कर्नाटक सरकार |accessdate= २९ जुलाई २००७}}</ref>
 
== कन्नड तथा कर्नाटक शब्दों की व्युत्पत्ति ==
कन्नड तथा कर्नाटक शब्दों की व्युत्पत्ति के संबंध में यदि किसी विद्वान् का यह मत है कि "कंरिदुअनाडु" अर्थात् "काली मिट्टी का देश" से कन्नड शब्द बना है तो दूसरे विद्वान् के अनुसार "कपितु नाडु" अर्थात् "सुगंधित देश" से "कन्नाडु" और "कन्नाडु" से "कन्नड" की व्युत्पत्ति हुई है। कन्नड साहित्य के इतिहासकार आर.नरसिंहाचार ने इस मत को स्वीकार किया है। कुछ वैयाकरणों का कथन है कि कन्नड़ [[संस्कृत]] शब्द "कर्नाट" का तद्भूव रूप है। यह भी कहा जाता है कि "कर्णयो अटति इति कर्नाटक" अर्थात जो कानों में गूँजता है वह कर्नाटक है।
 
प्राचीन ग्रंथों में कन्नड, कर्नाट, कर्नाटक शब्द समानार्थ में प्रयुक्त हुए हैं। [[महाभारत]] में कर्नाट शब्द का प्रयोग अनेक बार हुआ है (''कर्नाटकश्च कुटाश्च पद्मजाला: सतीनरा:'', सभापर्व, 78, 94; ''कर्नाटका महिषिका विकल्पा मूषकास्तथा'', भीष्मपर्व 58-59)। दूसरी शताब्दी में लिखे हुए तमिल "शिलप्पदिकारम्" नामक काव्य में कन्नड भाषा बोलनेवालों का नाम "करुनाडर" बताया गया है। [[वराहमिहिर]] के [[बृहत्संहिता]], सोमदेव के '''[[कथासरित्सागर]]''' गुणाढय की पैशाची "बृहत्कथा" आदि ग्रंथों में भी कर्नाट शब्द का बराबर उल्लेख मिलता है।
 
[[अंग्रेजी]] में कर्नाटक शब्द विकृत होकर कर्नाटिक (Karnatic) अथवा केनरा (Canara), फिर केनरा से केनारीज़ (Canarese) बन गया है। उत्तरी भारत की हिंदी तथा अन्य भाषाओं में कन्नड़ शब्द के लिए कनाडी, कन्नडी, केनारा, कनारी का प्रयोग मिलता है।
 
आजकल कर्नाटक तथा कन्नड शब्दों का निश्चित अर्थ में प्रयोग होता है – [[कर्नाटक]] प्रदेश का नाम है और "कन्नड" भाषा का।
हरे क्रिश्ना
 
== कन्नड भाषा तथा लिपि ==
{{मुख्य|कन्नड लिपि}}
[[चित्र:6th century Kannada inscription in cave temple number 3 at Badami.jpg|thumb|right|प्राचीन कन्नड़ शिलालेख, [[५७८]] ई. [[बादामी]]-[[चालुक्य वंश]] काळीन, जो [[बादामी के गुफा चित्र]] सं० ३ में मिले हैं।]]
[[द्रविड़ भाषा परिवार]] की भाषाएँ '''पंचद्राविड़''' भाषाएँ कहलाती हैं। किसी समय इन पंचद्राविड भाषाओं में कन्नड, तमिल, तेलुगु, गुजराती तथा मराठी भाषाएँ सम्मिलित थीं। किंतु आजकल पंचद्राविड़ भाषाओं के अंतर्गत कन्नड़, तमिल, तेलुगु, मलयालम तथा तुलु मानी जाती हैं। वस्तुत: [[तुलु]] कन्नड की ही एक पुष्ट बोली है जो दक्षिण कन्नड जिले में बोली जाती है। तुलु के अतिरिक्त कन्नड की अन्य बोलियाँ हैं–कोडगु, तोड, कोट तथा बडग। कोडगु कुर्ग में बोली जाती है और बाकी तीनों का नीलगिरि जिले में प्रचलन है। [[नीलगिरि जिला]] [[तमिलनाडु]] राज्य के अंतर्गत है।
 
[[रामायण]]-[[महाभारत]]-काल में भी कन्नड बोली जाती थी, तो भी ईसा के पूर्व कन्नड का कोई लिखित रूप नहीं मिलता। प्रारंभिक कन्नड का लिखित रूप [[शिलालेख|शिलालेखों]] में मिलता है। इन शिलालेखों में [[हल्मिडि]] नामक स्थान से प्राप्त शिलालेख सबसे प्राचीन है, जिसका रचनाकाल 450 ई. है। सातवीं शताब्दी में लिखे गए शिलालेखों में बादामि और [[श्रवण बेलगोल]] के शिलालेख महत्वपूर्ण हैं। प्राय: आठवीं शताब्दी के पूर्व के शिलालेखों में गद्य का ही प्रयोग हुआ है और उसके बाद के शिलालेखों में काव्यलक्षणों से युक्त पद्य के उत्तम नमूने प्राप्त होते हैं। इन शिलालेखों की भाषा जहाँ सुगठित तथा प्रौढ़ है वहाँ उसपर संस्कृत का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। इस प्रकार यद्यपि आठवी शताब्दी तक के शिलालेखों के आधार पर कन्नड में गद्य-पद्य-रचना का प्रमाण मिलता है तो भी कन्नड के उपलब्ध सर्वप्रथम ग्रंथ का नाम "कविराजमार्ग" के उपरांत कन्नड में ग्रंथनिर्माण का कार्य उत्तरोत्तर बढ़ा और भाषा निरंतर विकसित होती गई। कन्नड भाषा के विकासक्रम की चार अवस्थाएँ मानी गई हैं जो इस प्रकार है :
 
# अतिप्राचीन कन्नड ([[आठवीं शताब्दी]] के अंत तक की अवस्था),