"आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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==प्रयोगवाद-नयी कविता युग की कविता==
दूसरे विश्वयुध्द के पश्चात संसार भर में घोर निराशा तथा अवसाद की लहर फैल गई। साहित्य पर भी इसका प्रभाव पड़ा। 'अज्ञेय' के संपादन में १९४३ में 'तार सप्तक' का प्रकाशन हुआ। तब से हिंदी कविता में [[प्रयोगवादी युग]] का जन्म हुआ ऐसी मान्यता है। इसी का विकसित रूप '[[नयी कविता']] कहलाता है। दुर्बोधता, निराशा, कुंठा, वैयक्तिकता, छंदहीनता के आक्षेप इस कविता पर भी किए गए हैं। वास्तव में नयी कविता नयी रुचि का प्रतिबिंब है। [[अज्ञेय]], [[गिरिजाकुमार माथुर]], [[प्रभाकर माचवे]],[[भारतभूषण अग्रवाल]],[[मुक्तिबोध]],[[शमशेर बहादुर सिंह]], [[धर्मवीर भारती]],[[जगदीशनरेश गुप्तमेहता]],[[रघुवीर सहाय]], [[जगदीश गुप्त]], [[सर्वेश्वर दयाल सक्सेना]], [[कुंवर नारायण]],[[केदार नाथ सिंह]] आदि इस धारा के मुख्य कवि हैं।
 
इस प्रकार आधुनिक हिंदी खड़ी बोली कविता ने भी अल्प समय में उपलब्धि के उच्च शिखर सर किए हैं। क्या प्रबंध काव्य, क्या मुक्तक काव्य, दोनों में हिंदी कविता ने सुंदर रचनाएं प्राप्त की हैं। गीति-काव्य के क्षेत्र में भी कई सुंदर रचनाएं हिंदी को मिली हैं। आकार और प्रकार का वैविध्य बरबस हमारा ध्यान आकर्षित करता है। संगीत-रूपक, गीत-नाटय वगैरह क्षेत्रों में भी प्रशंसनीय कार्य हुआ है। कविता के बाह्य एवं अंतरंग रूपों में युगानुरूप जो नये-नये प्रयोग नित्य-प्रति होते रहते हैं, वे हिंदी कविता की जीवनी-शक्ति एवं स्फूर्ति के परिचायक हैं।