"खुदीराम बोस": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Khudiram Bose 1905 cropped.jpg|thumb|right|150px250px|ज्वलन्त युवा क्रान्तिकारी '''खुदीराम बोस''' का(१९०५ रेखाचित्रमें)]]
 
'''खुदीराम बोस''' ([[बांग्ला]]: ক্ষুদিরাম বসু, [[अंग्रेजी]]: Khudiram Bose, [[मलयालम]]: ഖുദീരാം ബോസ്, [[मराठी]]: खुदीराम बोस,; [[जन्म]]: १८८९ - [[मृत्यु]] : १९०८) भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र १९ साल की उम्र में [[हिन्दुस्तान]] की आजादी के लिये [[फाँसी]] पर चढ़ गये। कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि खुदीराम से पूर्व १७ जनवरी १८७२ को ६८ कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय १३ वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था। उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नम्बर ५०वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने [[लुधियाना]] के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढी कसकर पकड ली और तब तक नहीं छोडी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गये बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था। (देखें सरफरोशी की तमन्ना भाग ४ पृष्ठ १३)
 
== जन्म व प्रारम्भिक जीवन ==
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== क्रान्ति के क्षेत्र में ==
स्कूल छोडनेछोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और [[वन्दे मातरम्]] पैफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। [[१९०५]] में [[बंग भंग|बंगाल के [[विभाजन]] (बंग - भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।
 
== राजद्रोह के आरोप से मुक्ति ==
[[चित्र:Bengali revolutionary Khudiram Bose under guard..jpg|right|thumb|300px|खुदीराम बसु अंग्रेज सिपाहियों की गिरफ्त में]]
फरवरी १९०६ में मिदनापुर में एक औद्योगिक तथा कृषि प्रदर्शनी लगी हुई थी। प्रदर्शनी देखने के लिये आसपास के प्रान्तों से सैंकडों लोग आने लगे। बंगाल के एक क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ नामक ज्वलंत पत्रक की प्रतियाँ खुदीरामने इस प्रदर्शनी में बाँटी। एक पुलिस वाला उन्हें पकडने के लिये भागा। खुदीराम ने इस सिपाही के मुँह पर घूँसा मारा और शेष पत्रक बगल में दबाकर भाग गये। इस प्रकरण में राजद्रोह के आरोप में सरकार ने उन पर अभियोग चलाया परन्तु गवाही न मिलने से खुदीराम निर्दोष छूट गये।