"भक्ति आन्दोलन": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 4:
 
== इतिहास ==
भक्ति आन्दोलन का आरम्भ दक्षिण भारत में [[आलवार सन्त|आलवारों]] एवं [[नायनार सन्त|नायनारों]] से हुआ जो कालान्तर में (८०० ई से १७०० ई के बीच) उत्तर भारत सहित सम्पूर्ण [[दक्षिण एशिया]] में फैल गया।
इस हिन्‍दू क्रांतिकारी अभियान के नेता [[शंकराचार्य]] थे जो एक महान विचारक और जाने माने दार्शनिक रहे। इस अभियान को [[चैतन्‍य महाप्रभु]], [[नामदेव]], [[तुकाराम]], [[जयदेव]] ने और अधिक मुखरता प्रदान की। इस अभियान की प्रमुख उपलब्धि मूर्ति पूजा को समाप्‍त करना रहा।
 
भक्ति आंदोलन के नेता [[रामानंद]] ने राम को भगवान के रूप में लेकर इसे केन्द्रित किया। उनके बारे में बहुत कम जानकारी है, परन्‍तु ऐसा माना जाता है कि वे 15वीं शताब्‍दी के प्रथमार्ध में रहे। उन्‍होंने सिखाया कि भगवान राम सर्वोच्‍च भगवान हैं और केवल उनके प्रति प्रेम और समर्पण के माध्‍यम से तथा उनके पवित्र नाम को बार - बार उच्‍चारित करने से ही मुक्ति पाई जाती है।
 
[[चैतन्‍य महाप्रमुमहाप्रभु]] एक पवित्र हिन्‍दू भिक्षु और सामाजिक सुधार थे तथा वे सोलहवीं शताब्‍दी के दौरान [[बंगाल]] में हुए। भगवान के प्रति प्रेम भाव रखने के प्रबल समर्थक, भक्ति योग के प्रवर्तक, चैतन्‍य ने ईश्‍वर की आराधना श्रीकृष्‍ण के रूप में की।
 
श्री [[रामनुजाचार्यरामानुजाचार्य]], [[भारतीय दर्शन|भारतीय दर्शनशास्‍त्री]] थे और उन्‍हें सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण वैष्‍णव संत के रूप में मान्‍यता दी गई है। रामानंद ने उत्तर भारत में जो किया वही रामानुज ने दक्षिण भारत में किया। उन्‍होंने रुढिवादी कुविचार की बढ़ती औपचारिकता के विरुद्ध आवाज उठाई और प्रेम तथा समर्पण की नींव पर आधारित वैष्‍णव विचाराधारा के नए सम्‍प्रदायक की स्‍थापना की। उनका सर्वाधिक असाधारण योगदान अपने मानने वालों के बीच जाति के भेदभाव को समाप्‍त करना।
 
बारहवीं और तेरहवीं शताब्‍दी में भक्ति आंदोलन के अनुयायियों में भगत [[नामदेव]] और संत [[कबीर दास]] शामिल हैं, जिन्‍होंने अपनी रचनाओं के माध्‍यम से भगवान की स्‍तुति के भक्ति गीतों पर बल दिया।
पंक्ति 18:
प्रथम सिक्‍ख गुरु और सिक्‍ख धर्म के प्रवर्तक, [[गुरु नानक]] जी भी निर्गुण भक्ति संत थे और समाज सुधारक थे। उन्‍होंने सभी प्रकार के जाति भेद और धार्मिक शत्रुता तथा रीति रिवाजों का विरोध किया। उन्‍होंने ईश्‍वर के एक रूप माना तथा हिन्‍दू और मुस्लिम धर्म की औपचारिकताओं तथा रीति रिवाजों की आलोचना की। गुरु नानक का सिद्धांत सभी लोगों के लिए था। उन्‍होंने हर प्रकार से समानता का समर्थन किया।
 
सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्‍दी में भी अनेक धार्मिक सुधारकों का उत्‍थान हुआ। [[वैष्‍णव सम्‍प्रदाय]] के राम के अनुयायी तथा कृष्‍ण के अनुयायी अनेक छोटे वर्गों और पंथों में बंट गए। राम के अनुयायियों में प्रमुख संत कवि [[तुलसीदास]] थे। वे अत्‍यंत विद्वान थे और उन्‍होंने भारतीय दर्शन तथा साहित्‍य का गहरा अध्‍ययन किया। उनकी महान कृति '[[रामचरितमानस]]' जिसे जन साधारण द्वारा 'तुलसीकृत रामायण' कहा जाता है, हिन्‍दू श्रृद्धालुओंश्रद्धालुओं के बीच अत्‍यंत लोकप्रिय है। उन्‍होंने लोगों के बीच श्री राम की छवि सर्वव्‍यापी, सर्व शक्तिमान, दुनिया के स्‍वामी और परब्रह्म के साकार रूप से बनाई।
 
कृष्‍ण के अनुयायियों ने 1585 ईसवी में हरिवंश के अंतर्गत राधा बल्‍लभी पंथ की स्‍थापना की। [[सूरदास]] ने [[ब्रजभाषा]] में ''सूर सरागर'' की रचना की, जो श्री कृष्‍ण के मोहक रूप तथा उनकी प्रेमिका राधा की कथाओं से परिपूर्ण है।