"महात्मा रामचन्द्र वीर": अवतरणों में अंतर

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'''महात्मा रामचन्द्र वीर ''' (जन्म १९०९ - मृत्यु २००९) एक यशस्वी लेखक, कवि तथा ओजस्वी वक्ता थे।और उन्होंनेधार्मिक देशनेता तथाथे। धर्मउन्होंने के'विजय लिए बलिदान देने वाले हिन्दू हुतात्माओं का इतिहास लिखा।पताका', 'हमारी गोमाता', 'वीर रामायण' (महाकाव्य), 'हमारा स्वास्थ्य' जैसी कई पुस्तकें लिखलिखीं। करभारत उन्होंनेके साहित्य-सेवास्वतन्त्रता में भी योगदान दिया। वीर जी महाराज ने देश की स्वाधीनताआंदोलन, मूक-प्राणियोंगोरक्षा तथा गोमाताअन्य कीविविध रक्षाआन्दोलनों तथामें हिन्दू-हितों के लिए 28कई बार जेल यातनाएँ सहन की।गये।
विराट नगर के पञ्चखंड पीठाधीश्वर [[आचार्य धर्मेन्द्र]] उनके पुत्र हैं।
 
== जीवन ==
वीर जी राष्ट्रभाषा [[हिन्दी]] की रक्षा के लिए भी संघर्षरत रहे। एक राज्य ने जब हिन्दी की जगह [[उर्दू]] को राजभाषा घोषित किया, तो महात्मा वीर जी ने उसके विरुद्ध अभियान चलाया व अनशन किया। वीर [[विनायक दामोदर सावरकर]] ने भी उनके प्रयासों का समर्थन किया था। [[पावन धाम]] विराट नगर के पञ्चखंड पीठाधीश्वर (जो पहले [[विश्व हिन्दू परिषद]] के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में थे) [[आचार्य धर्मेन्द्र]] उनके सुपुत्र हैं।
 
== जन्म ==
[[चित्र:Mahatma Ramchandra veer Youth Image.jpg|thumb|महात्मा रामचन्द्र वीर]]
औरंगजेब के दरबार में अपना प्राणोत्सर्ग करने वाले हुतात्मा गोपालदास जी की ११ वी पीढ़ी में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा संवत १९६६ वि. (सन १९०९) को गोमाता की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले जुझारू धर्माचार्य महात्मा रामचन्द्र वीर का जन्म श्रीमदस्वामी भूरामल जी व श्रीमती विरधी देवी के घर पुरातन तीर्थ [[विराटनगर]] ([[राजस्थान]]) में हुआ।
 
मुग़ल बादशाह [[औरंगजेब]] द्वारा हिन्दुओं पर लगाये गए 'श्मशान कर' के विरोध में अपना बलिदान देने वाले महात्मा गोपालदास इनके पूर्वज थे। कहते हैं कि [[जजिया कर]] से क्षुब्ध गोपालदास ने औरंगजेब के दरबार में पहुँच कर कृपाण से अपना पेट चीर कर देखते-देखते दरबार में ही अपने प्राण विसर्जित कर दिए थे।
== वंश-परिचय और स्वामी-कुल-परम्परा ==
जयपुर राज्य के पूर्वोत्तर में स्थित ऐतिहासिक तीर्थ विराटनगर (बैराठ) के पार्श्व में पवित्र बाणगंगा के तट पर मैड नमक छोटे से ग्राम में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण संत, लश्करी संप्रदाय के अनुयायी थे। गृहस्थ होते हुए भी अपने सम्प्रदाय के साधुगण और जनता द्वारा उन्हें साधु-संतों के सामान आदर और सम्मान प्राप्त था। राजा और सामंत उनको शीश नवाते थे और ब्राह्मण समुदाय उन्हें अपना शिरोमणि मानता था। भगवान नरसिंहदेव के उपासक इन महात्मा का नाम स्वामी गोपालदास था। गोतम गौड़ ब्राह्मणों के इस परिवार को 'स्वामी' का सम्मानीय संबोधन, जो भारत में संतों और साधुओ को ही प्राप्त है, लश्करी-संप्रदाय के द्वारा ही प्राप्त हुआ था, क्योंकि कठोर सांप्रदायिक अनुशासन के उस युग में चाहे जो उपाधि धारण कर लेना सरल नहीं था। मुग़ल बादशाह [[औरंगजेब]] द्वारा हिन्दुओं पर लगाये गए 'श्मशान कर' के विरोध में अपना बलिदान देने वाले '''महात्मा गोपालदास जी''' इनके पूर्वज थे। [[जजिया कर]] की अपमानजनक वसूली और विधर्मी सैनिकों के अत्याचारों से क्षुब्ध स्वामी गोपालदास धर्म के लिए प्राणोत्सर्ग करने के अपने संकल्प से प्रेरित होकर दिल्ली जा पहुंचे। उन तेजस्वी संत ने मुग़ल बादशाह के दरबार में किसी प्रकार से प्रवेश पा लिया और आततायी औरंगजेब को हिन्दुओं पर अत्याचार न करने की चेतावनी देते हुए, म्लेच्छों द्वारा शरीर का स्पर्श करके बंदी बनाये जाने से पूर्व ही, कृपाण से अपना पेट चीर कर देखते-देखते दरबार में ही अपने प्राण विसर्जित कर दिए। महाराज जी का रोम-रोम राष्ट्रभक्ति, हिन्दुत्व व संस्कृति से ओतप्रोत था। वीर जी ऐसे प्राणिवत्सल संत थे जिनकी दहाड़ से, ओजस्वी वाणी से, पैनी लेखनी के वार से राष्ट्रद्रोही व धर्मद्रोही कांप उठते थे। वीर जी ऐसे संत थे जिनका हृदय धर्म के नाम पर दी जाने वाली निरीह प्राणियों की बलि देख कर द्रवित हो उठता था।
 
रामचन्द्र वीर का जन्म भूरामल व विरधी देवी के घर पुरातन तीर्थ [[विराटनगर]] ([[राजस्थान]]) में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा संवत १९६६ वि. (सन १९०९) को हुआ।
== जीवन संघर्ष और कठोर तपश्चर्या ==
महात्मा रामचन्द्र वीर ने ज्ञान की खोज में घर का त्याग तब किया, जब वे न महात्मा थे न वीर. १४ वर्ष का बालक रामचन्द्र आत्मा की शांति को ढूंढता हुआ अमर हुतात्मा [[स्वामी श्रद्धानंद ]] के पास जा पहुंचा। वहां उसे ठांव मिलता, उसके पूर्व ही ममतामय पिता उसे मना कर वापस ले आये, किन्तु तभी हत्यारे अब्दुल रशीद की गोलियों से बींधे गए स्वामी श्रद्धानंद के उत्सर्ग के समाचार ने रामचन्द्र के रोम-रोम में स्वधर्म के आहत स्वाभिमान की ज्वालाएं सुलगा दी और रामचन्द्र फिर घर से निकल पड़ा, मानो अमर हुतात्मा स्वामी गोपालदास की अतृप्त बलिदानी आत्मा उनके अंत:करण में आ विराजी थी। १८ वर्ष की अल्पायु में भारत भूमि स्वतंत्रता, अखंडता और गोहत्या के पाप मूलोच्छेद के उद्देश्य से महात्मा वीर जी ने अन्न और लवण का सर्वथा त्याग कर दिया. महात्मा वीर का भोजन अस्वाद व्रत का अद्वितीय उदाहरण है। अपने जीवन के अखंड फलाहार व्रत के बीच देश, जाति और धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने १०० से अधिक अनशन किये उनमे सबसे छोटा ३ दिन और सबसे बड़ा १६६ दिन का अनशन भी सम्मिलित है।[[चित्र:Mahatma Ramchandra Veer.jpg|thumb|रामचंद्र वीर ]]
 
१४ वर्ष में ये [[स्वामी श्रद्धानंद ]] के पास जा पहुँचे। १८ वर्ष की अल्पायु में भारत भूमि स्वतंत्रता, अखंडता और गोहत्या के पाप मूलोच्छेद के उद्देश्य से वीर ने अन्न और लवण का सर्वथा त्याग कर दिया।
१३ वर्ष की अल्पायु में ही इनके पिता ने वीर जी का विवाह कर दिया था, किन्तु अपनी शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और स्वभावगत अनमेलता के कारण यह विवाह, विवाह नहीं बन पाया, वर की आयु से दो वर्ष बड़ी और नितांत विपरीत मन-मस्तिष्क स्वभाव और आचरण वाली पत्नी के साथ दांपत्य प्रारंभ होने के पूर्व ही टूट गया और तुरंत किशोर रामचन्द्र की जीवनधारा, हिन्दू संगठन, स्वतंत्रता संग्राम, अहिंसा, गोरक्षा और मानवता के कल्याण की कठोर कर्मभूमि पर बह चली और पुन: विवाह की कल्पना बहुत पीछे रह गयी। भूरामल जी अपने पुत्र की कीर्ति से प्रसन्न तो थे परन्तु वंश-परम्परा के विछिन्न होने का संताप उन्हें सालता रहता था। अपने पिताश्री और अनुयायियों घेरे जाने पर वीर जी ने ३२ वर्ष की आयु में पुन विवाह किया। जब विवाह की बात चली तो वीर जी छपरा जेल में थे। विवाह हुआ तो पिता भूरामल जी भी जेल में थे और स्वयं वीर जी पर [[जयपुर]] राज्य की पुलिस का गिरफ़्तारी वारंट था। विवाह शिष्यों के द्वारा जन्मभूमि [[विराट नगर]] से सैंकड़ो मील दूर संपन्न हुआ। पत्नी अल्पकालीन सामीप्य के पश्चात् पिता के घर लौटी एवं वहीँ उन्होंने अमर हुतात्मा गोपालदास जी के १२ वे वंशधर तथा परम तेजस्वी संत, महात्मा रामचन्द्र वीर के एकमात्र आत्मज [[आचार्य धर्मेन्द्र]] को जन्म दिया.
 
'''महात्मा[[चित्र:Mahatma Ramchandra Veer.jpg|thumb|रामचंद्र वीर ]]
सामाजिक क्रांति के पुरोधा स्वामी रामचन्द्र वीर द्वारा स्थापित पावनधाम स्थित वज्रांग मंदिर आज भी पूरे [[राजस्थान]] और [[विराट नगर]] कस्बे की शोभा बढ़ा रहा है। वीर जी ने अपना सारा जीवन [[पावन धाम]] में रह कर पूरा किया। विराटनगर वह स्थान है जहाँ [[महाभारत]]काल में [[पांडवों ]] ने अपना अज्ञातवास पूरा किया था वे [[हनुमान]] जी के परम भक्त थे पर उनके [[हनुमान]] पूंछ वाले नहीं, वरन [[वानर]] वंश के वेदों के विद्वान, बलशाली, चतुर, परम रामभक्त महापुरुष थे।
 
१३ वर्ष की अल्पायुआयु में ही इनके पिता ने वीर जी का विवाह कर दियाहुआ था, किन्तु अपनी शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और स्वभावगत अनमेलता के कारण यह विवाह, विवाह नहींजो बन पाया,पाया। वरअपने की आयु से दो वर्ष बड़ीपिता और नितांत विपरीत मन-मस्तिष्क स्वभाव और आचरण वाली पत्नीअनुयायियों के साथ दांपत्य प्रारंभ होने के पूर्व ही टूट गया और तुरंत किशोर रामचन्द्र की जीवनधारा, हिन्दू संगठन, स्वतंत्रता संग्राम, अहिंसा, गोरक्षा और मानवता के कल्याण की कठोर कर्मभूमिआग्रह पर बह चली और पुन: विवाह की कल्पना बहुत पीछे रह गयी। भूरामल जी अपने पुत्र की कीर्ति से प्रसन्न तो थे परन्तु वंश-परम्परा के विछिन्न होने का संताप उन्हें सालता रहता था। अपने पिताश्री और अनुयायियों घेरे जाने पर वीर जी ने ३२ वर्ष की आयु में पुन विवाह किया। जब विवाह की बात चली तो वीर जी छपरा जेल में थे। विवाह हुआ तो पिता भूरामल जी भी जेल में थे और स्वयं वीर जी पर [[जयपुर]] राज्य की पुलिस का गिरफ़्तारी वारंट था। विवाह शिष्यों के द्वारा जन्मभूमि [[विराट नगर]] से सैंकड़ो मील दूर संपन्न हुआ। पत्नी अल्पकालीन सामीप्य के पश्चात् पिता के घर लौटी एवं वहीँ उन्होंने अमर हुतात्मा गोपालदास जी के १२ वे वंशधर तथा परम तेजस्वी संत, महात्मा रामचन्द्र वीर के एकमात्र आत्मज [[आचार्य धर्मेन्द्र]] को जन्म दिया.दिया।
उन्होंने जगह-जगह जा कर मंदिर और देवालयों में दी जाने वाली अमानवीय पशुबलि को बंद कराया. बल्कि अपने अनशनों और जन-जागरण के माध्यम से लोगों को जाग्रत किया। इस महान गोभक्त के के जनजागरण द्वारा भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों में गोहत्या प्रतिबंधित करने के कानून बनाये गए। सन १९६६ - '६७ के विराट गोरक्षा आन्दोलन के दौरान वीर महाराज ने गोरक्षा कानून बनाये जाने की मांग को लेकर १६६ दिन का अनशन करके संसार भर का ध्यान आकर्षित करने मैं सफलता प्राप्त की थी।
 
२४ अप्रैल २००९ ई० को विराटनगर (राजस्थान) में इनका निधन हुआ।
हिन्दुओं के अधिकारों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह [[अखिल भारतीय हिन्दू महासभा]] से जुड़े और [[वीर सावरकर]] के साथ हमेशा [[हिन्दू]] हितों के लिए संघर्षशील रहे. जब [[कांग्रेस]] जैसे दल ने आज़ादी से पहले मुसलमानों के लिए आरक्षित वोटिंग व्यवस्था की, तो हिन्दू महासभा ने इसका डट कर विरोध किया। मुस्लिम तुष्टिकरण और वोट बैंक की नीति को पहले से ही भांपते हुए वीर जी ने मुस्लिमों को वोटिंग के अधिकार से वंचित रखने की सलाह दी थी। हिन्दू समाज के मान बिन्दुओ की रक्षा और हिन्दू संगठन के लिए उनका सतत संघर्ष हिन्दू जागरण के इतिहास मैं एक प्रचंड प्रकाश स्तम्भ के रूप में संसार भर के हिन्दुओं को प्रेरणा देता रहेगा.
 
== योगदान ==
== स्वाधीनता संग्राम में जेल ==
युवावस्था में महाराज जीये पंडित रामचन्द्र शर्मा, वीर जी के नाम से पूरे देश मेंजाने विख्यातजाते थे। इन्होंने [[कोलकाता]] और [[लाहौर]] के कांग्रेस अधिवेशनों में भाग लेकर स्वाधीनता के संग्राम में सक्रिय रहने का संकल्प लिया। सन 1932 में इन्होंने [[अजमेर]] के चीफ़ कमिश्नर की उपस्थिति में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध ओजस्वी भाषण देकर अपनी निर्भीकता का परिचय दिया.के परिणामस्वरुपलिये इन्हें ६ माह के लिए जेल भेज दिया गया। रतलाम और महू में इनके ओजपूर्ण भाषणों के कारण ब्रिटिश प्रशासन कांप उठा था।
[[काठियावाड़]] के नवाबी राज्य मांगरोल के शासक मुहम्मद जहाँगीर ने राज्य में गोवंश-हत्या को प्रोत्साहन दिया था। वीर जी को स्थानीय गोभक्तो से जब यह पता चला तो वे सन १९३५ में मांगरोल जा पहुंचे और गोहत्या पर प्रतिबन्ध की मांग को लेकर अनशन शुरू कर दिया, परिणामस्वरुप शासन को झुकना पड़ा और गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
 
वीर जी १९३५ में कल्याण ([[मुंबई]]) के निकटवर्ती गाँव तीस के [[दुर्गा]] मंदिर में दी जाने वाली निरीह पशुबलि के विरुद्ध संघर्षरत हुए. जनजागरण व अनशन के कारण मंदिर के ट्रस्टियों ने पशुबलि रोकने की घोषणा कर दी. उन्होंने [[भुसावल]], [[जबलपुर]] तथा अन्य अनेक नगरों में पहुँच कर कुछ देवालयों में दी जाने वाली पशुबलि को घोर शास्त्रविरोधी व अमानवीय करार देकर इस कलंक से मुक्ति दिलाई. स्वामी रामचन्द्र वीर ने 1000 से अधिक मंदिरों में धर्म के नाम पर होने वाली पशु-बलि को बंद कराया था। कलकत्ता के काली मंदिर पर होने वाली पशुबलि का विरोध करने पर आप पर प्राणघातक हमला भी हुआ। तब स्वयं महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने आकर आपका अनशन तुडवाया था। [[चित्र:Mahatma Ramchandra Veer Ji.png|thumb|right|300px]]
== गोभक्ति की प्रेरणा ==
वीर जी को गोभक्ति अपने पिता से विरासत में मिली थी। वीर जी ने जब देखा देश के विभिन राज्यों में कसाईखाने बनाकर गोवंश को नष्ट किया जा रहा है तो इन्होंने गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगने तक आजीवन अन्न और नमक न ग्रहण करने की जो कठिन प्रतिज्ञा की जिसे इन्होंने अंतिम साँस तक निभाया.
[[काठियावाड़]] के नवाबी राज्य मांगरोल के शासक मुहम्मद जहाँगीर ने राज्य में गोवंश-हत्या को प्रोत्साहन दिया था। वीर जी को स्थानीय गोभक्तो से जब यह पता चला तो वे सन १९३५ में मांगरोल जा पहुंचे और गोहत्या पर प्रतिबन्ध की मांग को लेकर अनशन शुरू कर दिया, परिणामस्वरुप शासन को झुकना पड़ा और गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
 
[[चित्र:Mahatma Ramchandra Veer Ji.png|thumb|right|300px]]
== पशुबलि का विरोध और रुकवाना ==
वीर जी १९३५ में कल्याण ([[मुंबई]]) के निकटवर्ती गाँव तीस के [[दुर्गा]] मंदिर में दी जाने वाली निरीह पशुबलि के विरुद्ध संघर्षरत हुए. जनजागरण व अनशन के कारण मंदिर के ट्रस्टियों ने पशुबलि रोकने की घोषणा कर दी. उन्होंने [[भुसावल]], [[जबलपुर]] तथा अन्य अनेक नगरों में पहुँच कर कुछ देवालयों में दी जाने वाली पशुबलि को घोर शास्त्रविरोधी व अमानवीय करार देकर इस कलंक से मुक्ति दिलाई. स्वामी रामचन्द्र वीर ने 1000 से अधिक मंदिरों में धर्म के नाम पर होने वाली पशु-बलि को बंद कराया था। कलकत्ता के काली मंदिर पर होने वाली पशुबलि का विरोध करने पर आप पर प्राणघातक हमला भी हुआ। तब स्वयं महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने आकर आपका अनशन तुडवाया था। [[चित्र:Mahatma Ramchandra Veer Ji.png|thumb|right|300px]]
 
महात्मारामचंद्र वीर जी ने सन १९३२ से ही '''गोहत्या के विरुद्ध जनजागरण''' छेड़ दिया था। इन्होंने अनेक राज्यों में गोहत्या बंदी से सम्बन्धी कानून बनाये जाने को लेकर अनेक अनशन किये. सन १९६६ में '''सर्वदलीय गोरक्षा अभियान समिति''' ने दिल्ली में व्यापक जन-आन्दोलन चलाया। संसद के सामने लाखों गोभक्तो की भीड़ पर तत्कालीन कोंग्रेस सरकार ने गोलियां चलवा कर प्रदर्शनकारियों का खून बहाया.
== गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा प्रशंसा ==
उनके पशुबलि विरोधी अभियान ने विश्वकवि गुरु [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के हृदय को द्रवित कर दिया. विश्वकवि वीर जी के इस मानवीय भावनाओ से परिपूर्ण अभियान के समर्थन में कविता लिख कर उनकी प्रशंसा की.
 
गोरक्षा आन्दोलन के दौरान गोहत्या तथा गोभाक्तों के नरसंहार के विरुद्ध पुरी के शंकराचार्य [[स्वामी निरंजनदेव तीर्थ]], [[संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी]] व वीर जी ने अनशन किये. तब वीर जी ने भी पूरे १६६ दिन का अनशन करके संसार भर में गोरक्षा की मांग पहुँचाने में सफलता प्राप्त की थी।<ref>{{पुस्तक सन्दर्भ|last1=पोद्दार|first1=हनुमान प्रसाद|title=दिव्य सन्देश|date=2014|publisher=भारतीय साहित्य|url=https://books.google.co.in/books?id=7yDVBQAAQBAJ&lpg=PP17&ots=yIH0KqxcOI&dq=%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0&pg=PP17#v=onepage&q=%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0&f=false|accessdate=22 अगस्त 2015}}</ref>
'''महात्मा रामचंद्र वीर
 
हिन्दू हुतात्माओं का इतिहास, हमारी गोमाता, श्री रामकथामृत (महाकाव्य), हमारा स्वास्थ्य, वज्रांग वंदना समेत दर्जनों पुस्तके लिख कर साहित्य सेवा में योगदान दिया और लेखनी के माध्यम से जनजागरण किया। विजय पताका नामक पुस्तक [[अटल बिहारी वाजपेयी]] के लिये प्रेरणास्रोत बनी।<ref>{{समाचार सन्दर्भ|title=वाजपेयी बनेंगे भारत के रत्न, पढ़िए इनका सफरनामा Read more at http://www.haribhoomi.com/news/india/politics/bharat-ratna-atal-bihari-vajpayee/19254.html#SSsIiWTmTpHgcKjv.99|url=http://www.haribhoomi.com/news/india/politics/bharat-ratna-atal-bihari-vajpayee/19254.html#ad-image-0|accessdate=22 अगस्त 2015|publisher=हरिभूमि}}</ref><ref>{{समाचार सन्दर्भ|title=..अब महज इशारों में बात करते हैं अटल जी|url=http://www.jagran.com/news/national-atal-bihari-vajpayee-birthday-today-9976610.html|accessdate=22 अगस्त 2015|publisher=दैनिक जागरण}}</ref> महात्मा रामचन्द्र वीर की अन्य प्रकाशित रचनाएँ हैं - वीर का विराट् आन्दोलन, वीररत्न मंजूषा, हिन्दू नारी, हमारी गौ माता, अमर हुतात्मा, विनाश के मार्ग (1945 में रचित), ज्वलंत ज्योति, भोजन और स्वास्थ्य
'''प्रन्घत्खेर खड्गे करिते धिक्कार'''
 
वीर जी को उनकी [[साहित्य]], [[संस्कृति]] व [[धर्म]] की सेवा के उपलक्ष्य में १३ दिसम्बर १९९८ को [[कोलकाता]] के बड़ा बाज़ार लाइब्रेरी की औरओर से "भाई [[हनुमान प्रसाद पोद्दार]] राष्ट्र सेवा" पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। गोरक्षा पीठाधीश्वर सांसद अवधेशनाथ जी महाराज ने उन्हें शाल व एक लाख रुपया देकर सम्मानित किया था। आचार्य [[विष्णुकांत शास्त्री]] ने उन्हें जीवित हुतात्मा बताकर उनके पार्टीप्रति सम्मान प्रकट किया था।
'''हे महात्मा, प्राण दिते चाऊ अपनार'''
 
पशुबली और गोहत्या की बंदी के लिए इन्होंने "पशुबलि निरोध समिति" और इसे बाद में "अ.भा. आदर्श हिन्दू संघ" में संगठित किया।
'''तोमर जनाई नमस्कार ''''''
 
वीर जी [[स्वामी श्रद्धानन्द]], [[मदन मोहन मालवीय|पंडित मदन मोहन मालवीय| मदनमोहन मालवीय]], [[विनायक दामोदर सावरकर|वीर सावरकर]], [[भाई परमानन्द]] जी, [[केशव बलिराम हेडगवार]] जी के प्रति श्रद्धा भाव रखते थे। संघ के द्वितीय सरसंघचालक [[माधव सदाशिव गोलवालकर]] उपाख्य श्री गुरुजी, भाई [[हनुमान प्रसाद पोद्दार]], [[लाला हरदेव सहाय]], [[संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी]], [[स्वामी करपात्री]] जैसे लोग वीर जी के त्यागमय, तपस्यामय, गाय और हिन्दुओं की रक्षा के लिए किये गए संघर्ष के कारण उनके प्रति आदर भाव रखते थे।
हिन्दी अनुवाद-
 
उनके पशुबलि विरोधी अभियान ने विश्वकवि गुरु [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के हृदय को द्रवित कर दिया., विश्वकविउन्होंने ने वीर जी के इस मानवीय भावनाओ से परिपूर्ण अभियान के समर्थन में कविता लिख कर उनकी प्रशंसा की. :
'''श्रीयुत रामचन्द्र शर्मा,
हे महात्मा
हत्यारों के निष्ठुर खड्गों को
धिक्कारते हुए
हिंसा के विरुद्ध तुमने
अपने प्राणों की भेंट चढ़ा देने का
निश्चय किया।
तुम्हें प्रणाम !'''
 
'''महात्मा रामचंद्र वीर <br />
महात्मा वीर जी ने सन १९३२ से ही '''गोहत्या के विरुद्ध जनजागरण''' छेड़ दिया था। इन्होंने अनेक राज्यों में गोहत्या बंदी से सम्बन्धी कानून बनाये जाने को लेकर अनेक अनशन किये. सन १९६६ में '''सर्वदलीय गोरक्षा अभियान समिति''' ने दिल्ली में व्यापक जन-आन्दोलन चलाया। संसद के सामने लाखों गोभक्तो की भीड़ पर तत्कालीन कोंग्रेस सरकार ने गोलियां चलवा कर प्रदर्शनकारियों का खून बहाया.
'''प्रन्घत्खेर खड्गे करिते धिक्कार''' <br />
'''हे महात्मा, प्राण दिते चाऊ अपनार'''<br />
'''तोमर जनाई नमस्कार ''''''
 
हिन्दी अनुवाद-
== गोरक्षा अभियान में विश्वविख्यात अनशन ==
श्रीयुत रामचन्द्र शर्मा, हे महात्मा हत्यारों के निष्ठुर खड्गों को धिक्कारते हुए हिंसा के विरुद्ध तुमने अपने प्राणों की भेंट चढ़ा देने का निश्चय किया। तुम्हें प्रणाम !
गोरक्षा आन्दोलन के दौरान गोहत्या तथा गोभाक्तों के नरसंहार के विरुद्ध पुरी के शंकराचार्य [[स्वामी निरंजनदेव तीर्थ]], [[संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी]] व वीर जी ने अनशन किये. तब वीर जी ने भी पूरे १६६ दिन का अनशन करके संसार भर में गोरक्षा की मांग पहुँचाने में सफलता प्राप्त की थी।
 
संघ के द्वितीय सरसंघचालक [[माधव सदाशिव गोलवालकर]] उपाख्य श्री गुरुजी, भाई [[हनुमान प्रसाद पोद्दार]], [[लाला हरदेव सहाय]], [[संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी]], [[स्वामी करपात्री]] जैसे लोग वीर जी के त्यागमय, तपस्यामय, गाय और हिन्दुओं की रक्षा के लिए किये गए संघर्ष के कारण उनके प्रति आदर भाव रखते थे।
== हिंदी साहित्य में योगदान ==
महात्मा वीर एक यशस्वी लेखक, कवि तथा ओजस्वी वक्ता थे। इन्होंने देश तथा धर्मके लिए बलिदान देने वाले हिन्दू हुतात्माओं का इतिहास लिखा. हमारी गोमाता, [[श्री रामकथामृत]] (महाकाव्य), हमारा स्वास्थ्य, वज्रांग वंदना समेत दर्जनों पुस्तके लिख कर साहित्य सेवा में योगदान दिया और लेखनी के माध्यम से जनजागरण किया। ‘श्री रामकथामृत’ हिन्दी साहित्य को वीरजी की अदभुत देन है।
 
==सन्दर्भ==
रामचंद्र वीर ने गद्य और पद्य दोनों में बहुत अच्छा लिखा, उनकी अमर कृति [[‘विजय पताका’]] तो मुर्दों में जान फूंक देने में सक्षम है। [[अटल बिहारी वाजपेयी]] ने अपने बाल्यकाल में इसी पुस्तक को पढकर अपना जीवन देश सेवा हेतु समर्पित किया। इसमें लेखक ने पिछले एक हजार वर्ष के भारत के इतिहास को पराजय और गुलामी के इतिहास के बजाय संघर्ष और विजय का इतिहास निरूपित किया है। अपनी अधूरी आत्मकथा "'''विकट यात्रा'''" को महात्मा वीर जी ने संक्षेप में 650 पृष्ठों में समेटा है। वह भी केवल 1953 तक की कथा है। उनके पूरे जीवन वृत्तांत के लिये तो कोई महाग्रन्थ चाहिये।
{{टिप्पणीसूची}}
 
ऐसे एक महान लेखक और कवि का साहित्य जगत् अब तक ठीक से मूल्यांकन नहीं कर पाया है।
 
महात्मा रामचन्द्र वीर की अन्य प्रकाशित रचनाएँ हैं - वीर का विराट् आन्दोलन, वीररत्न मंजूषा, हिन्दू नारी, हमारी गौ माता, अमर हुतात्मा, विनाश के मार्ग (1945 में रचित), ज्वलंत ज्योति, भोजन और स्वास्थ्य
 
वीर जी राष्ट्रभाषा हिंदी के लिए भी संघर्षरत रहे. एक राज्य ने जब [[हिंदी]] की जगह [[उर्दू]] को राजभाषा घोषित किया तो वीर जी ने उनके विरुद्ध अभियान चलाया व अनशन किया। तब वीर विनायक दामोदर सावरकर ने भी उनका समर्थन किया था। जहाँ मध्यकाल में [[वाल्मीकि रामायण]] से प्ररेणा लेकर गोस्वामी [[तुलसीदास]] जी ने जन सामान्य के लिए अवधी भाषा में [[रामचरित मानस]] की रचना की, वहीं आधुनिक काल में [[वाल्मीकि रामायण]] से ही प्रेरित होकर '''महात्मा रामचन्द्र वीर''' ने [[हिन्दी]] भाषा में [[श्रीरामकथामृत]] लिख कर एक नया अध्याय जोडा है। [[राष्ट्रभाषा]] [[हिन्दी]] के प्रति उनकी अनन्य भक्ति अनुपम है -
'''नहीं हो सकती कोई भाषा
मेरे तुल्य अतुल अभिराम।
करता हूँ मैं अति ममतामय
हिन्दी माता तुझे प्रणाम।।'''
 
वीर जी को उनकी [[साहित्य]], [[संस्कृति]] व [[धर्म]] की सेवा के उपलक्ष्य में १३ दिसम्बर १९९८ को [[कोलकाता]] के बड़ा बाज़ार लाइब्रेरी की और से "भाई [[हनुमान प्रसाद पोद्दार]] राष्ट्र सेवा" पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। गोरक्षा पीठाधीश्वर सांसद अवधेशनाथ जी महाराज ने उन्हें शाल व एक लाख रुपया देकर सम्मानित किया था। आचार्य [[विष्णुकांत शास्त्री]] ने उन्हें जीवित हुतात्मा बताकर उनके पार्टी सम्मान प्रकट किया था।
 
== हिन्दू हितों के लिए "आदर्श हिन्दू संघ" की स्थापना ==
पशुबली और गोहत्या की बंदी के लिए महात्मा जी ने "पशुबलि निरोध समिति" नामक संगठन का निर्माण किया किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अनुभव किया कि हिन्दू समाज का अन्धविश्वास केवल पशुबलि तक ही सीमिति नहीं है। हिन्दू समाज के सम्पूर्ण कायाकल्प की आवश्यकता है और उन्होंने "पशुबलि निरोध समिति" को "अ.भा. आदर्श हिन्दू संघ" में संगठित किया। इस संगठन को विश्व कवि [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]], विज्ञानाचार्य सर प्रफुल्ल चन्द्र राय, पं॰ रामानंद चटटोपाध्याय और महामना [[पंडित मदनमोहन मालवीय]] और [[डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार]] जैसे महापुरुषों का आशीर्वाद प्राप्त था। पुरे देश में [[आदर्श हिन्दू संघ]] को संगठित किया गया। जिलेवार शाखाएं खोली गयी। आदर्श हिन्दू संघ निश्चय ही हिन्दू जाति के लिए संजीवनी शक्ति का काम कर सकता था किन्तु देश की परिस्थितियां गुरुदेव के प्रयत्नों को दूसरी दिशा में ले गईं.
 
स्वराज्य के पूर्व भी वे पशुबलि और सामाजिक कुरूतियों के उन्मूलन के साथ-साथ हिन्दू हितों की रक्षा और गोहत्या निषेध के लिए अपनी शक्ति लगाते रहे थे। उनके अनशन और सत्याग्रहों से गोवंश और हिन्दू हितों की दिशा में उल्लेखनीय सफलता भी प्राप्त हुई, किन्तु स्वराज्य और देश विभाजन के पश्चात् उनकी सारी शक्ति गोहत्या निषेध और हिन्दू हितों के संघर्ष की और उन्मुख हो गयी। परिणामस्वरूप आदर्श हिन्दू संघ के संगठन को जो ध्यान और समय मिलना चाहिए था वो नहीं मिला.
 
उनके एकमात्र उत्तराधिकारी के रूप में [[आचार्य धर्मेन्द्र]] भी उनके हर आन्दोलन में साथ रहे और आदर्श हिन्दू संघ का रचनात्मक कायाकल्प भी दोनों संतो के मन-मस्तिष्क में समाया रहा. इसलिए जब १९७८ ई० में आचार्य धर्मेन्द्र ने गुरुदेव का आसन ग्रहण किया तो अपने पीठाभिषेक के साथ ही उन्होंने गुरुदेव के हिन्दू समाज के पुनुरुथान और परिष्कार के पवित्र संकल्प की पूर्ति के लिए आदर्श हिन्दू संघ को "धर्म समाज" के नाम में प्रवर्तित कर दिया. पीठाभिषेक के समारोह में [[विराटनगर]] में देश के कोने - कोने से आये साधु संतों और सद्गृहस्थ अनुयायियों के बीच "धर्म समाज" की प्रथम बार ध्वज पताका फहरायी गयी और आचार्य श्री धर्मेन्द्र ने धर्मसमाज का घोषणा पत्र जारी किया। [[विराटनगर]] के प्रथम सम्मलेन के पश्चात् मध्यप्रदेश के [[नागदा]] और [[उज्जयिनी]] में धर्म समाज के द्वितीय और तृतीय सम्मेलन हुए. तत्पश्चात विराटनगर में चतुर्थ सम्मेलन भी आयोजित किया गया। सभी सम्मेलनों में सारे देश से प्रतिनिधि उत्साहपूर्वक सम्मिलित हुए. परन्तु कुछ लोगों ने धर्म समाज नाम पर अपना अधिकार जताया और इस नाम से पहले से एक संगठन के अस्तित्व का दावा प्रस्तुत किया। उस समय आचार्य श्री ने अपना पूरा समय विश्व हिन्दू परिषद् के "श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन" को समर्पित कर रखा था। परिणामस्वरूप धर्म समाज आन्दोलन की प्रगति पूरी तरह अवरुद्ध हो गयी। अपनी आयु के ६५ वर्ष पूर्ण होने पर [[पुणे]] में १० जनवरी को सहयाद्री पर्वत की उपत्यका में श्रीसमर्थ रामदास महाराज की पवित्र पादुकाओ का पूजन करके आचार्य धर्मेन्द्र महाराज ने "पावन-परिवार" के शुभारम्भ का संकल्प किया और विधिवत इस संगठन की स्थापना की. पवन पुत्र परमपवन श्रीवज्रांगदेव [[हनुमान]] भगवान की करुणा, सेवा, संकल्प और शील का अनुसरण करने वाले भक्तों का संगठन ही अब "पावन-परिवार" है।
 
== सतत संघर्ष ==
वीर जी महाराज ने देश की स्वाधीनता, मूक प्राणियों व गोमाता की रक्षा व हिन्दू हितों के लिए २८ बार जेल यातनाएं सहन कीं |
वीर जी [[स्वामी श्रद्धानन्द]], [[मदन मोहन मालवीय|पंडित मदन मोहन मालवीय| मदनमोहन मालवीय]], [[विनायक दामोदर सावरकर|वीर सावरकर]], [[भाई परमानन्द]] जी, [[केशव बलिराम हेडगवार]] जी के प्रति श्रद्धा भाव रखते थे। संघ के द्वितीय सरसंघचालक [[माधव सदाशिव गोलवालकर]] उपाख्य श्री गुरुजी, भाई [[हनुमान प्रसाद पोद्दार]], [[लाला हरदेव सहाय]], [[संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी]], [[स्वामी करपात्री]] जैसे लोग वीर जी के त्यागमय, तपस्यामय, गाय और हिन्दुओं की रक्षा के लिए किये गए संघर्ष के कारण उनके प्रति आदर भाव रखते थे।
 
== महाप्रयाण ==
वीर जी गोरक्षा के लिए संघर्ष करते हुए २४ अप्रैल २००९ ई० को शतायु पूर्ण करते हुए विराटनगर (राजस्थान) में स्वर्ग सिधार गए|
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=120724-154116-320010 गोरक्षा के लिए 166 दिन भूखे रहने वाले महात्मा] (प्रभासाक्षी)
* [http://www.pressnote.in/print.php?pid=44762 संन्यासी स्वामी रामचन्द्र वीर को याद किया गया]
* [http://divyayug.mywebdunia.com/2009/07/06/1246869720000.html परम पावन श्रीमन्महात्मा रामचन्द्र "वीर' महाराज]
* [http://www.divyamanavmission.org/index.php/ved-mantra-explaination-2/182-2014-04-13-04-13-46 दृढ़ संकल्पी महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज]
 
[[श्रेणी:राजस्थान]]
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
[[श्रेणी:दर्शन]]
[[श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन]]
[[श्रेणी:आध्यात्मिक गुरु]]