"समुद्र मन्थन": अवतरणों में अंतर

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{{Double image stack|leftright|अंगकोरवाटसमुद्रमंथन.jpg|Awatoceanofmilk01.JPG‎|300200|[[अंगकोर वाट]] में समुद्र मंथन का भित्ति चित्र।}}
'''समुद्र मन्थन''' एक प्रसिद्ध [[हिन्दू]] पौराणिक कथा है। यह कथा [[भागवत पुराण]], [[महाभारत]] तथा [[विष्णु पुराण]] में आती है।
 
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श्री शुकदेव जी बोले, "हे राजन्! राजा [[बलि]] के राज्य में [[दैत्य]], [[असुर]] तथा [[दानव]] अति प्रबल हो उठे थे। उन्हें [[शुक्राचार्य]] की शक्ति प्राप्त थी। इसी बीच [[दुर्वासा]] ऋषि के शाप से देवराज इन्द्र शक्तिहीन हो गये थे। दैत्यराज बलि का राज्य तीनों लोकों पर था। इन्द्र सहित देवतागण उससे भयभीत रहते थे। इस स्थिति के निवारण का उपाय केवल बैकुण्ठनाथ विष्णु ही बता सकते थे, अतः ब्रह्मा जी के साथ समस्त देवता भगवान [[नारायण]] के पास पहुचे। उनकी स्तुति करके उन्होंने भगवान विष्णु को अपनी विपदा सुनाई। तब भगवान मधुर वाणी में बोले कि इस समय तुम लोगों के लिये संकट काल है। दैत्यों, असुरों एवं दानवों का अभ्युत्थान हो रहा है और तुम लोगों की अवनति हो रही है। किन्तु संकट काल को मैत्रीपूर्ण भाव से व्यतीत कर देना चाहिये। तुम दैत्यों से मित्रता कर लो और क्षीर सागर को मथ कर उसमें से अमृत निकाल कर पान कर लो। दैत्यों की सहायता से यह कार्य सुगमता से हो जायेगा। इस कार्य के लिये उनकी हर शर्त मान लो और अन्त में अपना काम निकाल लो। अमृत पीकर तुम अमर हो जाओगे और तुममें दैत्यों को मारने का सामर्थ्य आ जायेगा।
 
{{Double image stack|leftright|Samudrala_churning.JPG|Bangkok_Airport_08.JPG|230200|[[सुवर्णभूमि अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र]], [[बैंगकॉक]] में [[सागर मन्थन]] की एक प्रतिमा के दो तरफ़ से चित्र}}
"भगवान के आदेशानुसार इन्द्र ने समुद्र मंथन से अमृत निकलने की बात बलि को बताया। दैत्यराज बलि ने देवराज इन्द्र से समझौता कर लिया और समुद्र मंथन के लिये तैयार हो गये। [[मन्दराचल]] [[पर्वत]] को मथनी तथा [[वासुकी]] [[नाग]] को नेती बनाया गया। स्वयं भगवान श्री विष्णु कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखकर उसका आधार बन गये। भगवान नारायण ने दानव रूप से दानवों में और देवता रूप से देवताओं में शक्ति का संचार किया। वासुकी नाग को भी गहन निद्रा दे कर उसके कष्ट को हर लिया। देवता वासुकी नाग को मुख की ओर से पकड़ने लगे। इस पर उल्टी बुद्धि वाले दैत्य, असुर, दानवादि ने सोचा कि वासुकी नाग को मुख की ओर से पकड़ने में अवश्य कुछ न कुछ लाभ होगा। उन्होंने देवताओं से कहा कि हम किसी से शक्ति में कम नहीं हैं, हम मुँह की ओर का स्थान लेंगे। तब देवताओं ने वासुकी नाग के पूँछ की ओर का स्थान ले लिया।
 
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== चौदह रत्न ==
[[File:Sagar Manthan.jpg|thumb|[[समुद्र मन्थन]] चित्रात्मक निरूपण]]
# [[कालकूट]] (या, हलाहल)
एक प्रचलित श्लोक के अनुसार चौदह रत्न निम्नवत हैं:
 
::लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुराधन्वन्तरिश्चन्द्रमाः। ::
::गावः कामदुहा सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवाङ्गनाः। ::
::अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधनुः शङ्खोमृतं चाम्बुधेः।::
::रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्यात्सदा मङ्गलम्। ::
{{Div col |3}}
# [[कालकूट]] (या, हलाहल)<ref>{{पुस्तक सन्दर्भ|last1=शर्मा|first1=महेश|title=हिन्दू धर्म विश्वकोश|date=२०१३|publisher=प्रभात प्रकाशन|page=७७|url=https://books.google.co.in/books?id=q35sBQAAQBAJ&lpg=PA52&ots=E7b1_4aXQk&dq=%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A5%88%E0%A4%83%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE&pg=PA77#v=onepage&q=%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%9F&f=false|accessdate=22 अगस्त 2015}}
# [[ऐरावत]]
# [[कामधेनु]]
# [[उच्चैःश्रवा]]<ref>{{पुस्तक सन्दर्भ|last1=शर्मा|first1=महेश|title=हिन्दू धर्म विश्वकोश|date=२०१३|publisher=प्रभात प्रकाशन|page=५२|url=https://books.google.co.in/books?id=q35sBQAAQBAJ&lpg=PA52&ots=E7b1_4aXQk&dq=%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A5%88%E0%A4%83%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE&pg=PA52#v=onepage&q=%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A5%88%E0%A4%83%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE&f=false|accessdate=22 अगस्त 2015}}</ref>
# [[उच्चैःश्रवा]]
# [[कौस्तुभमणि]]
# [[कल्पवृक्ष]]
Line 36 ⟶ 44:
# [[धन्वन्तरि]]
# [[अमृत]]
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==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
==बाहरी कड़ियाँ==