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जिला परिषद्
राजस्थान में पंचायती राज लोक-प्रशासन व्यवस्था की सर्वोच्च सभा, जिसमें ग्राम पंचायतों और पंचायत समितियों से सदस्यों का चुनाव किया जाता है।
 
 
विषय सूची
 
1. जिला परिषद एक परिचय
 
2. जिला परिषद की संरचना
 
3. जिला परिषद की कार्यावधि
 
4. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन
 
5. शपथ ग्रहण (बिहार पंचायत निर्वाचन नियमावली, 2006 का नियम-122 (4)
 
6. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों को भत्तो
 
7. जिला परिषद की बैठकें
 
8. जिला परिषद् के कार्य एवं शक्तियाँ
 
9. जिला परिषद की सामान्य शक्तियाँ
 
10. स्थाई समितियां
 
11. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की शक्ति, कार्य एवं दायित्व
 
12. मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी और अन्य पदाधिकारियों के कृत्य
 
13. अभिलेखों की मांग का अधिकार
 
14. जिला परिषद को विनियम बनाने की शक्ति
 
15. ग्राम पंचायत के आदेश आदि के निष्पादन को निलम्बित रखने की जिला परिषद की शक्ति
 
16. परियोजना, स्कीम आदि पर पंचायतों का प्रशासनिक नियंत्रण
 
17. लोक सेवक
18. ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद् का आन्तरिक संबंध
 
19. सम्पत्ति अर्जित करने, धारण करने और बेचने की शक्ति
 
20. जिला परिषद् निधि
 
21. करारोपण
 
22. जिला परिषद के लिए वित्तीय व्यवस्थाएँ
 
23. बजट
 
24. लेखा
 
25. अंकेक्षण
 
26. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का त्याग-पत्र अथवा हटाया जाना (अविश्वास प्रस्ताव)
 
27. जिला परिषद् सदस्यों का त्याग-पत्र
 
28. जिला योजना समिति
 
29. पंचायतो के लिए वित्त आयोग
30. राज्य निर्वाचन आयोग
 
31. पंचायत राज के पदधारकों की भत्ता व्यवस्था
 
32. जिला परिषद् से संबंधित महत्वपूर्ण बिन्दु
 
 
 
जिला परिषद एक परिचय
 
पंचायती राज की सबसे उपरी संस्था जिला परिषद है। जिला परिषद ग्राम पंचायतों एवं पंचायत समितियों का मूलत: नीति निर्धारण एवं मार्गदर्षन का काम करती है।
 
जिला परिषद् की मुख्य धारा एवं उससे संबंधित प्रावधानों का संक्षिप्त विवरण नीचे अंकित है:-
 
· जिला परिषद की संरचना
 
जिला परिषद का भी ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिति की तरह अपना प्रादेषिक निर्वाचन क्षेत्र होता है, जिसका गठन लगभग पचास हजार (50000) की आबादी पर होता है। प्रत्येक प्रादेषिक निर्वाचन क्षेत्र से जिला परिषद सदस्य पद पर एक एक प्रतिनिधि निर्वाचित होता है। जिला परिषद के प्रादेषिक निर्वाचन क्षेत्र से सीधे चुनकर आये सदस्यों के अलावा अन्य सदस्य निम्नवत हैं-
 
(i) जिले के सभी पंचायत समितियों के निर्वाचित प्रमुख
 
(ii) लोकसभा और विधानसभा के वे सदस्य जिनका पूर्ण या आंषिक निर्वाचन क्षेत्र जिले के अन्तर्गत पड़ता हो
 
(iii) राज्य सभा तथा विधान परिषद के वे सभी सदस्य जिनका नाम जिला की मतदाता सूची में दर्ज हो।
 
ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिति की तरह ही जिला परिषद का कार्यकाल भी इसकी पहली बैठक से पांच वर्ष का होता है।
 
· जिला परिषद की कार्यावधि
 
प्रत्येक जिला परिषद की कार्यावधि उसकी पहली बैठक की निर्धारित तिथि से अगले पाँच वर्षों तक की होगी, इससे अधिक की नहीं।
 
· अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन
 
राज्य निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार जिला परिषद के निर्वाचित सदस्य यथाशीघ्र अपने में से दो सदस्यों को क्रमश: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित करेंगे।
 
· शपथ ग्रहण (बिहार पंचायत निर्वाचन नियमावली, 2006 का नियम-122 (4)
 
जिला परिषद् के निर्वाचित सदस्यों एवं अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष को जिला दंडाधिकारी द्वारा निर्धारित प्रथम बैठक में जिला दंडाधिकारी द्वारा शपथ ग्रहण/ प्रतिज्ञा करायेगा।
 
· अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों को भत्तो
 
जिला परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा प्रत्येक सदस्य यथा विहित बैठक शूल्क और भत्तो पाने के हकदार होंगे।
 
जिला परिषद की बैठकें
 
जिला परिषद की बैठक कम से कम तीन माह में एक बार बुलानी आवष्यक होती है। यह बैठक जिला मुख्यालय में या जिला में कहीं भी की जा सकती है। जिला मुख्यालय से बाहर जिस जगह बैठक होनी है, उसका निर्णय जिला परिषद् की बैठक में लेना है। निर्वाचन के बाद नवगठित जिला परिषद की पहली बैठक जिला दण्डाधिकारी की अध्यक्षता में होती है। शेष सभी बैठकों की अध्यक्षता जिला परिषद के अध्यक्ष या उनकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष करते हैं। बैठक की तिथि का अनुमोदन जिला परिषद अध्यक्ष करते हैं और इसके बाद मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी (डी.डी.सी.) बैठक की सूचना सभी सदस्यों को भेजता है। बैठक में कुल सदस्यों के एक तिहाई सदस्यों की उपस्थिति से उसका कोरम पूरा होगा। जिला परिषद के समक्ष रखे जानेवाले सभी मामलों (विषय) पर निर्णय बहुमत से होगा यदि किसी विषय पर मत भिन्नता हो या मतदान हो और बैठक में मतों के बराबर होने की स्थिति में अध्यक्ष अथवा अध्यक्षता कर रहे सदस्य का मत निर्णायक होता है। जिला परिषद की कार्यवाही अंकित करने और कार्यवाही की पंजी सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी की होती है।
 
जिला परिषद् के कार्य एवं शक्तियाँ
 
सरकार द्वारा समय-समय पर यथा विनिर्दिष्ट शत्तरों के अधीन जिला परिषद् निम्नलिखित कार्य का सम्पादन करेंगी:-
 
(i½ कृषि :- कृषि उत्पादन को बढ़ाने के साधनों को प्रोत्साहित करना तथा उन्नत कृषि पध्दतियों के प्रयोग को लोकप्रिय बनाना/ कृषि बीज फार्म तथा व्यवसायिक फार्म खोलना तथा उनका अनुरक्षण करना/ गोदाम की स्थापना एवं अनुरक्षण करना/ कृषि मेला एवं प्रदर्शनी का आयोजन/ कृषि एवं बागवानी प्रसार प्रशिक्षण केन्द्रों का प्रबंधन/ किसानों का प्रशिक्षण/ भूमि सुधार एवं भू-संरक्षण
 
(ii½ सिंचाई, भूतल जल संसाधन एवं जल संभर विकास :- लघु सिंचाई कार्य एवं उद्वह सिंचाई का निर्माण/ मरम्मत एंव अनुरक्षण/ जिला परिषद् के नियंत्रण में सिंचाई स्कीमों के अधीन जल का समय पर और समान रूप से वितरण और उसके पूर्ण उपयोग की व्यवस्था करना/भूतल जल संसाधनों का विकास/ सामुदायिक पम्पसेट लगाना/ जल संभर विकास कार्यक्रम।
 
(iii½ बागवानी :- ग्रामीण पार्क एवं उद्यान/ फलों एवं सब्जियों की खेती/ फार्म।
 
(iv½ सांख्यिकी :- पंचायत समिति और जिला परिषद के क्रियाकलापों से संबंधित सांख्यिकीय ऑंकड़ों एवं अन्य सूचनाओं का प्रकाशन/ समन्वय एवं उपयोग तथा पंचायत समिति और जिला परिषद को सुपुर्द परियोजनाओं और कार्यक्रमों का समय-समय पर पर्यवेक्षण एवं मूल्यांकन
 
(v½ ग्रामीण विद्युतीकरण
 
(vi½ आवश्यक वस्तुओं का वितरण
 
(vii½ भूमि संरक्षण- भूमि संरक्षण के उपाय/ भूमि उध्दार और भूमि विकास संबंधी कार्य
 
(viii½ विपणन :- विनयमित बाजारों और बाजार प्रागंणों का विकास/ कृषि उत्पादनों का वर्गीकरण, गुण नियंत्रण।
 
(ix½ सामाजिक वानिकी :- वृक्षारोपाण के लिए अभियान चलाना/ वृक्षारोपण और उनका अनुरक्षण।
 
(x½ पशुपालन एवं गव्य विकास :- पशु चिकित्सा अस्पतालों और औषधालयों की स्थापना/ चलन्त निदान और उपचार प्रयोगशालाओं की स्थापना/ गायों और सुअरों के प्रजनन प्रक्षेत्र/ कुक्कुट फार्म, बत्ताख फार्म और बकरी फार्म/ दुग्धशाला, कुक्कुट पालन और समुद्री उत्पाद के लिए सामान्य शीत गृह की सुविधा/ चारा विकास कार्यक्रम/ दुग्धशाला, कुक्कुट पालन एवं सुअर पालन को प्रोत्साहन/ महामारी तथा छूत रोगों की रोकथाम।
 
(xi½ लघुवन उपज, ईंधन एवं चारा :- सामाजिक एवं फार्म वानिकी, र्इंधन वृक्षरोपण एवं चारा विकास/ सामुदायिक भूखंडों पर उगाये गये वनों की लघुवन उपज का प्रबंधन/ बंजर भूमि का विकास।
 
(xii½ मत्स्य पालन :- मत्स्य बीज का उत्पादन एवं वितरण/ निजी और सामुदायिक तालाबों में मत्स्य पालन का विकास/ अन्तर्देशीय मत्स्य पालन का विकास/ मछली की रोग मुक्ति एवं सुखाना/ परम्परागत मछली पकड़ने के उद्योग को सहायता/ मत्स्य क्रय-विक्रय सहकारी समितियों का गठन, मछुआरों के उत्थान एवं विकास के लिए कल्याण योजनाएँ।
 
(xiii½ घरेलू एवं लघु उधोग (खाद्य प्रसंस्करण सहित) :- स्थानीय क्षेत्र में परम्पारागत कुशल कारीगरी की पहचान और घरेलू उद्योगों का विकास/ कच्चे माल की अपेक्षाओं का निर्धारण ताकि यथा समय र्आपूत्तिा सुनिश्चित की जा सके/ उपभोक्ताओं की बदलती हुई मांग के अनुरूप रूपांकन और उत्पादन/ शिल्पकारों और कारीगरों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन/ इस कार्यक्रम के लिए बैंक ऋण उपलब्ध करने हेतु संपर्क। तैयार उत्पादनों को लोकप्रिय बनाना और उनका विपणन/ औधोगिक सम्पदा/ खादी, हथकरघा, हस्तशिल्प और ग्रामीण एवं कुटीर उधोगों का संगठन।
 
(xiv½ ग्रामीण सड़कें एवं अन्तर्देशीय जलमार्ग :- राष्ट्रीय और राज्य पथों को छोड़कर अन्य सड़कों का निर्माण और अनुरक्षण/ राज्य और राष्ट्रीय उच्च पथों को छोड़कर अन्य सड़कों में पड़नेवाली पुल और पुलिया/ जिला परिषद के कार्यालय भवनों का निर्माण एवं अनुरक्षण/ बाजारों शैक्षणिक संस्थाओं, स्वास्थ्य केन्द्रों एवं संपर्क सड़कों को जोड़ने वाली बड़ी संपर्क सड़कों की पहचान/ नई सड़कों और विधमान सड़कों को चौड़ा करने के लिए स्वैच्छिक भू-अर्पण के लिए लोगों को संगठित करना।
(xv½ स्वास्थ्य एवं आरोग्य :- चिकित्सा महाविधालय के अस्पतालों, यक्ष्मा- आरोग्य शालाओं, कुष्ठ अस्पतालों और मानसिक रोगों अस्पतालों को छोड़कर, अन्य अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और औषधालयों की स्थापना एवं अनुरक्षण/ रोग- प्रतिरक्षण और टीकाकरण कार्यक्रम का कार्यान्वयन/ स्वास्थ्य, शिक्षा संबंधी कार्यकलाप/ मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यकलाप/ परिवार कल्याण संबंधी कार्य-कलाप/ पंचायत समिति और ग्राम पंचायत के साथ मिलकर स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन/ पर्यावरण प्रदूषण से बचाव के उपाय।
(xvi½ ग्रामीण आवास :- गृह विहीन परिवारों की पहचान/ जिला में गृह निर्माण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन/ अल्प लागत के गृह निर्माण को लोकप्रिय बनाने का कार्य।
(xvii½ शिक्षा :- शैक्षणिक कार्यकलापों को प्रोत्साहन जिसके अन्तर्गत प्राथमिक एवं माध्यमिक विधालयों की स्थापना और अनुरक्षण भी शामिल है। जनशिक्षा और पुस्तकालय सुविधाओं के लिए कार्यक्रमों का आयोजन/ ग्रामीण, क्षेत्रों में विज्ञान और प्रौधोगिकी शिक्षा के प्रचार- प्रसार का विस्तार कार्य। शैक्षणिक कार्यकलापों का सर्वेक्षण और मूल्यांकन/ सामान्य छात्रावासों, आश्रमों, विधालयों तथा अनाथालयों की स्थापना और अनुरक्षण।
 
(xviii½ सामाजिक कल्याण एवं कमजोर वर्गों का कल्याण :- अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों की छात्रवृतियाँ वृतिका, छात्रावास अनुदान एवं पुस्तक और अन्य अनुशांगिक सामग्रियों की खरीद हेतु अन्य अनुदान देकर शैक्षणिक सुविधाओं का विस्तार/ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लाभार्थ छात्रावासों का प्रबंध/ निरक्षरता उन्मूलन एवं सामान्य शिक्षा देने हेतु नर्सरी विधालयों, बालवाड़ियों, रात्रिपाठशालाओं में एवं पुस्ताकलयों का संगठन/ अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को कुटीर एवं ग्रामीण उधोगों का प्रशिक्षण देने हेतु आदर्श कल्याण केन्द्रों एवं शिल्प केन्द्रों का संचालन, आवासीय बुनियादी विधालय की व्यवस्था, उत्पादित माल के विपणन की सुविधा/ सहकारी समिति का गठन एवं अन्य कल्याण योजनाएँ। इन जातियों के विकास एवं उत्थान हेतु अन्य कल्याण सेवाएँ।
 
(xix½ गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम:- गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की योजना बनाना, पर्यवेक्षण, अनुश्रवण और उनका कार्यान्वयन।
 
(xx½ सामाजिक सुधार कार्यकलाप :- महिला संगठन एवं कल्याण/ बाल संगठन एवं कल्याण/ स्थानीय आवारागर्दी से राहत/ अनाथालयों, उध्दार गृहों इत्यादि जैसे सामाजिक कल्याण संस्थाओं का अनुरक्षण/ विधवाओं, वृध्दों और विकलांग निस्सहायों के लिए पेंशन तथा बेरोजगारों एवं अन्तर्जातीय विवाह करनेवाले दम्पत्तिायों जिनमें से कोई एक अनूसूचित जाति या जनजाति का सदस्य हो के लिए भत्तो की मंजूरी एवं वितरण/ आगजनी पर नियंत्रण/ अंधविश्वास, जातिवाद, अस्यपृश्यता, नशाखोरी, महँगी शादियों और सामाजिक उत्सवों, दहेज तथा सरेआम नशाखोरी के विरूध्द अभियान/ सामुदायिक विवाहों एंव अन्तर्जातीय विवाहों का प्रोत्साहन/ तस्करी, करवंचना और खाधान्नों में मिलावट जैसे आर्थिक अपराधों पर निगरानी/ भूमिहीन मजदूरों को प्रदत्ता भूमि के विकास हेतु सहायता/ आदिवासियों की संक्रमित भूमि का पुर्नग्रहण/ बंधुआ मजदूरों की पहचान, विमुक्ति एवं पुर्नवास/ सांस्कृतिक एवं मनोरंजक गतिविधियों का आयोजन/ खेलकूद को प्रोत्साहन एवं ग्रामीण क्रीड़ांगनों का निर्माण/ परम्परागत त्योहारों को नया रूप और सामाजिक आयाम देना। बचत आदतों को प्रोत्साहित करना। अल्प बचत आदतों को प्रोत्साहित करना। सूदखोरी एवं ग्राम्य ऋणग्रस्तता के विरूध्द संघर्ष।
 
(xxi) इसके अतिरिक्त जिला परिषद्
 
(क) अपने में निहित अथवा नियंत्रणधीन एवं प्रबंधनाधीन, किसी संस्था या सार्वजनिक उपयोग के किसी कार्य का प्रबंध या उसका अनुरक्षण करेगी।
 
(ख) ग्रामीण हाटों और बाजारों का अधिग्रहण एवं अनुरक्षण करेगी।
 
(ग) पंचायत समिति या ग्राम पंचायत को अनुदान प्रदान करेगी।
 
(घ) संकट ग्रस्तों को राहत देने हेतु उपाय करेगी।
 
(ड.) जिला में पंचायत समितियों द्वारा तैयार किये गये विकास योजनाओं एवं स्कीमों का समन्वय एवं एकीकरण करेगी।
 
(च) जिलान्तर्गत पंचायत समितियों के बजट प्राक्कलन की जाँच एवं मंजूरी।
 
(छ) एक प्रखंड से अधिक में फैले, किसी स्कीम को अपने हाथ में लेगी या उसका कार्यान्वयन करेगी।
 
(ज) किसी निजी स्वामित्ववाले या किसी अन्य प्राधिकार के स्वामित्व वाले किसी ग्रामीण पुल, तालाब, घाट, कूऑं, नहर या नाली का अनुरक्षण एवं नियंत्रण ऐसी बंधेजों एवं शत्तरों पर जैसा कि सहमति हो, अपने अधीन लेगी।
 
(xxii) वे सभी विषय जो भारत के संविधान के ग्यारहवीं अनुसूची में उल्लिखित है पर जिनका उल्लेख इस अधिनियम में अन्यत्र नहीं है।
 
(xxiii) राज्य सरकार द्वारा किसी अधिनियम के अधीन जिला परिषद को ऐसी शक्तियाँ निहित की जा सकेगी, जिसे सरकार यथोचित समझें।
 
(xxiv) दो या अधिक निकटवर्ती जिलों के जिला परिषद यथा सहमत बंधेज और शत्तरों के अनुसार संयुक्त रूप से किसी विकास स्कीम को अपने हाथ में ले सकेगी और उसका कार्यान्वयन कर सकेगी।
 
(xxv) जिला परिषद् के वार्षिक बजट तैयार करना।
 
· जिला परिषद की सामान्य शक्तियाँ :-
 
(i) सरकार के सामान्य या विशेष आदेशों के अध्यधीन जिला परिषद्-
 
(क) अपनी अधिकारिता के बाहर, शिक्षा या स्वास्थ्य राहत पर खर्च कर सकेगी।
 
(ख) जिलावासियों के कल्याणार्थ स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा, सुख सुविधा या सामाजिक आर्थिक अथवा सांस्कृतिक अभिवृध्दि हेतु कोई कार्य या उपायों को कार्यान्वित करने का उपबंध कर सकेगी।
 
(ग) स्थानीय सरकार के प्रोत्साहन से संबंध्द अखिल भारतीय, राज्य या अर्न्तराज्य स्तर के संघ और पंचायत समिति एवं जिला परिषद के कार्यकलापों से संबंधित जिला के अन्तर्गत प्रदर्शनी, सेमिनार और सम्मेलनों को अंशदान कर सकेगी। और,
 
(घ) जिले में किसी ऐसे कार्यकलाप के कार्यान्वयन के लिए किसी भी व्यक्ति को वित्तीय या अन्य सहायता प्रदान कर सकेगी, जो राज्य के किन्हीं कृत्यों से संबंधित हो।
 
(ii) जिला परिषद को, उसे सौंपे गये या प्रत्यायोजित कृत्यों का कार्यान्वयन करने के लिए सभी आवश्यक या अनुशंगिक कार्रवाई करने और खासकर पूर्ववर्ती शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इस अधिनियम के अधीन विनिर्दिष्ट सभी शक्तियों के प्रयोग की शक्तियां होंगी।
 
· स्थाई समितियां
 
जिला परिषद् अपने कार्यों के प्रभावी निर्वहन के लिए निर्वाचन द्वारा निम्न समितियाँ गठित करेंगी :-
 
केवल जिला परिषद के निर्वाचित सदस्यों को लेकर सात स्थायी समितियों का गठन करने का प्रावधान है, जो निम्नलिखित हैं-
 
(i½ सामान्य स्थायी समिति :- इसका कार्य स्थापना मामले सहित अन्य समितियों के कार्यों के बीच समन्वय स्थापित करना तथा ऐसे अवशिष्ट कार्य को जो अन्य समितियों को नहीं दिये गये हों, पूरा करना है। जिला परिषद् से संबंधित अन्य कार्य करना।
 
(ii½ वित्ता, अंकेक्षण तथा योजना समिति :- यह समिति वित्ता, अंकेक्षण, बजट एवं योजना से सम्बन्धित कार्य करती है।
 
(iii½ उत्पादन समिति :- यह समिति कृषि, भूमि विकास, लघु सिंचाई एवं जल प्रबंधन, पषुपालन, दुग्धषाला, कुक्कुट एवं मछली पालन, वानिकी, खादी, ग्रामीण, एवं कुटीर उद्योगों तथा गरीबी उन्मूलन सम्बंधी कार्यों को करती है।
 
(iv½ सामाजिक न्याय समिति :- यह समिति अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं एवं अन्य कमजोर वर्ग के बच्चों के सामजिक न्याय, कल्याण और सशक्तिकरण से सम्बन्धित कार्य करती है। सामाजिक अन्याय तथा अन्य सभी प्रकार के शोषण से सुरक्षा प्रदान करना।
 
(v½ शिक्षा समिति :- यह समिति प्राथमिक, माध्यमिक, जन शिक्षा सहित पुस्तकालयों एवं सांस्कृतिक कार्यकलापों सम्बंधी कार्य करती है।
 
(vi½ लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता समिति :- यह समिति लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता सम्बंधी कार्य करती है।
 
(vii½ लोक कार्य समिति :- यह समिति ग्रामीण विकास आवास, जलापूर्ति स्त्रोत, सड़क एवं आवागमन के अन्य साधन तथा ग्रामीण विद्युतीकरण सम्बंधी कार्य एवं उनकी देखभाल करती है। सभी प्रकार के निमार्ण एवं अनुरक्षण से संबंधित कृत्यों का निर्वह्न करना।
 
प्रत्येक समिति में निर्वाचित सदस्यों में से अध्यक्ष सहित कम से कम तीन एवं अधिक से अधिक पांच इसके सदस्य होते हैं। सामान्य स्थायी समिति तथा वित्त अंकेक्षण एवं योजना समिति का पदने सदस्य एवं अध्यक्ष, जिला परिषद का अध्यक्ष रहेगा। शेष समितियों के अध्यक्ष का मनोनयन जिला परिषद का अध्यक्ष करेगा। परन्तु प्रत्येक समिति में कम से कम एक महिला सदस्य होगी तथा सामाजिक न्याय समिति में एक सदस्य अनुसूचित जाति अथवा अनूसूचित जनजाति का होगा। जिला परिषद का कोई निर्वाचित सदस्य यथाशक्य तीन से अधिक समितियों में नहीं रहेगा।
 
प्रत्येक अध्यक्ष उस समिति के कार्यों से संबंधित जिला परिषद् के पदाधिकारियों से कोई सूचना, विवरण या प्रतिवेदन मांगने और निरीक्षण का हकदार होगा।
 
· अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की शक्ति, कार्य एवं दायित्व
 
¼i) अध्यक्ष- (क) जिला परिषद की बैठक का आयोजन और अध्यक्षता तथा उसका संचालन (ख) मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी पर तथा उसके माध्यम से सभी पदाधिकारी तथा कर्मचारी पर पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण (ग) जिला परिषद् के सामान्य बैठक में प्रस्ताव द्वारा सौंपे गये अन्य कार्यों /सरकार द्वारा सौंपी गई अन्य कार्य (घ) जिला परिषद की वित्तीय और कार्यपालिका प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण करेगा (ड) प्राकृतिक आपदा में प्रभावित लोगों को तत्काल राहत देने के लिए कुल एक लाख रूपये तक स्वीकृत करने की शक्ति। ऐसी स्वीकृति का प्रस्ताव जिला परिषद् के अगली बैठक में रखा जायेगा।
 
(ii) उपाध्यक्ष (क) अध्यक्ष की अनुपस्थिति में जिला परिषद् की बैठक की अध्यक्षता (ख) यथा विहित नियमावली के अध्यधीन लिखित आदेश से अध्यक्ष द्वारा सौंपे गये कार्य (ग) अध्यक्ष का निर्वाचन लंबित रहने या जिला से अध्यक्ष की अनुपस्थिति के दौरान 15 दिनों से अधिक अवधि के लिए उनके अवकाश पर रहने की स्थिति में अध्यक्ष की शक्तियों का प्रयोग तथार् कत्ताव्यों का निर्वहन। परन्तु अध्यक्ष के उपस्थित हो जाने पर वह अपनी शक्तियों एवं कार्य दायित्वों का निर्वह्न प्रारम्भ कर देगा।
 
मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी और अन्य पदाधिकारियों के कृत्य
 
मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, जिला परिषद की नीतियों और निदेशों, अधिनियम के प्रावधानों के अनतर्गत सौंपे गयेर् कत्ताव्यों के निर्वहन, जिला परिषद् के अध्यक्ष के सामान्य अधीक्षण एवं नियंत्रणाधीन जिला परिषद के पदाधिकारी/ कर्मचारियों पर नियंत्रण, सभी जिला पंचायत से संबंधित कागजात/ अभिलेख के अभिरक्षा, जिला परिषद के निधि से धन निकासी एवं व्यय, लेखा नियंत्रण आदि तथा जिला परिषद की बैठकों में विचार विमर्श में भाग लेगा किन्तु उसे मतदान का अधिकार नहीं होगा। यदि कोई प्रस्ताव विधि सम्मत नहीं हो तो उसकार् कत्ताव्य होगा कि वह इस ओर ध्यान आकृष्ट करें। सभी बैठकों में भाग लेने हेतु उत्तारदायी होगा। समय-समय पर यह अपर मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी की सहायता प्राप्त करेगा।
 
· अभिलेखों की मांग का अधिकार
 
मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा लिखित मांग किये जाने पर, ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या जिला परिषद से संबंधित धन, लेखा, अभिलेख या अन्य संपत्तिा उसे सुपुर्द किया जा सकेगा तथा मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी दंड प्रक्रिया संहिता में निहित मजिस्ट्रेट की शक्ति के अध्यधीन किसी व्यक्ति से धन वसूलने, राजस्व वसूली तथा अभिलेख, लेखा प्राप्ति हेतु तलाशी वारंट जारी कर सकेगा। इस धारा के अधीन मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी के आदेश के विरूध्द आयुक्त के पास अपील की जा सकेगी।
 
जिला परिषद को विनियम बनाने की शक्ति
 
जिला परिषद, सरकार की पूर्व मंजूरी से अधिनियम के उपबंधों और इसके अधीन बनाई गई नियमावली के अध्यधीन, अधिनियम के प्रावधानों को कार्यान्वित करने के लिए, जहाँ तक इसकी शक्तियाँ औरर् कत्ताव्य से संबंधित है, अधिसूचना द्वारा विनियम बना सकेगी।
 
ग्राम पंचायत के आदेश आदि के निष्पादन को निलम्बित रखने की जिला परिषद की शक्ति
 
जिला परिषद, ग्राम पंचायत के किसी अन्यायपूर्ण कार्य, विधि विरूध्द या अनुचित एवं शांति भंग होने संबंधी किसी आदेश के निष्पादन को निलम्बित अथवा रोक सकेगी।
 
परियोजना, स्कीम आदि पर पंचायतों का प्रशासनिक नियंत्रण
 
वैसी संस्थाएँ, परियोजनाएँ, स्कीमें और कार्यालय जिनका कार्यक्षेत्र पंचायत समिति से बाहर हो उनके कृत्य एवं प्रशासनिक नियंत्रण संबंधित जिला परिषद में निहित रहेंगी। यथा रेफरल अस्पताल जिनका सेवाक्षेत्र एक से अधिक प्रखंडों में हो के कृत्य एवं प्रशासनिक नियंत्रण जिला परिषद में निहित होंगे।
 
लोक सेवक
ग्राम पंचायत के मुखिया, उपमुखिया एवं सभी सदस्य , पंचायत समिति के प्रमुख, उप प्रमुख एवं सभी सदस्य , जिला परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सभी सदस्य तथा ग्राम कचहरी के सरपंच एवं सभी पंच और उक्त संस्थाओं के सभी पदाधिकारियों और कर्मचारियों को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (अधिनियम 45, 1860) की धारा-21 के अन्तर्गत लोक सेवक समझा जायेगा, जब वे इस अधिनियम या इसके अधीन बनाई गई नियमावली या उप विधि के अधीन अपनेर् कत्ताव्यों के निर्वहन के अनुसरण में या अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए कार्य करें या करने के लिए तात्पर्यित हो।
 
ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद् का आन्तरिक संबंध
 
ग्राम स्तर पर गठित ग्राम पंचायत, प्रखंड स्तर पर गठित पंचायत समिति और जिला स्तर पर गठित जिला परिषद्, पंचायती राज व्यवस्था के ये तीनों अभिन्न अंग एक दूसरे के पूरक हैं।
 
विकास के कार्यों में पंचायती राज संस्थाओं के बीच आपसी आन्तरिक संबंध एवं आपसी समझ के तहत विकास के कार्यों का लक्ष्य ''गाँधी का सपना ग्राम स्वराज हो अपना'' तक पहुँचाना है। तीनों संस्थाओं के बीच संबंध को विकास के इस उदाहरण से समझा जा सकता है। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण द्वारा संचालित चापाकल निर्माण एवं मरम्मति का दायित्व ग्राम पंचायतों पर है। पंचायत समिति ग्राम पंचायतों द्वारा लिए गए चापाकल के निर्माण एवं मरम्मत कार्य का अनुश्रवण एवं पर्यवेक्षण करती है। जिला परिषद् द्वारा प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में चापाकलों के निर्माण हेतु पंचायतों का चयन करती है जबकि प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में चापाकलों का निर्माण ग्राम पंचायत द्वारा कराया जाता है। उपरोक्त उदाहरण से स्पष्ट होता है कि ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद् में परस्पर तथा सहयोगात्मक संबंध है।
 
ग्राम पंचायत का मुखिया पंचायत समिति का सदस्य होते हैं। इस कारण वे अपनी समस्याओं को बैठक में रखते हुए समाधान की अपेक्षा करते हैं। पंचायत समिति को भी इन सारी बातों को आवश्यकतानुसार उचित फोरम जैसे जिला परिषद् में रखकर समाधान करने के प्रयास से तारतम्य बना रहेगा और विकास समुचित दिशा में आगे बढ़ेगा।
 
इसी प्रकार प्रमुख, जिला परिषद् के सदस्य होते हैं और वे पंचायत समिति के निर्णयों और समस्याओं का समाधान जिला परिषद् के माध्यम से करते हैं। इससे ग्राम पंचायत और पंचायत समिति की समस्याओं के समाधान हेतु जिला परिषद् सहायता कर सकेगा और तीनों स्तरों का तालमेल, समन्वय एवं गतिविधि की जानकारी एक दूसरे को होती रहेगी।
 
पंचायत समिति ग्राम पंचायत के पदधारकों और जिला परिषद् पंचायत समिति के पदधारकों से आपसी समन्वय और विकास के कार्यों को आगे बढ़ा सकने में सक्षम होंगे। इस प्रकार आपसी तारतम्य भी बना रहेगा, आंतरिक संबंध भी मजबूत होगा।
 
सम्पत्ति अर्जित करने, धारण करने और बेचने की शक्ति
 
(1) जिला परिषद को संपत्तिा अर्जित करने, धारण करने और बेचने तथा संविदा करने की शक्ति होगी, परन्तु अचल संपत्तिा निपटान के सभी मामलों में सरकार की पूर्वानुमति प्राप्त करनी होगी।
 
(2) जिला परिषद् की अधिकारिता में पड़ने वाली किसी सार्वजनिक सम्पति को सरकार अर्जित कर सकेगी और ऐसी सम्पति जिला परिषद् में निहित हो जाएगी।
 
(3) जिला परिषद् निधि द्वारा सभी सड़क, भवन या अन्य निर्माण किया हो वे सभी जिला परिषद् की सम्पति हो जाएगी।
 
(4) इस अधिनियम के किसी प्रयोजन को पूरा करने के लिए आवश्यक हो तो संबंधित जिला परिषद् उक्त भूमि के स्वामित्व वाले व्यक्तियों से समझौता कर सकता है। यदि वह इस कार्य को करने में असफल हो जाय, तो इस कार्य हेतु जिला दण्डाधिकारी को आवेदन देगा। जिला दण्डाधिकारी यदि ऐसा करना जरूरी समझे तो वह भूमि अर्जन अधिनियम, 1894(1, 1894) के अधीन कार्रवाई करेगा और भूमि जिला परिषद् में निहित हो जाएगा।
 
· जिला परिषद् निधि
 
प्रत्येक जिला परिषद के लिए जिला परिषद के नाम एक जिला परिषद निधि का गठन होगा, जिसके खाते में सरकार द्वारा दिये गये अनुदान/ अंशदान, पंचायत समिति या अन्य स्थानीय प्राधिकार द्वारा किया गया अंशदान सरकार द्वारा स्वीकृत ऋण, कर उगाही से प्राप्तियाँ, अधिरोपित तथा वसूल किया गया जुर्माना अथवा दंड शामिल होगा। सरकार द्वारा निर्धारित भू-राजस्व का अंश जिला परिषद् में निहित या उनके द्वारा निर्मित या इसके नियंत्रण एवं प्रबंधन के अधीन किसी विद्यालय, अस्पताल, डिसपेन्सरी भवन, संस्थान या किसी निर्माण से प्राप्त आय।
 
· करारोपण
 
सरकार द्वारा यथा विहित अधिकतम दर के अध्यधीन जिला परिषद घाटकर, नाव या वाहनों के रजिस्ट्रीकरण पर शुल्क, तीर्थ स्थान एवं मेलों में सफाई व्यवस्था हेतु शुल्क, मेला आदि के अनुज्ञप्ति पर शुल्क, पेयजल एवं सिंचाई व्यवस्था हेतु शुल्क, प्रकाश व्यवस्था हेतु शुल्क लगा सकेगी।
 
निम्न पर जिला परिषद् शुल्क नहीं लगा सकेगा:- ऐसे किसी वाहन पर जो किसी विधि के तहत रजिस्ट्रीकृत हो, या किसी अन्य प्राधिकार द्वारा तीर्थ स्थल, मेला आदि जगहो पर सफाई व्यवस्था कराई जा चुकी है।
 
· जिला परिषद के लिए वित्तीय व्यवस्थाएँ
 
जिला परिषद राज्य सरकार के अनुमोदन से नियमानुसार अपने कार्यों के निष्पादन हेतु समय-समय पर कर्ज ले सकेगी तथा ऐसे कर्जों की अदायगी के लिए निक्षेप निधि (Sinking fund) का सृजन कर सकेगी।
 
बजट
 
जिला परिषद यथा विहित रीति से अगले वर्ष के लिए प्राक्कलित प्रतियाँ एवं खर्च का बजट तैयार करेगी, जो बैठक में उपस्थिति सदस्यों के बहुमत से पारित होगा। ऐसी बैठक के लिए कुल सदस्यों का 50 प्रतिशत कोरम अनिवार्य होगा।
 
लेखा
 
जिला परिषद यथा विहित रीति से लेखा रखेगी।
 
अंकेक्षण
 
जिला परिषद के लेखे का अंकेक्षण भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक अथवा उसके द्वारा प्राधिकृत प्राधिकारी के माध्यम से पूरा किया जायेगा तथा अंकेक्षण पूरा होने के एक महीने के भीतर जिला परिषद को अंकेक्षण टिप्पणी भेजी जाएगी। भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक अथवा उसके द्वारा प्राधिकृत की वार्षिक रिर्पोट राज्य के विधान मंडल के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा।
 
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का त्याग-पत्र अथवा हटाया जाना (अविश्वास प्रस्ताव)
 
अध्यक्ष, जिला दंडाधिकारी को संबोधित स्वलिखित आवेदन द्वारा अपने पद का त्यागकर सकता है तथा उपाध्यक्ष, अध्यक्ष को संबोधित स्वलिखित आवेदन द्वारा पद त्याग कर सकता है। यदि वह चाहे तो सात दिनों के अन्दर स्वलिखित आवेदन देकर अपना त्याग-पत्र वापस ले सकता है। उसके बाद त्याग-पत्र स्वीकृत हो जायेगा।
 
यदि अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष जिला परिषद का सदस्य नहीं रह जाता हो तो उसे अपना पद छोड़ देना होगा।
 
जिला परिषद के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचित सदस्यों की संख्या के कम से कम पांचवें भाग द्वारा हस्ताक्षर किये हुए आवेदन पर जिला परिषद अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरूध्द अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। इसकी एक प्रति जिला दण्डाधिकारी को दी जाएगी और इसके निमित्ता विशेष बैठक बुलाने का अनुरोध करेगा। अध्यक्ष ऐसी अधिसूचना (आवेदन) की प्राप्ति के सात दिनों के अन्दर विशेष बैठक बुलाने का आदेश देगा। ऐसा आदेश प्राप्ति के पन्द्रह दिनों के अन्दर जिला दण्डाधिकारी अविश्वास प्रस्ताव पर विचार-विमर्श हेतु विशेष बैठक बुलावेगें। यदि यह प्रस्ताव अध्यक्ष के विरूध्द हो इस विशेष बैठक की अध्यक्षता उपाध्यक्ष करेगा। यदि उपाध्यक्ष के विरूध्द अविश्वास प्रस्ताव हो अध्यक्ष इसकी अध्यक्षता करेगा। यदि अविश्वास प्रस्ताव अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष दोनों के विरूध्द हो उसकी अध्यक्षता जिला दंडाधिकारी करेंगे।
 
अध्यक्ष के विरूध्द अविश्वास आने पर यदि उपाध्यक्ष अनुपस्थित रहे या उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो अथवा उपाध्यक्ष के विरूध्द अविश्वास प्रस्ताव हो और अध्यक्ष का पद रिक्त हो या वह अनुपस्थित रहे तो जिला परिषद् के निर्वाचित एवं उपस्थित सदस्यों में एक कोई इस विशेष बैठक की अध्यक्षता करने हेतु चुना जाएगा तथा वही इस विशेष बैठक की अध्यक्षता करेगा। अध्यक्ष द्वारा उनके विरूध्द प्राप्त अविश्वास प्रस्ताव पर सात दिनों के अन्दर अध्यक्ष द्वारा बैठक नहीं बुलाये जाने पर या विशेष बैठक जिला दण्डाधिकारी द्वारा सूचना निर्गत होने के 15 दिनों के अन्दर बुलाई जायगी।
 
अविश्वास प्रस्ताव बैठक हेतु बुलाई गई विशेष बैठक किसी हालत में स्थगित नहीं होगी इसमें कोरम जरूरी नहीं है। इस बैठक की अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति अविश्वास प्रस्ताव को पढ़ेगा और उपस्थित सदस्यों के बीच विचार-विमर्श करने का अनुरोध करेगा। इस बीच जिला परिषद् के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष जिनके विरूध्द अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, उन्हें अपना विचार रखने का मौका दिया जाएगा। विचार-विमर्श के बाद उसी दिन जिला दण्डाधिकारी द्वारा गुप्त मतदान कराया जायगा। यदि अविश्वास प्रस्ताव बहुमत से पारित हो गया हो तो तुरंत अध्यक्ष/उपाध्यक्ष अपना पद छोड़ देगा। इस विशेष बैठक में निर्वाचित कुल सदस्यों के बहुमत द्वारा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के प्रति अविश्वास प्रस्ताव यदि स्वीकृत हो जाता है तो उन्हें अपने पद को छोड़ना होता है।
 
यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या दोनों के विरूध्द लाया गया अविश्वास प्रस्ताव एक बार अस्वीकृत हो जाए तो अस्वीकृति की तारीख से एक साल के भीतर अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या दोनों के विरूध्द कोई नया अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है।
 
अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष के विरूध्द उनकी पदावधि के प्रथम दो वर्ष की कालावधि के भीतर अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जायेगा। जिला परिषद की कालावधि समाप्त होने के छ: माह शेष रहने पर अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष के विरूध्द कोई अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जोयगा।
 
साथ ही यदि अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष बिना किसी यथेष्टकारण के लगातार तीन बैठकों से अनुपस्थित रहता हो या अधिनियम के अधीन अपनेर् कत्ताव्यों के निर्वहन से इन्कार करता हो या जानबुझकर उपेक्षा करता हो अथवा निहित शक्तियों का दुरूपयोग करता हो अथवा दुराचार का दोषी पाया जाता हो ऐसे हटाये गए अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष अगले पाँच वर्षों तक हटाये जाने की तिथि से पंचायत निकाय के किसी पद पर उममीदवार होने का पात्र नहीं होगा, अथवार् कत्ताव्यों के निर्वहन में शारीरिक अथवा मानसिक रूप से अक्षम हो अथवा किसी आपराधिक कांड का अभियुक्त होने के कारण छ: माह से अधिक फरार रहता है तो इन कारणों से हटाये गये अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष जिला परिषद के शेष कार्यकाल तक पंचायती राज के किसी पद का उम्मीदवार नहीं होंगे, यथा विहित तरीके से ऐसे अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष सरकार के द्वारा हटाये जा सकेंगे।
 
जिला परिषद् सदस्यों का त्याग-पत्र
 
जिला परिषद् का कोई निर्वाचित सदस्य स्वलिखित अपना त्याग-पत्र अध्यक्ष को दे सकता है। यदि वह चाहे तो सात दिनों के अन्दर अपना स्वलिखित त्याग-पत्र वापस ले सकता है। अन्यथा सात दिनों की समाप्ति के बाद स्वत: उनका स्थान रिक्त हो जाएगा।
 
जिला योजना समिति
 
1 पंचायतों तथा नगर पालिकाओं द्वारा तैयार की गई योजनाओं को समेकित करने और सम्पूर्ण जिला के लिए विकास योजना का प्रारूप तैयार करने हेतु सरकार प्रत्येक जिले में एक जिला योजना समिति का गठन करेगी।
 
2.जिला योजना समिति में निम्नलिखित होंगें:-
 
(क) जिला परिषद के अध्यक्ष
 
(ख) जिला मुख्यालय पर अधिकारिता रखने वाली नगरपालिका के महापौर या अध्यक्ष
 
(ग) सरकार द्वारा यथा विनिर्दिष्ट समिति के सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम 4/5 भाग सदस्य, जो जिला परिषद् के निर्वाचित सदस्यों, जिले की नगर पंचायत और नगर निगम तथा नगरपालिका पर्षद के निर्वाचित पार्षदों के बीच से उनके द्वारा विहित रीति से ग्रामीण क्षेत्र और जिले के शहरी क्षेत्रों के बीच आबादी के अनुपात में राज्य निर्वाचन आयोग के निर्देषन, नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण में निर्वाचित होंगे।
 
परन्तु यह कि निर्वाचित सदस्यों में से व्यवहारिक रूप से यथाषक्य पचास (50:) प्रतिषत महिलायें होंगी। परन्तु यह और कि यदि अनुसूचित जातियों या पिछड़े वर्ग की कोटियों में से कोई निर्वाचित सदस्य नहीं हो तो सरकार, जिला की पंचायतों तथा नगरपालिकाओं के सदस्यों में से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों या पिछड़े वर्ग की कोटियों के सदस्यों को इतनी संख्या में मनोनीत कर सकती है, जितना वह उचित समझे।
 
3. लोक सभा के सभी सदस्यगण जो उस जिला का सम्पूर्ण या किसी हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हो, राज्य सभा के सभी सदस्यगण जो उस जिला में निर्वाचक के रूप में निबंधित हो, राज्य विधान सभा के सभी सदस्य जिनका क्षेत्र उस जिला के अन्तर्गत पड़ता हो, राज्य विधान परिषद के सदस्य गण जो उस जिला में निर्वाचक के रूप में निबंधित हो तथा जिला दंडाधिकारी और अध्यक्ष जिला सहकारी बैंक/भूमि विकास बैंक, समिति के स्थायी आमंत्रित सदस्य होगें।
 
4. मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी समिति का सचिव होगा।
 
5. जिला परिषद का अध्यक्ष जिला योजना समिति का सभापति होगा।
 
6. जिला योजना समिति जिला में पंचायतों तथा नगर पालिकाओं द्वारा तैयार की गई योजनाओं का समेकन करेगी और पूरे जिला के लिए विकास योजना प्रारूप बनाएगी।
 
7. प्रत्येक जिला योजना समिति विकास योजना प्रारूप तैयार करते समय:-
 
(क) निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेगी
 
(i) जिलें में जिला परिषद, पंचायत समितियों, ग्राम पंचायतों, नगर पंचायतों, नगर परिषदों तथा नगर निगमों के परस्पर सामान्य हित के मामलों के साथ-साथ स्थानीय योजना, जल एवं अन्य भौतिक और प्राकृतिक साधन स्त्रोत में हिस्सेदारी, आधारभूत सरंचना का समेकित विकास एवं पर्यावरण संरक्षण।
 
(ii) उपलब्ध संसाधनों का विस्तार एवं प्रकार चाहे वह वित्तीय हो या अन्यथा
(ख) सरकार द्वारा यथा निर्दिष्ट संस्थाओं एवं संगठनों से परामर्ष।
8. प्रत्येक जिला योजना समिति का अध्यक्ष ऐसी समिति द्वारा अनुषंसित विकास योजना को सरकार के पास अग्रसारित करेगा।
पंचायतो के लिए वित्ता आयोग
सरकार अधिनियम के प्रारम्भ होने पर यथासंभव शीघ्र और इसके बाद हरेक पॉच वर्ष की समाप्ति पर जिला परिषदों, पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करने तथा सरकार को वित्तीय मामलों यथा (कर शुल्क तथा फीस अनुदान आदि) में अनुषंसा देने के लिए वित्ता आयोग का गठन करेगी।
वित्ता आयोग में अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य होंगें। इस आयोग का उद्देष्य पंचायतों की वित्ताीय स्थिति की समीक्षा पंचायतों के आर्थिक सुदृढ़ीकरण करना है और राज्य सरकार को निम्नलिखित मुद्दों के संबंध में जरूरी उपायों की सिफारिष करना है। -
(i) राज्य सरकार और पंचायतों में राज्य राजस्व के वितरण को नियंत्रित करने वाला सिध्दांत।
(ii) पंचायतों को कर, शुल्क एवम् फीस का अवधारण ताकि वे अपनी वित्ताीय शक्तियों के प्रयोग से संसाधन जनित कर सकें।
(iii) पंचायतों को सहाय्य अनुदान देने का सिध्दांत ।
(iv) पंचायतों की वित्तीय स्थिति बेहतर बनाने के लिए आवष्यक अन्य उपाय।
 
 
राज्य निर्वाचन आयोग
 
लोकतांत्रिक ढाँचे में नियमित और समय पर चुनाव कराना बेहद महत्वपूर्ण कार्य है। चुनावी कार्य पर निगरानी रखने वाला निकाय निष्पक्ष एवं स्वतंत्र होना चाहिए। संसद एवं राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों के लिए चुनाव आयोग का गठन किया गया है। पंचायतों एवं नगरपालिकाओं के निर्वाचन हेतु राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है। इनके अधीक्षण, निर्देषन एवं नियंत्रण में निर्वाचन होता है। आयोग स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
 
पंचायत राज के पदधारकों की भत्ता व्यवस्था
 
01 अप्रैल, 2008 से पंचायत राज के पदधारकों को निम्न प्रकार नियत (मासिक) भत्तो, दैनिक भत्तो एवं यात्रा भत्ता स्वीकृत किया गया है
 
क्र0
 
पदधारक का नाम
 
नियत भत्ता
(प्रतिमाह रू0 में)
 
दैनिक भत्ता
(रू0 में)
 
यात्रा भत्ता (रू0 में)
 
(i)
 
जिला परिषद अध्यक्ष
 
4000.00
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(ii)
 
जिला परिषद उपाध्यक्ष
 
3000.00
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(iii)
 
पंचायत समिति प्रमुख
 
3000.00
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(iv)
 
पंचायत समिति उपप्रमुख
 
1500.00
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(v)
 
ग्राम पंचायत मुखिया
 
600.00
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(vi)
 
ग्राम पंचायत उपमुखिया
 
300.00
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(vii)
 
ग्राम कचहरी सरपंच
 
600.00
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(viii)
 
ग्राम कचहरी उपसरपंच
 
300.00
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(ix)
 
जिला परिषद् सदस्य
 
शून्य
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(x)
 
पंचायत समिति सदस्य
 
शून्य
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(xi)
 
ग्राम पंचायत सदस्य
 
शून्य
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(xii)
 
ग्राम कचहरी सदस्य (पंच)
 
शून्य
 
100.00
 
5.00 प्रति कि0मी0
 
(xiii) यात्रा भत्ता के लिए दूरी की गणना निर्वाचित सदस्य के नामांकन पत्र में अंकित आवासीय पते से सम्बंधित पंचायती राज संस्थायें एवं ग्राम कचहरी के मुख्यालय की वास्तविक दूरी के आधार पर की जाएगी।
 
(xiv) दैनिक भत्ता एवं यात्रा भत्ता सदस्यों को सामान्य/ विषेष/ स्थायी समिति की बैठक एवं ग्राम कचहरी की न्यायपीठ की बैठक में भाग लेने पर अनुमान्य होगा।
 
(xv) जिला परिषद/ पंचायत समिति/ ग्राम पंचायत/ ग्राम कचहरी की न्यायपीठ की बैठक में भाग लेने वाले अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/ अत्यंत पिछड़ा वर्ग के पुरूष एवं महिला तथा अन्य वर्गों की महिला प्रतिनिधि, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं, को प्रति बैठक एक सौ रूपये की दर से विषेष मानदेय अलग से देय होगा। इस प्रकार इन वर्गों को कुल 200/- रूपये प्रति बैठक देय होगा।
 
जिला परिषद् से संबंधित महत्वपूर्ण बिन्दु
 
 
प्र0-1 जिला परिषद् की बैठक का आयोजन कब किया जाना है?
 
ऊ0 जिला परिषद् की बैठक तीन माह में कम-से-कम एक बार निश्चित रूप से की जानी है।
 
प्र0-2 जिला परिषद् के बैठक के आयोजन की क्या प्रक्रिया है?
 
ऊ0 जिला परिषद के बैठक के आयोजन की निम्न प्रक्रिया है :-
 
जिला परिषद्, सम्बध्द जिले की स्थानीय सीमा के अन्तर्गत ऐसे समय में और ऐसे स्थान में, जैसा कि जिला परिषद अपनी पूर्ववर्ती बैठक के तुरंत बाद नियत करें, प्रत्येक तीन माह में कम-से-कम एक बार बैठक का आयोजन करेगी।
 
परन्तु, किसी नवगठित जिला परिषद की पहली बैठक का आयोजन संबध्द जिले की स्थानीय सीमा के अनतर्गत ऐसे समय में और ऐसे स्थान में किया जायेगा जैसा कि जिला दंडाधिकारी नियत करे और उसकी अध्यक्षता उनके द्वारा की जायेगी,
 
परन्तु यह और कि, जब जिला परिषद के सदस्यों को पांचवा भाग बैठक आयोजित करने के लिए लिखित रूप में अपेक्षा करें तब अध्यक्ष वैसी बैठक दस दिनों के भीतर आयोजित करेगा। ऐसा नहीं करने पर पूर्वोक्त सदस्य जिला दंडाधिकारी को जानकारी देकर तथा जिला परिषद के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को पूरे सात दिनों की सूचना देकर बैठक आयोजित कर सकेंगे।
 
प्र0-3 जिला परिषद् की बैठक हेतु कितनी गणपूर्ति (कोरम) आवश्यक है?
 
ऊ0 जिला परिषद~ की बैठक में कार्यों के निष्पादन के लिए जिला परिषद के कुल सदस्यों की एक-तिहाई संख्या से गणपूर्ति होगी।
 
प्र0-4 जिला परिषद् की बैठक की अध्यक्षता कौन करेगा?
 
ऊ0 जिला परिषद~ की बैठक की अध्यक्षता अध्यक्ष द्वारा की जाएगी अथवा यदि वह अनुपस्थित हो तो उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष द्वारा की जाएगी तथा यदि अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष दोनों ही अनुपस्थित हों या अध्यक्ष अनुपस्थित हो और कोई उपाध्यक्ष न हो तो उपस्थित सदस्यों में से ही किसी एक सदस्य को अध्यक्षता करने के लिए चुन लिया जाएगा।
 
प्र0-5 जिला परिषद् की स्थायी समिति क्या है?
 
ऊ0 जिला परिषद~ अपने कृत्यों के प्रभावी निर्वहन हेतु सात स्थायी समिति यथा :- 1. सामान्य स्थायी समिति 2. वित्ता, अंकेक्षण तथा योजना समिति 3. उत्पादन समिति 4. समाजिक न्याय समिति 5. शिक्षा समिति 6. लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता समिति 7. लोक कार्य समिति का गठन कर सकेगी।
 
प्र0-6 जिला परिषद् की स्थायी समिति के क्या कार्य हैं?
 
ऊ0 जिला परिषद् की स्थायी समिति के निम्न कार्य हैं :-
 
(क) सामान्य स्थायी समिति :- स्थापना मामले, समन्वय एवं सभी अवशिष्ट कार्य, जो अन्य समिति के प्रभार में नहीं है, सहित जिला परिषद से संबंधित सामान्य कार्यों का निष्पादन करेगी।
 
(ख) वित्ता, अंकेक्षण तथा योजना समिति :- वित्ता, अंकेक्षण, बजट एवं योजना से संबंधित कृत्यों का निष्पादन करेगी।
 
(ख) उत्पादन समिति :- कृषि, भूमि विकास, लघु सिंचाई एवं जल प्रबन्धन, पशुपालन, दुग्धशाला, कुक्कुट एवं मत्स्यपालन, वानकी प्रक्षेत्र, ख़ादी, ग्रामीण एवं कुटीर उद्योगों तथा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों से संबंधित कार्यों का निष्पादन करेगी।
 
(ग) सामाजिक न्याय समिति :- अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य हितों का प्रोत्साहन संबंधित कार्य एवं ऐसी जातियों और वर्गों को सामाजिक अन्याय एवं अन्य सभी प्रकार के शोषणों से सुरक्षा प्रदान करने संबंधी कार्य तथा महिलाओं एवं बच्चों का कल्याण।
 
(घ) शिक्षा समिति :- प्राथमिक, माध्यमिक, जन एवं अनौपचारिक शिक्षा, पुस्तकालय एवं सांस्कृतिक कार्यकलापों सहित शिक्षा से संबंधित कृत्यों का निष्पादन करेगी।
 
(ड.) लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता समिति :- लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता संबंधी कार्यों को करने के लिए।
 
(च) लोक कार्य समिति :- ग्रामीण आवास, जलापूर्ति स्त्राेंतों, सड़क एवं आवागमन के अन्य माध्यमों, ग्रामीण विद्युतीकरण एंव संबंधित कार्यों के निर्माण एवं अनुरक्षण सहित सभी संबंधी कार्यों को करने के लिए।
 
प्र0-7 जिला परिषद् की स्थायी समिति का गठन किस प्रकार किया जाना है?
 
ऊ0 जिला परिषद् की स्थायी समिति का गठन इस प्रकार से किया जा सकता है :-
 
(क) प्रत्येक जिला परिषद~ अपने कृत्यों के प्रभावी निर्वहन हेतु निर्वाचित सदस्यों में से चुनाव द्वारा समितियों का गठन करेगी।
 
(ख) प्रत्येक समिति में निर्वाचित सदस्यों में से अध्यक्ष सहित कम-से-कम तीन और अधिक-से-अधिक पांच सदस्य होंगे। प्रत्येक समिति अपने दायित्वों के प्रभावी निर्वहन हेतु विशेषज्ञों एवं जनहित से प्रेरित व्यक्तियों में से अधिक-से-अधिक दो सदस्यों को सहयोजित (कोऑप्ट) कर सकेगी।
 
(ग) अध्यक्ष, सामान्य स्थायी समिति तथा वित्ता, अंकेक्षण एवं योजना समिति का पदेन सदस्य एंव अध्यक्ष होगा तथा प्रत्येक अन्य समिति के लिए एक अध्यक्ष नामित करेगा। अध्यक्ष उपर्युक्त दो समितियों सहित तीन से अधिक समितियों के अध्यक्ष का प्रभार नहीं रखेगा।
 
परन्तु यह कि प्रत्येक समिति में कम-से-कम एक महिला सदस्य होगी तथा सामाजिक न्याय समिति में एक सदस्य अनुसूचित जाति या अनूसूचित जनजाति का होगा।
 
(घ) जिला परिषद~ का कोई निर्वाचित सदस्य यथाशक्य तीन से अधिक समितियों का सदस्य नहीं होगा।
 
(ड.) मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी सामान्य स्थायी समिति तथा वित्ता, अंकेक्षण एवं योजना समिति का पदेन सचिव होगा। प्रत्येक अन्य स्थायी समिति के सचिव के रूप में जिला पदाधिकारी एक राजपत्रित पदाधिकारी का नाम निर्दिष्ट करेगा जो साधारणतया: जिला स्तरीय संबंध विभाग का प्रभारी होगा।
 
प्र0-8 जिला परिषद् के क्या कार्य है?
 
ऊ0 जिला परिषद~ कs मुख्य कार्य निम्नवत हैं :-
 
¼i) कृषि (ii) सिंचाई, भूतल जल संसाधन एवं जल संभर विकास ( iii) बागवानी (iv) सांख्यिकी (v) ग्रामीण विद्युतीकरण (vi) आवश्यक वस्तुओं का वितरण (vii) भूमि संरक्षण (viii) विपणन (ix) सामाजिक वानिकी (x) पशुपालन एवं गब्य विकास (xi) लघु वन उपज, र्इंधन एवं चाय (xii) मत्स्य पालन (xiii) घरेलु एवं लघु उद्योग (खाद्य प्रसंस्करण सहित) (xiv) ग्रामीण, सड़के एवं अर्न्तदेशीय जलमार्ग (xv) स्वास्थ्य एवं आरोग्य (xvi) ग्रामीण आवास (xvii) शिक्षा (xviii) सामाजिक कल्याण एवं कमजोर वर्गों का कल्याण (xix) गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (xx) सामाजिक सुधार कार्यकलाप (xxi) इसके अतिरिक्त जिला परिषद अपने में निहित अथवा नियंत्रणाधिन एवं प्रबंधनाधीन किसी संस्था या सार्वजनिक उपयोग के किसी कार्य का प्रबंध या अनुरक्षण, ग्रामीण हाटों और बाजारों का अधिग्रहण एवं अनुरक्षण, पंचायत समिति या ग्राम पंचायत को अनुदान, संकट ग्रस्तों को राहत देने हेतु उपाय, पंचायत समितियों द्वारा तैयार किए गए विकास योजनाओं एवं स्कीमों का समन्वय एवं एकीकरण, पंचायत समितियों के बजट प्राक्कलन की जाँच एवं मंजूरी करेगी, एक प्रखण्ड से अधिक में फैले किसी स्कीम को अपने हाथ में लेगी या उसका कार्यान्वयन करेगी, किसी निजि स्वामित्व वाले या किसी अन्य प्राधिकार के स्वामित्व वाले किसी ग्रामीण पुल, तालाब, घाट, कुँआ, नहर या नाली का अनुरक्षण एवं नियंत्रण (xxii) भारतीय संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी विषय (xxiii) राज्य सरकार द्वारा किसी अध्यादेश के अधिन जिला परिषद को ऐसी शक्तियाँ निहित की जा सकेंगी, जिसे सरकार यथोचित समझे (xxiv) दो या अधिक निकटवर्ती जिलों के जिला परिषद यथा सहमत बंधेज और शर्तों के अनुसार संयुक्त रूप से किसी विकास स्कीम को अपने हाथ में ले सकेगी और उसका कार्यान्वयन कर सकेगी (xxv) जिला परिषद का वार्षिक बजट तैयार करना
 
प्र0-9 जिला परिषद् के अध्यक्ष की शक्तियाँ, कृत्य औरर् कत्ताव्य क्या हैं?
 
ऊ0 जिला परिषद् के अध्यक्ष की शक्तियाँ, कृत्य औरर् कत्ताव्य निम्न हैं :-
 
(क) जिला परिषद की बैठक का आयोजन और अध्यक्षता तथा उसका संचालन करेंगे,
 
(ख) जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी पर और उसके माध्यम से जिला परिषद के सभी पदाधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों पर तथा ऐसे पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों पर, जिनकी सेवायें राजय सरकार द्वारा जिला परिषद को सौंपी गई हो, पर्यवेक्षण और नियंत्रण रखेंगे,
 
(ग) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करेंगे तथा ऐसे अन्य कृत्यों औरर् कत्ताव्यों का निर्वहन करेंगे जो जिला परिषद सामान्य संकल्प द्वारा उसे निदेशित करे या सरकार एतदर्थ निर्मित नियमों द्वारा विहित करे।
 
(घ) पंचायत समिति का वित्तीय और कार्यपालिका प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखेगा और उससे संबंधित ऐसे सभी प्रश्नों को पंचायत समिति के समक्ष रखेगा जिसके संबंध में इसे ऐसा लगे कि उस पर पंचायत समिति का आदेश आवश्यक है ओर इस प्रयोजनार्थ पंचायत समिति के अभिलेखों की मांग कर सकेगा, और
 
(ड.) जिला में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को तत्काल राहत देने के लिए उसे एक वर्ष में कुल एक लाख रूपये तक की राशि स्वीकृत करने की शक्ति होगी।
 
परन्तु जिला परिषद की अगली बैठक में अध्यक्ष ऐसी स्वीकृति का ब्यौरा जिला परिषद के समाधान के लिए प्रस्तुत करेगा।
 
प्र0-10 जिला परिषद् के उपाध्यक्ष की शक्तियाँ, कृत्य औरर् कत्ताव्य क्या हैं?
 
ऊ जिला परिषद् के उपाध्यक्ष की शक्तियाँ, कृत्य औरर् कत्ताव्य निम्न हैं :-
 
(क) जिला परिषद के अध्यक्ष की अनुपस्थिति में जिला परिषद की बैठकों की अध्यक्षता करेगा।
 
(ख) ऐसी सभी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे सभी कार्यों एवं दायित्वों का निर्वहन करेगा जो अध्यक्ष द्वारा उसे समय-समय पर और यथाविहित नियमावली के अध्यधीन, लिखित आदेश द्वारा प्रत्यायोजित किया जाये, और
 
(ग) अध्यक्ष का निर्वाचन लंबित रहने या जिला से अध्यक्ष की अनुपस्थिति के दौरान अथवा पन्द्रह दिनों से अधिक की अवधि के लिए अध्यक्ष के अवकाश पर रहने की स्थिति में, अध्यक्ष की शक्तियों का प्रयोग औरर् कत्ताव्यों का निर्वहन करेगा।
 
परन्तु, जैसे ही अध्यक्ष अपनी अनुपस्थिति से वापस आ जाएं, वह अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग पुन: करने लगेगा तथा अध्यक्ष के सभीर् कत्ताव्यों एवं कार्यों का निर्वहन प्रारम्भ कर देगा।
 
प्र0-11 जिला परिषद् के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के विरूध्द अविश्वास प्रस्ताव किस प्रकार लाया जा सकता है?
 
ऊ0 यदि जिला परिषद के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या में से बहुमत द्वारा उनके प्रति विश्वास की कमी का प्रस्ताव, इस प्रयोजन के लिए विशेष रूप से आयोजित बैठक में पारित किया जाये तो अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अपने पद से तत्काल ही मुक्त समझा जायेगा। ऐसी विशेष बैठक की अध्यपेक्षा जिला परिषद के सीधे निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या में से कम-से-कम पांचवें भाग द्वारा हस्ताक्षरित की जायेगी तथा उसे अध्यक्ष को सौंपा जाएगा और उसकी एक प्रति जिला दण्डाधिकारी को दी जायेगी। अध्यक्ष ऐसी अध्यपेक्षा की प्राप्ति की तिथि से 7 दिनों के भीतर जिला परिषद की विशेष बैठक आयोजित करेगा। बैठक की सूचना निर्गत होने की तिथि से 15 दिनों के अन्दर ही बैठक का आयोजन किया जायेगा। यदि प्रस्ताव उपाध्यक्ष के विरूध्द हो तो अध्यक्ष बैठक की अध्यक्षता करेगा, यदि यह अध्यक्ष के विरूध्द हो तो बैठक की अध्यक्षता उपाध्यक्ष करेगा और यदि यह अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों के विरूध्द हो तो बैठक की अध्यक्षता जिला दंडाधिकारी करेगा। अध्यक्ष के विरूध्द अविश्वास के प्रस्ताव पर विचार-विमर्श के लिए आहूत बैठक में उसके अनुपस्थित रहने पर यथास्थिति, जिला परिषद के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से सीधे निर्वाचित सदस्यों में से निर्वाचित किसी सदस्य द्वारा बैठक की अध्यक्षता की जायेगी।
 
अध्यक्ष द्वारा बैठक का आयोजन नहीं किये जाने की स्थिति में, यह बैठक जिला दंडाधिकारी द्वारा उसी रीति से बुलाई जायेगी तथा उसी के द्वारा बैठक की अध्यक्षता की जायेगी।
 
बैठक हेतु सूचना निर्गत किये जाने के बाद ऐसी बैठक को स्थगित नहीं किया जाएगा। अविश्वास प्रस्ताव पर विचार-विमर्श हेतु आहूत विशेष बैठक के लिये गणपूर्ति की आवश्यकता नहीं होगी।
 
(2) अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष के विरूध्द उनकी पदावधि के प्रथम दो वर्ष की कालावधि के भीतर अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाएगा।
 
(3) जिला परिषद की कालावधि समाप्त होने के छ: माह के भीतर अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या दोनों के विरूध्द अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाएगा।
 
प्र0-12 यदि जिला परिषद् के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया हो और पारित न हुआ हो तो कितने समय बाद पुन: अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है?
 
ऊ0 यदि जिला परिषद् के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या दोनों के विरूध्द लाया गया अविश्वास प्रस्ताव एक बार अस्वीकृत हो जाए तो ऐसे प्रस्ताव की ऐसी अस्वीकृति की तिथि से एक वर्ष की कालावधि के भीतर, यथा स्थिति अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या दोनों के विरूध्द कोई नया अविश्वास प्रस्ताव जिला परिषद के समक्ष नहीं लाया जाएगा।
 
प्र0-13 अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष को किस प्रकार पदच्युत किया जा सकता है?
 
ऊ0 कोई अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष बिना समुचित कारण के तीन लगातार बैठकों में अनुपस्थित रहें या जान बुझकर इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों एवं अपनेर् कत्ताव्यों को करने से इन्कार या उपेक्षा करें या उसमें निहित शक्तियों के दुरूपयोग या अपने कत्ताव्यों के निर्वहन में दुराचार का दोषी पाये जाए या अपनेर् कत्तव्यों का निर्वहन करने में शरीरिक या मानसिक तौर परर् कत्ताव्य निर्वहन के अक्षम हो या आपराधिक कांड में छ: माह से अधिक तक फरार हो, तब सरकार ऐसे अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को स्पष्टीकरण हेतु समुचित अवसर प्रदान करने के उपरांत आदेश पारित कर उसके पद से पदच्युत कर सकती है।
 
प्र0-14 जिला परिषद के सदस्यों के त्याग-पत्र की क्या प्रक्रिया है?
 
ऊ0 जिला परिषद का कोई निर्वाचित सदस्य जिला परिषद के अध्यक्ष को प्रेषित स्वलिखित त्याग-पत्र देकर अपनी सदस्यता का त्याग कर सकेगा और ऐसा त्याग पत्र दिये जाने की तिथि से पूरे सात दिनों की समाप्ति के पश्चात उनका स्थान रिक्त हो जाएगा, बशर्तें की वह सात दिनों की उक्त अवधि के भीतर अध्यक्ष के नाम स्वलिखित आवेदन देकर अपना त्याग-पत्र वापस न ले ले।
 
प्र0-15 यदि जिला परिषद् के अध्यक्ष अपने पद का त्याग करना चाहे तब उसे क्या करना होगा?
 
ऊ0 जिला परिषद के अध्यक्ष अपने पद से जिला दंडाधिकारी को सम्बोधित अपने स्वलिखित आवेदन द्वारा त्याग-पत्र दे सकेगा और त्याग-पत्र दिए जाने की तिथि से 7 वें दिन से उक्त पद रिक्त माना जायेगा जबतक कि उल्लिखित 7 दिनों की अवधि के भीतर यथास्थिति जिला दंडाधिकारी को सम्बोधित, स्वलिखित त्याग-पत्र वापस न ले लिया जाये।
 
यदि अध्यक्ष जिला परिषद का सदस्य नहीं रह जाता हो तो वह अपना पद छोड़ देगा।
 
प्र0-16 यदि जिला परिषद् के उपाध्यक्ष अपने पद का त्याग करना चाहे तब उसे क्या करना होगा?
 
ऊ0- जिला परिषद् का उपाध्यक्ष अपने पद से अध्यक्ष को सम्बोधित अपने स्वलिखित आवेदन द्वारा त्याग-पत्र दे सकेगा और त्याग-पत्र दिए जाने की तिथि से 7 वें दिन से उक्त पद रिक्त माना जायेगा जबतक कि उल्लिखित 7 दिनों की अवधि के भीतर यथास्थिति अध्यक्ष को सम्बोधित, स्वलिखित त्याग-पत्र वापस न ले लिया जाये।
 
यदि उपाध्यक्ष जिला परिषद का सदस्य नहीं रह जाता हो तो वह अपना पद छोड़ देगा।