"सोना": अवतरणों में अंतर

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आधुनिक विधि द्वारा स्वर्णयुक्त क्वार्ट्‌ज (quartz) को चूर्ण कर पारद की परतदार ताम्र की थालियों पर धोते हैं जिससे अधिकांश स्वर्ण थालियों पर जम जाता है। परत को खुरचकर उसके आसवन (distillation) द्वारा स्वर्ण को पारद से अलग कर सकते हैं। प्राप्त स्वर्ण में अपद्रव्य वर्तमान रहता है। इसपर सोडियम सायनाइड के विलयन द्वारा क्रिया करने से सोडियम ऑरोसायनाइड बनेगा।
 
4 Au + 8 NaCN + O2O<sub>2</sub> + 2 H2H<sub>2</sub> O = 4 Na [ Au (C N)<sub>2</sub>] + 4 NaOH
 
इस क्रिया में वायुमंडल की ऑक्सीजन आक्सीकारक के रूप में प्रयुक्त होती है।
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सोडियम ऑरोसायनाइड विलयन के विद्युत्‌ अपघटन द्वारा अथवा यशद धातु की क्रिया से स्वर्ण मुक्त हो जाता है।
 
Zn + 2 Na [Au (C N)<sub>2</sub>] = Na2Na<sub>2</sub> [ Zn (CN)<sub>4</sub>] + 2 Au
 
[[सायनाइट विधि]] द्वारा ऐसे अयस्कों से स्वर्ण निकाला जा सकता है जिनमें स्वर्ण की मात्रा न्यूनतम हो। अन्य विधि के अनुसार अयस्क में उपस्थित स्वर्ण को क्लोरीन द्वारा गोल्ड क्लोराइड (Au Cl3Cl<sub>3</sub>) में परिणत कर जल में विलयित कर लिया जाता है। विलयन में हाइड्रोजन सल्फाइड (H2H<sub>2</sub> S) प्रवाहित करने पर गोल्ड सल्फाइड बन जाता है जिसके दहन से स्वर्ण धातु मिल जाती है।
 
ऊपर बताई क्रियाओं से प्राप्त स्वर्ण में अपद्रव्य उपस्थित रहते हैं। इसके शोधन की आधुनिक विधि विद्युत्‌ अपघटन पर आधारित है। इस विधि में गोल्ड क्लोराइड को तनु (dilute) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में विलयित कर लेते हैं। विलयन में अशुद्ध स्वर्ण के धनाग्र और शुद्ध स्वर्ण के ऋणाग्र के बीच विद्युत्‌ प्रवाह करने पर अशुद्ध स्वर्ण विलयित हो ऋणाग्र पर जम जाता है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/सोना" से प्राप्त