"तक्षशिला": अवतरणों में अंतर

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(१) '''[[उत्तरापथ]]''' - वर्तमान ग्रैण्ड ट्रंक रोड, जो गंधार को [[मगध]] से जोड़ता था,
 
(२) '''उत्तरपश्चिमी मार्ग''' - जो [[कापिश]] और [[पुष्कलावती]] आदि से होकर जाता था,
 
(३) '''[[सिन्धु नदी]] मार्ग''' - श्रीनगर, मानसेरा, हरिपुर घाटी से होते हुए उत्तर में [[रेशम मार्ग]] और दक्षिण में [[हिन्द महासागर]] तक जाता था।
 
== परिचय ==
[[चित्र:Taxila1.jpg|right|thumb|300px|तक्षशिला]]
यों तो गांधार की चर्चा [[ऋग्वेद]] से ही मिलती है{{fact}} किंतु तक्षशिला की जानकारी सर्वप्रथम [[वाल्मीकि]] [[रामायण]] से होती है। [[अयोध्या]] के राजा [[ताम|रामचंद्र]] की विजयों के उल्लेख के सिलसिले में हमें यह ज्ञात होता है कि उनके छोटे भाई [[भरत]] ने अपने नाना केकयराज अश्वपति के आमंत्रण और उनकी सहायता से गंधर्वो के देश (गांधार) को जीता और अपने दो पुत्रों को वहाँ का शासक नियुक्त किया। गंधर्व देश [[सिंधु नदी]] के दोनों किनारे, स्थित था (सिंधोरुभयत: पार्श्वे देश: परमशोभन:, वाल्मिकि रामायण, सप्तम, 100-11) और उसके दानों ओर भरत के तक्ष और पुष्कल नामक दोनों पुत्रों ने तक्षशिला और पुष्करावती नामक अपनी-अपनी राजधानियाँ बसाई। ([[रघुवंश]] पंद्रहवाँ, 88-9; [[वाल्मीकि रामायण]], सप्तम, 101.10-11; [[वायुपुराण]], 88.190, महा0[[महाभारत]], प्रथम 3.22)। तक्षशिला सिंधु के पूर्वी तट पर थी। उन रघुवंशी क्षत्रियों के वंशजों ने तक्षशिला पर कितने दिनों तक शासन किया, यह बता सकना कठिन है। [[महाभारत]] युद्ध के बाद [[परीक्षित]] के वंशजों ने कुछ पीढ़ियों तक वहाँ अधिकार बनाए रखा और [[जनमेजय]] ने अपना [[नागयज्ञ]] वहीं किया था (महा0, स्वर्गारोहण पर्व, अध्याय 5)। [[गौतम बुद्ध]] के समय गांधार के राजा [[पुक्कुसाति]] ने मगधराज [[विंबिसार]] के यहाँ अपना दूतमंडल भेजा था। छठी शती ई0 पूर्व फारस के शासक कुरुष ने सिंधु प्रदेशों पर आक्रमण किया और बाद में भी उसके कुछ उत्तराधिकारियों ने उसकी नकल की। लगता है, तक्षशिला उनके कब्जे में चली गई और लगभग 200 वर्षों तक उसपर फारस का अधिपत्य रहा। [[मकदूनिया]] के आक्रमणकारी विजेता [[सिकंदर]] के समय की तक्षशिला की चर्चा करते हुए स्ट्रैबो ने लिखा है (हैमिल्टन और फाकनर का अंग्रेजी अनुवाद, तृतीय, पृष्ट 90) कि वह एक बड़ा नगर था, अच्छी विधियों से शासित था, घनी आबादीवाला था और उपजाऊ भूमि से युक्त था। वहाँ का शासक था बैसिलियस अथवा टैक्सिलिज। उसने सिकंदर से उपहारों के साथ भेंट कर मित्रता कर ली। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र भी, जिसका नाम [[आम्भि|आंभी]] था, सिकंदर का मित्र बना रहा, किंतु थोड़े ही दिनों पश्चात् [[चंद्रगुप्त मौर्य]] ने उत्तरी पश्चिमी सीमाक्षेत्रों से सिकंदर के सिपहसालारों को मारकर निकाल दिया और तक्षशिला पर उसका अधिकार हो गया। वह उसके उत्तरापथ प्रांत की राजधानी हो गई और मौर्य राजकुमार मत्रियों की सहायता से वहाँ शासन करने लगे। उसक पुत्र [[बिंदुसार]], पौत्र सुसीम और पपौत्र कुणाल वहाँ बारी-बारी से प्रांतीय शासक नियुक्त किए गये। [[दिव्यावदान]] से ज्ञात होता है कि वहॉँ मत्रियों के अत्याचार के कारण कभी कभी विद्रोह भी होते रहे और [[अशोक महान|अशोक]] (सुसीम के प्रशासकत्व के समय) तथा [[कुणाल]] ([[अशोक]] के राजा होते) उन विद्रोहों को दबाने के लिये भेजे गए। मौर्य साम्राज्य की अवनति के दिनों में यूनानी बारिव्त्रयों के आक्रमण होने लगे और उनका उस पर अधिकार हो गया तथा दिमित्र (डेमेट्रियस) और यूक्रेटाइंड्स ने वहाँ शासन किया। फिर पहली शताब्दी ईसवी पूर्व में सीथियों और पहली शती ईसवी में शकों ने बारी बारी से उसमर अधिकर किया। [[कनिष्क]] और उसके निकट के वंशजों का उस पर अवश्य अधिकार था। तक्षशिला का उसके बाद का इतिहास कुछ अंधकारपूर्ण है। पाँचवीं शताब्दी में [[हूंण|हूणों]] ने भारत पर जो ध्वंसक आक्रमण किये, उनमें तक्षशिला नगर भी ध्वस्त हो गया। वास्तव में तक्षशिला के विद्याकेंद्र का ह्रास [[शक|शकों]] और उनके यूची उत्तराधिकारियों के समय से ही प्रारभं हो गया था। [[गुप्त राजवंश|गुप्तों]] के समय जब [[फाह्यान]] वहाँ गया तो उसे वहाँ विद्या के प्रचार का कोई विशेष चिह्न नहीं प्राप्त हो सका था। वह उसे चो-श-शिलो कहता है। (लेगी फाह्यान की यात्राएँ अंग्रजी में, पृष्ठ 32) हूणों के आक्रमण के पश्चात् भारत आने वाले दूसरे चीनी यात्री युवान च्वांड् (सातवीं शताब्दी) को तो वहाँ की पुरानी श्री बिल्कुल ही हत मिली। उस समय वहाँ के बौद्ध भिक्षु दु:खी अवस्था में थे तथा प्राचीन बौद्ध विहार और मठ खंडहर हो चुके थे। असभ्य हूणों की दुर्दांत तलवारों ने [[भारतीय संस्कृति]] और विद्या के एक प्रमुख केंद्र को ढाह दिया था।
 
== उत्खनन (खुदाई) एवं पुरातत्व ==