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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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[[चित्र:Ahoa eta eztarria zenbakiekin.png|thumb|1. नासिका (नाक); 2. ओष्ठ (ओठ); 3. दन्त; 4. तालु; 5. ]]
जिस प्रकार से कोई [[शब्द]] बोला जाता है; या कोई भाषा बोली जाती है; या कोई व्यक्ति किसी शब्द को बोलता है; उसे उसका '''उच्चारण''' (pronunciation)" कहते हैं। [[भाषाविज्ञान]] में उच्चारण के शास्त्रीय अध्ययन को [[ध्वनिविज्ञान]] की संज्ञा दी जाती है। भाषा के उच्चारण की ओर तभी ध्यान जाता है जब उसमें कोई असाधारणता होती है, जैसे
*(क) बच्चों का हकलाकर या अशुद्ध बोलना,
*(ख) विदेशी भाषा को ठीक न बोल सकना,
*(ग) अपनी मातृभाषा के प्रभाव के कारण साहित्यिक भाषा के बोलने की शैली का प्रभावित होना, आदि।
विभिन्न लोग या विभिन्न समुदाय एक ही शब्द को अलग-अलग तरीके से बोलते हैं। किसी शब्द को बोलने का ढ़ंग कई कारकों पर निर्भर करता है। इन कारकों में प्रमुख हैं - किस क्षेत्र में व्यक्ति रहकर बड़ा हुआ है; व्यक्ति में कोई वाक्-विकार है या नहीं; व्यक्ति का सामाजिक वर्ग; व्यक्ति की [[शिक्षा]], आदि
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उच्चारण के अंतर्गत प्रधानतया तीन बातें आती हैं :
*(१) ध्वनियों, विशेषतया स्वरों में ह्रस्व दीर्घ का भेद,
*२) बलात्मक स्वराघात, ▼
*(३) गीतात्मक स्वराघात। ▼
▲२) बलात्मक स्वराघात,
▲(३) गीतात्मक स्वराघात।
इन्हीं के अंतर से किसी व्यक्ति या वर्ग के उच्चारण में अंतर आ जाता है। कभी-कभी ध्वनियों के उच्चारणस्थान में भी कुछ भेद पाए जाते हैं।
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उच्चारण के अध्ययन का व्यावहारिक उपयोग साधारणतया तीन क्षेत्रों में किया जाता है :
*(१) मातृभाषा अथवा विदेशी भाषा के अध्ययन अध्यापन के लिए,
*(२) लिपिहीन भाषाओं को लिखने के निमित्त वर्णमाला निश्चित करने के लिए,
*(
यद्यपि संसार की भिन्न-भिन्न भाषाओं के उच्चारण में समानता का अंश अधिक पाया जाता है, तथापि साथ ही प्रत्येक भाषा के उच्चारण में कुछ विशेषताएँ भी मिलती हैं, जैसे भारतीय भाषाओं की मूर्धन्य ध्वनियाँ ट् ठ् ड् आदि, फारसी अरबी की अनेक संघर्षी ध्वनियाँ जेसे ख़ ग़्ा ज़ आदि, हिंदी की बोलियों में ठेठ ब्रजभाषा के उच्चारण में अर्धविवृत स्वर ऐं, ओं, [[भोजपुरी]] में शब्दों के उच्चारण में अंत्य स्वराघात।
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