"उच्चारण स्थान": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 2:
[[चित्र:Tract.svg|300px|thumb|right| मानव द्वारा ध्वनि उत्पन्न करने वाले प्रमुख अंगों का विवरण]]
[[चित्र:Places of articulation.svg|right|300px|thumb|1. बाह्योष्ठ्य (exo-labial) <br /> 2. अन्तःओष्ठ्य (endo-labial)<br />3. दन्त्य (dental) <br />4. वर्त्स्य (alveolar) <br />5. post-[[alveolar]]<br />6. prä-[[palatal]]<br /> 7. तालव्य (palatal)<br />8. मृदुतालव्य (velar)<br />9. अलिजिह्वीय (uvular)<br />10. ग्रसनी से (pharyngal) <br />11. श्वासद्वारीय (glottal)<br />12. उपजिह्वीय (epiglottal)<br />13. जिह्वामूलीय (Radical)<br />14. पश्चपृष्ठीय (postero-dorsal)<br />15. अग्रपृष्ठीय (antero-dorsal) <br />16. जिह्वापाग्रीय (laminal)<br />17. जिह्वाग्रीय (apical)<br />18. sub-laminal]]
[[स्वनविज्ञान]] के सन्दर्भ में, [[मुख गुहा]] के उन 'लगभग अचल' स्थानों को '''उच्चारण बुन्दु''' (articulation point या place of articulation) कहते हैं जिनको 'चल वस्तुएँ' छूकर जब ध्वनि मार्ग में बाधा डालती हैं तो उन व्यंजनों का उच्चारण होता है। उत्पन्न व्यंजन की विशिष्ट प्रकृति मुख्यतः तीन बातों पर निर्भर करती है- उच्चारण स्थान, उच्चारण विधि और स्वनन (फोनेशन)। मुख गुहा में 'अचल उच्चारक' मुख्यतः मुखगुहा की छत का कोई भाग होता है जबकि 'चल उच्चारक' मुख्यतः जिह्वा, नीचे वाला ओठ, तथा श्वासद्वार (ग्लोटिस) हैं।
[[श्रेणी:भाषाविज्ञान]]
|