"पुष्टिमार्ग": अवतरणों में अंतर

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पुष्टि मार्ग में भक्ति की भी तीन प्रकार की अवधारणाएँ हैं- प्रवाह पुष्टि भक्ति, मर्यादा पुष्टि भक्ति और शुद्ध पुष्टि भक्ति। ‘प्रवाह पुष्टि भक्ति’ के अन्तर्गत जन्म मरण के चक्र में बँधा भक्त ईश्वर का स्मरण करता हुआ क्रमिक मोक्ष प्राप्त करता है। ‘मर्यादा पुष्टि भक्ति’ के अन्तर्गत भक्त शास्त्रों से ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान की ओर उन्मुख होता है और मोक्ष की ओर बढ़ता है। ‘शुद्ध पुष्टि भक्ति’ में भक्त स्वयं को पूर्णतया भगवान की शरण में समर्पित कर देता है। यहाँ भगवान अपने बच्चे की तरह भक्त का पालन करते हैं। भगवान के चरणों में पूर्णतया समर्पित भक्त भगवान के स्नेह का भाजन बनता है। शुद्ध पुष्टि भक्त की मुक्ति सबसे शुद्ध, सरल और सुगम होती है। भगवान की शरण मे आते ही भक्त के सारे दुःख दूर हो जाते हैं। पुष्टि मार्गी भक्ति को माधुर्य भक्ति, प्रेमाभक्ति या रागानुगा भक्ति कहते हैं। इस भक्ति में शृंगार के स्वरूप का आध्यात्मिक रूपांतर होता है। यहाँ भगवान कृष्ण भक्त के एकमात्र अवलंबन होते हैं, जबकि जीव और गोपियाँ आश्रय। भक्ति के विकास के तीन चरण होते हैं-प्रेम, आसक्ति और व्यसन। व्यसन इस प्रेम की चरम अवस्था है, जहाँ पहुँचकर भक्त को भगवान के सिवा कुछ नज़र नहीं आता।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[गोस्वामी गोकुलनाथ]]
*[[चौरासी वैष्णवन की वार्ता]]
 
[[श्रेणी:भक्ति]]