"सितार": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1:
[[चित्रFile:0407Sitar 207full.jpg|thumb|right|300px|सितार वादन]]'''सितार''' भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग [[शास्त्रीय संगीत]] से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है। इसके इतिहास के बारे में अनेक मत हैं किंतु अपनी पुस्तक भारतीय संगीत वाद्य में प्रसिद्ध विचित्र वीणा वादक डॉ लालमणि मिश्र ने इसे प्राचीन त्रितंत्री वीणा का विकसित रूप सिद्ध किया। सितार पूर्ण भारतीय वाद्य है क्योंकि इसमें भारतीय वाद्योँ की तीनों विशेषताएं हैं। तंत्री या तारों के अलावा इसमें घुड़च, तरब के तार तथा सारिकाएँ होती हैं। कहा जाता है कि भारतीय तन्त्री वाद्यों का सर्वाधिक विकसित रूप है।
 
आधुनिक काल में सितार के तीन घराने अथवा शैलियाँ इस के वैविध्य को प्रकाशित करते रहे हैं। बाबा अलाउद्दीन खाँ द्वारा दी गयी तन्त्रकारी शैली जिसे पण्डित [[रविशंकर]] [[निखिल बैनर्जी]] ने अपनाया दरअसल सेनी घराने की शैली का परिष्कार थी। अपने बाबा द्वारा स्थापित इमदादखानी शैली को मधुरता और कर्णप्रियता से पुष्ट किया उस्ताद [[विलायत खाँ]] ने। पूर्ण रूप से तन्त्री वाद्यों हेतु ही वादन शैली '''मिश्रबानी''' का निर्माण डॉ [[लालमणि मिश्र]] ने किया तथा सैंकडों रागों में हजारों बन्दिशों का निर्माण किया। ऐसी ३०० बन्दिशों का संग्रह वर्ष २००७ में प्रकाशित हुआ है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/सितार" से प्राप्त