"अनंत": अवतरणों में अंतर

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[[कैंटर]] (1845-1918) ने अनंत की समस्या को दूसरे ढंग से व्यक्त किया है। कैंटरीय संख्याएँ, जो अनंत और सांत के विपरीत होने के कारण कभी-कभी अतीत (ट्रैंसफाइनाइट) संख्याएँ कही जाती हैं, [[ज्यामिति]] और [[सीमासिद्धांत]] में प्रचलित अनंत की परिभाषा से भिन्न प्रकार की हैं। कैंटर ने लघुतम अतीत गणनात्मक संख्या (ट्रैंसफाइनाइट कार्डिनल नंबर) (एक, दो तीन इत्यादि कार्डिनल संख्याएँ हैं; प्रथम, द्वितीय, तृतीय इत्यादि आर्डिनल संख्याएँ हैं।) अ0 (अकार शून्य, अलिफ-जीरो) की व्याख्या प्राकृतिक संख्याओं 1, 2, 3... के संघ ([[सेट]]) की गणनात्मक संख्या से की है।
 
==प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में अनन्त==
लगता है कि भारतीयों को अनन्त की संकल्पना [[वैदिक काल]] से ही थी। वे अनन्त के मूलभूत गुणों के परिचित थे तथा इसके लिये कैइ शब्दों का प्रयोग किया गया है, यथा - अनन्त, पूर्णम् , अदिति, असंख्यत आदि। असंख्यत का उल्लेख [[यजुर्वेद]] में आया है।
 
[[ईशोपनिषद]] में यह आया है-
 
: ''ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।''
: ''पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥''
: ''ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥''
:: ॐ वह (परब्रह्म) पूर्ण है और यह (कार्यब्रह्म) भी पूर्ण है; क्योंकि पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है। तथा [प्रलयकाल मे] पूर्ण [कार्यब्रह्म]- का पूर्णत्व लेकर (अपने मे लीन करके) पूर्ण [परब्रह्म] ही बच रहता है। त्रिविध ताप की शांति हो।
 
यहाँ 'पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते' को यों समझा जाता है कि अनन्त से अनन्त घटाने पर भी अनन्त ही शेष रहता है।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/अनंत" से प्राप्त