"अनंत": अवतरणों में अंतर
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लगता है कि भारतीयों को अनन्त की संकल्पना [[वैदिक काल]] से ही थी। वे अनन्त के मूलभूत गुणों के परिचित थे तथा इसके लिये कैइ शब्दों का प्रयोग किया गया है, यथा - अनन्त, पूर्णम् , अदिति, असंख्यत आदि। असंख्यत का उल्लेख [[यजुर्वेद]] में आया है।
[[ईशावास्य उपनिषद|ईशोपनिषद]] में यह आया है-
: ''ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।''
: ''पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥''
: ''ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥''
यहाँ 'पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते' को यों समझा जाता है कि अनन्त से अनन्त घटाने पर भी अनन्त ही शेष रहता है।
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