"मास्ती वेंकटेश अयंगार": अवतरणों में अंतर

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==कार्य==
मास्तीजी उनके गुरु बी.एम. श्री से बहुत प्रभावित थे। जब श्रीजी ने कन्नड साहित्य के पुनरुत्थान करने के लिये बुलाया, मास्तीजी पूरी तरह से संचलन में शामिल हो गये, बाद में इस संचलन को ''नवोदय'' का नाम दिया गया, जिसका मतलब 'पुनर्जन्म' है। श्रिनिवास नामक उपनाम के नीचे उन्होने १९१० में अपने पहले क्षुद्र कहानी ''रंगन मदुवे'' को प्रकाशित किया, उनके आखिरी कथा ''मातुगारा रामन्ना'' सन १९८५ में प्र्काशित किया गया था।''केलवु सन्ना कथेगलु'' उनके सबसे स्मरणीय लेख था। वे सामाजिक, दार्शनिक और सौंदर्यात्मक विषयों पर अपने कविताओं को लिखा करते थे। मास्तीजी ने अनेक महत्त्वपूर्ण नाटको का अनुवाद किया, वे ''जीवना''<ref> नामक मैगजीन का संपादक सन १९४४ से १९६५ रहे। आवेशपूर्ण कवि होने के कारण उन्होने कुल मिलाके १२३ पुस्तक कन्नड भाषा में और १७ पुस्तक अंग्रेजी भाषा में, लगभग ७० वर्ष के अंदर रचित किया। ''सुबन्ना, शेशम्मा, चेन्नबसवनायका'' व ''चिक्कवीर राजेंद्रा'' <ref>http://www.deccanherald.com/content/493150/call-freedom-tiny-village.html </ref> नामक उपन्यासों का रचना की, आखिरी दो ऐतिहासिक रचनाओं थे।
कर्नाटका से वे पहले व्यक्ती रहे है, जिन्होने [[बसवन्ना बागेवाड़ी]] के वचन को अंग्रेजी में अनुवाद किया। ''चिक्कवीर राजेंद्रा'' कथा जिसके लिये मास्तीजी को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला, वो कोडगु के अंतिम राजा का कहानी है।