"विदेश मंत्रालय (भारत)": अवतरणों में अंतर

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[[सुषमा स्वराज|श्रीमती सुषमा स्वराज]] मई २०१४ से भारत की विदेश्मंत्री हैं।
 
नीति का अर्थ है तर्क पर आधारित कार्य, जो वर्तमान और भविष्य को प्रभावित करे। इसका उद्देश्य अपनी स्थिति को उत्तरोत्तर उन्नत बनाना होता है। इस कार्य की सफलतापूर्वक पूर्ति [[विदेश नीति]] पर ही निर्भर है। किसी देश की विदेश नीति को क्रियान्वित करने का उत्तरदायित्व उस देश के विदेश विभाग पर होता है। यह सरकार के महत्वपूर्ण विभागों में से एक विभाग होता है। इसी की योग्यता पर यह निर्भर करता है कि यह किस प्रकार देश के राष्ट्रीय हितों, सम्मान और प्रतिष्ठा को बनाये रखेगा। इसी के कार्य एक देश को शान्ति अथवा युद्ध के कार्य के मार्ग पर ले जाते हैं। इन्हीं के प्रयासों से देश की आवाज अन्तर्राष्ट्रीय जगत में सुनी जा सकती है। इसका एक गलत कदम देश को अन्धकार के गर्त में ले जा सकता है। विदेश नीति का प्रभाव विश्वव्यापी होता है।
 
==भारतीय विदेश मन्त्रालय का संगठन
स्वतन्त्रता पूर्व ब्रिटिश भारतीय सरकार का एक विदेश विभाग था। इसका सर्वप्रथम निर्माण [[वारन हेस्टिंग्स]] के काल में 1784 में किया गया था। 1842 तक यह गुप्त और राजनीतिक विभाग (Secret and Political Department) के नाम से जाना जाता था, बाद में इसे विदेश विभाग (Foreign Department) कहा जाने लगा। इसके तीन उप विभाग थे- विदेश, राजनीतिक और गृह। 1914 के पश्चात् यह विदेश और राजनीतिक विभाग (Foreign and Political Department) कहलाने लगा। 1935 के अधिनियम के परिणामस्वरूप बढ़े हुये कार्यों के कारण विदेश और राजनीतिक विभागों को अलग स्वतन्त्र विभागों में कर दिया गया। 1945 में इस विभाग को नवीन नाम दिया गया “विदेश विभाग और राष्ट्रमण्डलीय सम्बन्ध विभाग“। 1946 को अन्तरिम सरकार का कार्यभार संभालने पर नेहरू ने इस विभाग का निर्देशन अपने हाथों में लिया। मार्च 1949 में मन्त्रालय के इन दो विभागों को एक कर दिया गया तथा इसे '''विदेश मंत्रालय''' का नाम दिया गया, जिस नाम से यह आज भी जाना जाता है।
 
विदेश विभाग के मूल रूप से पांच कार्य माने गये हैं-
 
*(१) अपने देश के विदेशों के साथ सम्बन्ध,
*(२) अन्तर्राष्ट्रीय संधियों का क्रियान्वयन,
*(३) अपने देश के नागरिकों की सुरक्षा तथा विदेशों में राष्ट्रीय हितों की रक्षा,
*(४) अपने देश व पर देश के नागरिकों के आने जाने पर नियन्त्रण और,
*(५) व्यापार व वाणिज्य हितों की रक्षा।
 
इन कार्यों की पूर्ति के लिये विदेश विभाग सूचनायें एकत्रित करता है, उनका अध्ययन कर विदेश मन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल को परामर्श देता है। विदेश विभाग आर्थिक क्षेत्र में विभिन्न देशों के साथ सम्बन्ध, देश की सुरक्षा के लिये खतरों से बचाव का परामर्श तथा सांस्कृतिक और प्रचार कार्य में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
 
==विदेश मन्त्री==
किसी भी देश की नीति का निर्माण कौन करता है, यह निश्चित रूप से कहना अति कठिन है। तानाशाही देशों से भले ही यह सम्भव हो, परन्तु संसदात्मक शासन में यह कहना सहज रूप से सम्भव नहीं है। संसदीय शासन व्यवस्था में सिद्धान्तः मन्त्रिमण्डल यह कार्य करता है। इस व्यवस्था में यदि प्रधानमन्त्री प्रभावशाली व्यक्तित्व का हो, तो सभी नीति निर्माण कार्य वही करता है। यदि साथ ही [[विदेश नीति]] के निर्माण का कार्य विदेश मन्त्रालय करता
है, जिसका अध्यक्ष विदेश मन्त्री होता है। संसदीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था के आधार पर इसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री द्वारा बहुसंख्यक सत्तारूढ़ के किसी एक सदस्य में से होती है, जो मन्त्रिमण्डल तथा प्रधानमन्त्री के प्रति उत्तरदायी होता है। प्रधानमन्त्री के पश्चात् यह सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। इस पद की महत्ता के कारण ही प्रायः भारत में प्रधानमन्त्री विदेश विभाग के कार्य को औपचारिक अथवा अनौपचारिक रूप से अपने पास ही रखने का प्रयास करता है।
 
==इन्हें भी देखें==