"विदेश मंत्रालय (भारत)": अवतरणों में अंतर

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किसी भी देश की नीति का निर्माण कौन करता है, यह निश्चित रूप से कहना अति कठिन है। तानाशाही देशों से भले ही यह सम्भव हो, परन्तु संसदात्मक शासन में यह कहना सहज रूप से सम्भव नहीं है। संसदीय शासन व्यवस्था में सिद्धान्तः मन्त्रिमण्डल यह कार्य करता है। इस व्यवस्था में यदि प्रधानमन्त्री प्रभावशाली व्यक्तित्व का हो, तो सभी नीति निर्माण कार्य वही करता है। यदि साथ ही [[विदेश नीति]] के निर्माण का कार्य विदेश मन्त्रालय करता
है, जिसका अध्यक्ष विदेश मन्त्री होता है। संसदीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था के आधार पर इसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री द्वारा बहुसंख्यक सत्तारूढ़ के किसी एक सदस्य में से होती है, जो मन्त्रिमण्डल तथा प्रधानमन्त्री के प्रति उत्तरदायी होता है। प्रधानमन्त्री के पश्चात् यह सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। इस पद की महत्ता के कारण ही प्रायः भारत में प्रधानमन्त्री विदेश विभाग के कार्य को औपचारिक अथवा अनौपचारिक रूप से अपने पास ही रखने का प्रयास करता है।
 
संसदीय व्यवस्था के अनुरूप विदेश नीति निर्माण का कार्य मूलतः मन्त्रिमण्डल का उत्तरदायित्व है। विदेश मन्त्री, मन्त्रिमण्डल के विचारार्थ समस्या रखता है और जब मन्त्रिमण्डल उन पर निर्णय लेता है तो ये निर्णय संसद के विचारार्थ रखे जाते हैं। यहाँ इन पर खुला विचार-विमर्श होता है। संसद की स्वीकृति के पश्चात् ही विदेश विभाग इन्हें क्रियान्वित करता है, निर्देशन विदेश मन्त्री का ही रहता है। विदेशें के समक्ष वही अपने देश का कार्यकारी प्रतिनिधि होता है। उसी की योग्यता, कुशलता, व्यक्तिगत गुणों तथा विचारों के आधार पर देश का गौरव, सम्मान व प्रतिष्ठा बढ़ती है। इसी कारण उसकी नियुक्ति अथवा पद मुक्ति एक महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक घटना मानी जाती है। विदेश नीति के निर्माण, निर्णय प्रक्रिया तथा इसके क्रियान्वयन में उसका प्रमुख हाथ होता है। वास्तव में नीति क्रियान्यन का यह केन्द्र-बिन्दु होता है। किस देश के साथ कैसे सम्बन्ध हों, किसके साथ कौनसी सन्धि करनी है- व्यापारिक अथवा सांस्कृतिक, सैनिक अथवा राजनीतिक-आदि निर्णय वही लेता है। उसे निर्णय लेने से पूर्व कई बातों का ध्यान करना पड़ता है। उसके नीति सम्बन्धी निर्णय आर्थिक, सैनिक, भौगोलिक, राजनीतिक, गृह व अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों से आबद्ध रहते हैं। वह न तो पूर्णरूपेण आदर्शवादी और न ही अवसरवादी होता है। वह समय व परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेकर अधिकाधिक राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करता है। समय-समय पर आयोजित शिखर सम्मेलनों, संयुक्त राष्ट्र व राष्ट्रसंघ मण्डल के अधिवेशनों आदि में वही भाग लेता रहता है और अपने देश के प्रतिनिधि मण्डल को नेतृष्त्व प्रदान करता है। अपने विभाग का मार्गदर्शन तथा प्रशासनिक नियन्त्रण उसी के हाथों में होता है। विदेशों से आये प्रतिनिधि एवं शिष्ट मण्डलों अथवा अन्य अधिकारियों के साथ वार्तायें आदि भी वही करता है।
 
==उपमंत्री अथवा संयुक्त मन्त्री==
विदेश मन्त्री के कार्यभार को हल्का करने के लिये तथा उसकी सहायतार्थ एक राज्य मन्त्री उपमंत्री अथवा संयुक्त विदेश मन्त्री भी होता है। ये विदेश मन्त्रालय के कुछ भाग का कार्यभार संभालते हैं तथा विदेश मन्त्री को निणर्य लेने में परामर्श अथवा किसी विशेष विषय पर नोट तैयार कर नीति-निर्णय लेने में सहायता देते हैं।
 
==विदेश सचिव==
विदेश विभाग के राजनीतिक अध्यक्ष विदेश मन्त्री के अतिरिक्त इस विभाग का एक और विभागीय अध्यक्ष होता है, यह विभाग का सचिव होता है। रोजमर्रा के प्रशासकीय कार्य की हस्ताक्षर, मन्त्रालय के खर्चे का सही उपयोग इसी का उत्तरदायित्व होता है। सामान्यतः विदेश मन्त्री मोटे तौर पर नीति निर्णय आदेश देकर विसृत पूर्ति का कार्य विदेश सचिव पर ही छोड़ देते हैं। विदेश सचिव के सहायतार्थ अनेक संयुक्त सचिव व उप-सचिव होते हैं जो विभिन्न उप-विभागों के अध्यक्ष होते हैं।
 
==इन्हें भी देखें==