"जगन्नाथ पण्डितराज": अवतरणों में अंतर
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'''जगन्नाथ पण्डितराज''' (जन्म : १६वीं शती के अन्तिम चरण में -- मृत्यु : १७वीं शदी के तृतीय चरण में), उच्च कोटि के कवि, समालोचक, साहित्यशास्त्रकार तथा [[वैयाकरण]] थे। कवि के रूप में उनका स्थान उच्च काटि के उत्कृष्ट कवियों में [[कालिदास]] के अनंतर - कुछ विद्वान् रखते हैं। "[[रसगंगाधर]]"कार के रूप में उनके साहित्यशास्त्रीय पांडित्य और उक्त ग्रंथ का पंडितमंडली में बड़ा आदर है।
== जीवनी ==
पंडितराज जगन्नाथ वेल्लनाटीय कुलोद्भव तैलंग ब्राह्मण, गोदावरी जिलांतर्गत मुंगुडु ग्राम के निवासी थे। उनके उनके पिता का नाम "पेरुभट्ट" (पेरभट्ट) और माता का नाम लक्ष्मी था। पेरुभट्ट परम विद्वान् थे। उन्होंने ज्ञानेंद्र भिक्षु से "ब्रह्मविद्या", महेंद्र से [[न्यायशास्त्र|न्याय]] और [[वैशेषिक]], खंडदेव से "[[पूर्वमीमांसा]]" और शेषवीरेश्वर से महाभाष्य का अध्ययन किया था। वे अनेक विषयों के अति प्रौढ़ विद्वान् थे। पंडितराज ने अपने पिता से ही अधिकांश शास्त्रों का अध्ययन किया था। शेषवीरेश्वर जगन्नाथ के भी गुरु थे।
== किम्वदंतियां==
प्रसिद्धि के अनुसार जगन्नाथ, पहले जयपुर में एक विद्यालय के संस्थापक और अध्यापक थे। एक काजी को वाद-विवाद में परास्त करने के कीर्तिश्रवण से प्रभावित दिल्ली सम्राट् ने उन्हें बुलाकर अपना राजपंडित बनाया। "रसगंगाधर" के एक श्लोक में "नूरदीन" के उल्लेख से समझा जाता है नूरुद्दीन मुहम्मद "जहाँगीर" के शासन के अंतिम वर्षों में (17वीं शती के द्वितीय दशक में) वे दिल्ली आए और शाहजहाँ के राज्यकाल तथा [[दाराशिकोह]] के वध तक (1659 ई.) वे दिल्लीवल्लभों के पाणिपल्लव की छाया में रहे।
== साहित्यिक अवदान ==
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;स्तोत्र
*(क) अमृतलहरी (यमुनास्तोत्र),
*(ख) गंगालहरी (पीयूषलहरी - गंगतामृतलहरी), *(ग) करुणालहरी (विष्णुलहरी), *(घ) लक्ष्मीलहरी और *(ङ) सुधालहरी। ;प्रशस्तिकाव्य
*(क) आसफविलास,
*(ख) प्राणाभरण, और *(ग) जगदाभरण। ; शास्त्रीय रचनाएँ -
*(क) रसगंगाधर (अपूर्ण सहित्यशास्त्रीय ग्रंथ),
*(ख) चित्रमीमांसाखंडन (अप्पय दीक्षित की "चित्रमीमांसा" नामक अलंकारग्रंथ की खंडनात्मक आलोचना) (अपूर्ण), *(ग) काव्यप्रकाशटीका (मंमट के "काव्यप्रकाश" की टीका) और *(घ) प्रौढ़मनोरमाकुचमर्दन (भट्टोजि दीक्षित के "प्रौढ़मनोरमा" नामक व्याकरण के टीकाग्रंथ का खंडन)। इनके अतिरिक्त उनके गद्य ग्रंथ "यमुनावर्णन" का भी "[[रसगंगाधर]]" से संकेत मिलता है। "रसगंगाधर" नाम से सूचित होता है कि इस ग्रंथ में पाँच "आननों" (अध्यायों) की योजना रही होगी। परतु दो हो "आनन" मिलते हैं। "चित्रमीमांसाखंडन" भी अपूर्ण् है। "काव्यप्रकाशटीका" भी प्रकाशित होकर अब तक सामने नहीं आई।
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