"अनुष्टुप छंद": अवतरणों में अंतर

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इसी को श्लोक के रूप में इस प्रकार कहते हैं -
 
:श्लाके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम्। <br />
:द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥