"रसल की चायदानी": अवतरणों में अंतर
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'''रसल की चायदानी''', या '''आकाशीय चायदानी''', [[बर्ट्रैंड रसल]] (१८७२-१९७०) द्वारा गढ़ा गया एक उपमान है। इसका यह दरशाने के लिये प्रयोग किया जाता है की सबूत का बोझ उस व्यक्ति पर है जो वैज्ञानिक दृष्टि से झूठाया ना जा सकने वाला दावा कर रहा हो। इस उपमान का उपयोग विशेष रूप से धर्म के मामले में किया जाता है।<ref>Fritz Allhoff,Scott C. Lowe. The Philosophical Case Against Literal Truth: Russell's Teapot // Christmas - Philosophy for Everyone: Better Than a Lump of Coal. — John Wiley and Sons, 2010. — Т. 5. — P. 65-66. — 256 p. — (Philosophy for Everyone). — ISBN 9781444330908.</ref>
"क्या भगवान हैं?" नामक लेख
१९५८ मे रसल अपनी [[नास्तिकता]] के लिए इस उपमान को कारण बताते हैं: {{quote |text=मुझे खुद को [[अज्ञेयवाद|अज्ञेयवादी]] कहना चाहिए, पर मैं सभी व्यावहारिक रूपों से नास्तिक हूँ। मैं नहीं समझता कि ईसाई ईश्वर के होने कि संभावना ओलिंपस या वलहाला के देवताओं के होने से अधिक है। उदाहरण के रूप में: यह कोई नहीं सिद्ध कर सकता है कि चीनी मिट्टी से बनी एक चायदानी पृथ्वी और मंगल के बीच एक अंडाकार कक्षा में सूर्य की परिक्रमा नही कर रही है, पर कोई नहीं समझता है कि यह होने की संभावना है। मुझे लगता है कि ईसाई ईश्वर के होने की भी इतनी ही संभावना है। <ref name="garvey">{{Cite journal|first=Brian|last=Garvey|title=Absence of evidence, evidence of absence, and the atheist's teapot|journal=Ars Disputandi|date=२०१०|volume=१०|pages=९–२२|url=http://www.tandfonline.com/doi/pdf/10.1080/15665399.2010.10820011 |format=PDF}}</ref>}}
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