"भद्रबाहु": अवतरणों में अंतर
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{{जैन धर्म}}
'''भद्रबाहु''' सुप्रसिद्ध [[जैन धर्म|जैन]] आचार्य थे जो [[दिगंबर]] और श्वेतांबर दोनों संप्रदायों द्वारा अंतिम [[श्रुतकेवली]] माने जाते हैं। भद्रबाहु [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के गुरु थे। महावीर निर्वाण के लगभग १५० वर्ष पश्चात् (ईसवी सन् के पूर्व लगभग ३६७) उनका जन्म हुआ था। उन्होने [[उपसर्गहर स्रोत]] एवं
==परिचय==
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भद्रबाहु ने आचारांग, सूतकृतांग, सूर्यप्रज्ञप्ति, व्यवहार, कल्प (बृहत्कल्प) दशाश्रुतस्कंध, उत्तराध्ययन, आवश्यक, दशवैकाश्रिक और ऋषिभाषित नामक दस आगम ग्रंथों पर [[प्राकृत]] गाथाओं में निर्युक्तियों की भी रचना की है, लेकिन '''ये भद्रबाहु दूसरे हैं'''। इनका समय विक्रम की दूसरी शताब्दी बताया जाता है। भद्रबाहु ने उपसर्गहर स्त्रोत्र की भी रचना की है। [[मेरुतुंग]] के प्रबंधचिंतामणि में [[वराहमिहिर]] नाम के प्रबंध में वराहमिहिर को भद्रबाहु का ज्येष्ठ भ्राता कहा है। वरामिहिर [[ज्योतिष]]शास्त्र के बड़े विद्वान् थे, इन्होंने वाराहीसंहिता नाम के [[ज्योतिषशास्त्र]] की रचना की है। [[राजशेखर]] के प्रबन्धकोष में भी भद्राबाहु और वराहमिहिर का उल्लेख मिलता है।
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{{टिप्पणीसूची}}
== सन्दर्भ सूची ==
*{{cite book|last=Rice|first=B. Lewis|authorlink=B. Lewis Rice|title=Inscriptions at Sravana Belgola : a chief seat of the Jains|date=१८८९|publisher=Mysore Govt. Central Press|url=https://archive.org/details/inscriptionsatsr00rice|location=[[Bangalore]]}}
* जगदीशचंद्र जैन : प्राकृत साहित्य का इतिहास।
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