"सूक्ष्ममापी": अवतरणों में अंतर

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प्रारंभिक सूक्ष्ममापी दूरियों के मापन में व्यवहृत होते थे। स्थितिकोण (position angle) और दूरियों को मापने के लिए सूक्ष्मदर्शी का घूर्णन इस प्रकार हो कि तारों की चंक्रमण दिशा किसी स्थिति कोण में हो, इसके लिए विलियम हर्शेल (William Herschel) ने सर्वप्रथम १७७९ ई. में एक युक्ति का आविष्कार किया। उद्दिगंशक आरोपण (altazimuth mounting) के कारण सूक्ष्ममापी का उपयोग सरल हो गया जब से विषुवतीय प्रकार का आरोपण (equatorial type of mounting) सामान्य हो गया है, तब से सूक्ष्मदर्शी का उपयोग सुविधापूर्ण हो गया है।
 
h== फाइलर सूक्ष्ममापी ==
युग्म तारों (double stars) के मापन में प्रयुक्त होने वाले आधुनिक फाइलर सूक्ष्ममापी (Filar micrometer) में दो पेंच रहते हैं और दो संकेतकों के स्थान पर समांतर तार या मकड़ी का जाला रहता है। एक पेंच, सूक्ष्ममापी के संपूर्ण बक्स को जिसमें दोनों तार रहते हैं, चलाता है, जबकि सम्मुख पेंच एक तार को दूसरे के सापेक्ष चलाता है। तारों (wires) के संपात का पाठ्‌यांक प्राप्त किया जाता है। जब सूक्ष्ममापी के संपूर्ण बक्स को चलाकर स्थिर तार को एक तारे पर लगाते हैं, तब दूसरा तारा सर्पी तार से द्विभाजित होता है। दूसरे पेंच से संलग्न सूक्ष्ममापी का पाठ्‌यांक दूरी जानने के लिए पर्याप्त होता है। आजकल अधिकांश मापन फोटोग्राफी से होता है और अब फाइलर सूक्ष्ममापी का उपयोग स्थितिकोणों तथा अंतरालों के मापने में ही हो रहा है।