"पुनर्जन्म": अवतरणों में अंतर
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[[आत्मा]] के अमरत्व तथा शरीर और आत्मा के द्वैत की स्थापना से यह शंका होती है कि मरण के बाद आत्मा की गति क्या है। अमर होने से वह शरीर के साथ ही नष्ट हो तो नहीं सकती। तब निश्चय ही अशरीर होकर वह कहीं रहती होगी। पर आत्माएँ एक ही अवस्था में रहती होंगी, यह नहीं स्थापित किया जा सकता, क्योंकि सबके कर्म एक से नहीं होते। अतएव [[ऋग्वेद]]कालीन भारतीय चिंतन में आत्मा के अमरत्व, शरीरात्मक द्वैत तया कर्मसिद्धांत की उपर्युक्त प्रेरणा से यह निर्णय हुआ कि मनुष्य के मरण के बाद, कर्मों के शुभाशुभ के अनुसार, स्वर्ग या नरक प्राप्त होता है।
धन्यवाद
[[श्रेणी:भारतीय दर्शन]]
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