"अहिंसा": अवतरणों में अंतर

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इसी प्रकार [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] और [[ईसाई धर्म|ईसाई धर्मों]] में भी अहिंसा की बड़ी महिमा है। वैदिक हिंसात्मक यज्ञों का उपनिषत्कालीन मनीषियों ने विरोध कर जिस परंपरा का आरंभ किया था उसी परंपरा की पराकाष्ठा जैन और बौद्ध धर्मों ने की। जैन अहिंसा सैद्धांतिक दृष्टि से सारे धर्मों की अपेक्षा असाधारण थी। बौद्ध अहिंसा नि:संदेह आस्था में जैन धर्म के समान महत्व की न थी, पर उसका प्रभाव भी संसार पर प्रभूत पड़ा। उसी का यह परिणाम था कि रक्त और लूट के नाम पर दौड़ पड़नेवाली मध्य एशिया की विकराल जातियाँ प्रेम और दया की मूर्ति बन गईं। बौद्ध धर्म के प्रभाव से ही ईसाई भी अहिंसा के प्रति विशेष आकृष्ट हुए; ईसा ने जो आत्मोत्सर्ग किया वह प्रेम और अहिंसा का ही उदाहरण था। उन्होंने अपने हत्यारों तक की सद्गति के लिए भगवान से प्रार्थना की और अपने अनुयायियों से स्पष्ट कहा है कि यदि कोई गाल पर प्रहार करे तो दूसरे को भी प्रहार स्वीकार करने के लिए आगे कर दो। यह हिंसा का प्रतिशोध की भावना नष्ट करने के लिए ही था। तोल्स्तोइ (टॉल्स्टॉय) और गांधी ईसा के इस अहिंसात्मक आचरण से बहुत प्रभावित हुए। गांधी ने तो जिस अहिंसा का प्रचार किया वह अत्यंत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने कहा कि उनका विरोध असत् से है, बुराई से नहीं। उनसे आवृत व्यक्ति सदा प्रेम का अधिकारी है, हिंसा का कभी नहीं। अपने आँदोलन के प्राय: चोटी पर होते भी चौराचौरी के हत्याकांड से विरक्त होकर उन्होंने आँदोलन बंद कर दिया था।
 
==इन्हें भी देखें==
* [[अपरिग्रह]]
* [[ब्रह्मचर्य ]]
* [[जैन धर्म]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==