"जैन धर्म में भगवान": अवतरणों में अंतर

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{{मुख्य|अरिहन्त}}
[[चित्र:Bharatha.jpg|thumb|भारत चक्रवर्ती भी अरिहन्त हुए]]
जिन्होंने सम्पूर्णचार घातिया कर्मों का क्षयकर कर दिया वह अरिहन्त कहलाते है।{{sfn|प्रमाणसागर|२००८|p=१४८}} समस्त कशायों (जैसे क्रोध, मान, माया, लोभ) को समाप्तनाश कर [[केवल ज्ञान]] प्राप्त करकरने लियावाला है वहव्यक्ति अरिहन्त कहलाते है। अरिहन्त दो प्रकार के होते है:
# '''सामान्य केवली'''- जो अपना कल्याण करते है।
# '''तीर्थंकर'''- २४ महापुरुष जो अन्य जीवों का मोक्ष मार्ग का उपदेश देते है।  {{साँचा:Sfn|Rankin|2013|p = 40}}
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== सिद्ध ==
[[चित्र:Siddha_Shila.svg|thumb|250px|[[जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान]] अनुसार सिद्धशिला]]
सभी अरिहंत अपने आयु कर्म के अंत होने पर सिद्ध बन जाते है। ''सिद्ध भगवानबन एक ''ऐसीचुकी आत्मा के लिए प्रयोग किया जाता है जो जीवन मरण के चक्र से मुक्त होती है। अपने सभी कर्मों का शयक्षय कर चुके, सिद्ध भगवान अष्टग़ुणो से युक्त होते है।{{sfn|प्रमाणसागर|२००८|p=१४८}} वह सिद्धशिला जो लोक के सबसे ऊपर है, वहाँ विराजते है। 
सभी जीवों का लक्ष्य सिद्ध बनाना होना चाहिए। अनंत आत्माएँ सिद्ध बन चुकी है। जैन धर्म के अनुसार भगवंता किसी का एकाधिकार नहीं है और सही दृष्टि, ज्ञान और चरित्र से कोई भी सिद्ध भगवानपाया बनजा सकता है। सिद्ध बनने के पश्चात, आत्मा लोक के किसी कार्य में दख़ल नहीं देती।
 
== पूजा ==