"मधुमक्खी पालन": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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* बाजार में शहद और मोम की भारी मांग है।
==इतिहास==
वैज्ञानिक तरीके से विधिवत मधुमक्खी पालन का काम अठारहवीं सदी के अंत में ही शुरू हुआ। इसके पूर्व जंगलों से पारंपरिक ढंग से ही शहद एकत्र किया जाता था। पूरी दुनिया में तरीका लगभग एक जैसा ही था जिसमें धुआं करके, मधुमक्खियां भगा कर लोग मौन छत्तों को उसके स्थान से तोड़ कर फिर उसे निचोड़ कर शहद निकालते थे। जंगलों में हमारे देश में अभी भी ऐसे ही शहद निकाली जाती है।
मधुमक्खी पालन का आधुनिक वैज्ञानिक तरीका पष्चिम की देन है। यह निम्न चरणों में विकसित हुआ :
* सन् 1789 में [[स्विटजरलैंड]] के फ्रांसिस ह्यूबर नामक व्यक्ति ने पहले-पहल लकड़ी की पेटी (मौनगृह) में मधुमक्खी पालने का प्रयास किया। इसके अंदर उसने लकड़ी के फ्रेम बनाए जो किताब के पन्नों की तरह एक-दूसरे से जुड़े थे।
*सन् 1851 में अमेरिका निवासी पादरी लैंगस्ट्राथ ने पता लगाया कि मधुमक्खियां अपने छत्तों के बीच 8 मिलिमीटर की जगह छोड़ती हैं। इसी आधार पर उन्होंने एक दूसरे से मुक्त फ्रेम बनाए जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बना सकें।
* सन् 1857 में मेहरिंग ने मोमी छत्ताधार बनाया। यह मधुमक्खी मोम की बनी सीट होती है जिस पर छत्ते की कोठरियों की नाप के उभार बने होते हैं जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बनाती हैं।
*सन् 1865 में ऑस्ट्रिया के मेजर डी. हुरस्का ने मधु-निष्कासन यंत्र बनाया। अब इस मशीन में शहद से भरे फ्रेम डाल कर उनकी शहद निकाली जाने लगी। इससे फ्रेम में लगे छत्ते एकदम सुरक्षित रहते हैं जिन्हें पुनः मौन पेटी में रख दिया जाता है।
*सन् 1882 में कौलिन ने रानी अवरोधक जाली का निर्माण किया जिससे बगछूट और घरछूट की समस्या का समाधान हो गया। क्योंकि इसके पूर्व मधुमक्खियां, रानी मधुमक्खी सहित भागने में सफल हो जाती थीं। लेकिन अब रानी का भागना संभव नहीं था।
== इन्हें भी देखें ==
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