"वाष्पक": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Zantingh Brander.JPG|right|thumb|300px|गैस बर्नर से चलने वाला उच्च क्षमता (धारिता) का वाष्पक]]
[[चित्र:Kociol parowy lokomobilowy typ Ln2 skansen kopalniatg 20070627.jpg|right|thumb|एक बहुत पुराना पोर्टेबल ब्वायलर]]
 
'''वाष्पक''' या ब्वायलर (Boiler) एक बन्द पात्र होता है जिसमें [[जल]] या कोई अन्य [[द्रव]] गरम किया जाता है। इसमें गरम करने (उबालने) से उत्पन्न [[वाष्प]] को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था भी होती है जिससे वाष्प को विभिन्न प्रक्रमों या गर्म करने के लिये उपयोग में लाया जा सके। इसकी [[डिजाइन]] इस प्रकार की होती है कि गर्म करने पर कम से कम उष्मा बर्बाद हो तथा यह वाष्प का दाब भी सहन कर सके।
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== इतिहास ==
[[चित्र:Kociol parowy lokomobilowy typ Ln2 skansen kopalniatg 20070627.jpg|right|thumb|एक बहुत पुराना पोर्टेबल ब्वायलर]]
[[यूरोप]] के इतिहास में बायलरों का उल्लेख [[यूनान]] और [[रोम]] के साम्राज्यों के समय से ही देखने में आ रहा है, लेकिन उनका आधुनिक रूप में विकास बहुत धीरे धीरे हुआ है। शक्ति उत्पादन करने के लिए वाष्प का उपयोग १९वीं शताब्दी से आरंभ हुआ, लेकिन जब ट्रेविथिक (Trivithick) ने उच्च दाब के वाष्प का उपयोग अपने इंजनों में किया, इससे पहले बॉयलर का कौन सा अंग कितना मजबूत और किस धातु का हो इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं गया था। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों तक जो लोग किसी भी काम के लिए बॉयलर बनाते थे, वे या तो अपने उपलब्ध साधनों और सुविधा के अनुसार, अथवा जहाँ उसे बैठाना है उस जगह के अनुसार, उसकी आकृति बना लेते थे। आरंभ में बॉयलर ताँबे की चादरों से और बाद में पिटवें लोहे से बनाने लगे।