"न्यूट्रिनो": अवतरणों में अंतर

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न्यूट्रिनो के गुण संक्षेप में निम्नलिखित हैं :
 
:(क) आवेशरहित
:(ख) न्यूनतम भार - लागर एवं मौफात ने सन्‌ १९५२ में भार का अनुमान लगाया और बतलाया कि न्यूट्रिनो का भार इलेक्ट्रान के भार के ०.०५ प्रतिशत से भी कम है।
 
:(ग) भ्रमि (स्पिन Spin) १/२ (1/p) है।
(ख) न्यूनतम भार - लागर एवं मौफात ने सन्‌ १९५२ में भार का अनुमान लगाया और बतलाया कि न्यूट्रिनो का भार इलेक्ट्रान के भार के ०.०५ प्रतिशत से भी कम है।
:(घ) [[फर्मी-डिराक सांख्यिकी]] (स्टाटिस्टिक्स statistics) का अनुसरण करता है।
 
:(ङ) द्विध्रुवाघूर्ण (डाइपोल मोमेंट dipole moments) यदि है, तो १०<sup>-७</sup> वोर मैगनेतान से भी कम है।
(ग) भ्रमि (स्पिन Spin) १/२ (1/p) है।
 
(घ) [[फर्मी-डिराक सांख्यिकी]] (स्टाटिस्टिक्स statistics) का अनुसरण करता है।
 
(ङ) द्विध्रुवाघूर्ण (डाइपोल मोमेंट dipole moments) यदि है, तो १०<sup>-७</sup> वोर मैगनेतान से भी कम है।
 
उन अभिक्रियाओं की, जिनसे बीटा किरणें मिलती है, जाँच करते समय यह देखा गया कि निकले हुए कणों का ऊर्जा वर्णक्रम (Spectrum) ऐल्फ़ा किरण के ऊर्जा वर्णक्रम से भिन्न है। ऐल्फ़ा किरणें पृथक्‌ रेखा वर्णक्रम के अनुसार मिलती हैं, पर बीटा किरणें उनसे पूर्णत: भिन्न प्रकार के संतत वर्णक्रम का अनुकरण करती हैं। रेडियम-ई (Radium E) के लिये प्राप्त बीटा किरण का ऊर्जा वर्णक्रम चित्र में दिखाया गया है। बीटा किरणों की ऊर्जा का शून्य से लेकर अधिकतम मान ई अ के बीच कोई भी मान हो सकता है। ऐसा ही संतत वर्णक्रम उन अभिक्रियाओं में भी मिलता है जिनसे पॉज़िट्रान प्राप्त होते हैं।
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जब एक नाभिक से बीटा किरण प्राप्त होती है, तब नाभिक के आवेश का इकाई द्वारा परिवर्तन होती है, तब नाभिक के आवेश का इकाई द्वारा परिवर्तन होता है, भार अपरिवर्तित रहता है। यदि एक इलेक्ट्रान प्राप्त हो, तो नाभिक के प्रोटान की संख्या में इकाई की वृद्धि होती है तथा क्लीबाणु इकाई द्वारा संख्या इकाई द्वारा कम हो जाती है। उसी भाँति यदि बीटा किरण अभिक्रिया में एक पॉजिट्रॉन प्राप्त हो तो प्रोटान संख्या इकाई द्वारा कम तथा क्लीबान संख्या में इकाई की वृद्धि होती है। इन बीटा रूपांतरों को निम्नलिखित ढंग से स्पष्ट किया जा सकता है:
 
:'''बीटा - उत्सर्जन''' : न्यूट्रान प्रोटान + इलेक्ट्रान + न्यूट्रिनो.........(क)
 
:'''बीटा + उत्सर्जन''' : प्रोटान न्यूट्रान + पॉज़िट्रान + न्यूट्रिनो..........(ख)
 
इन अभिक्रियाओं में न्यूट्रान को प्रोटान, इलेक्ट्रान एवं न्यूट्रिनो से बना हुआ नहीं माना गया है। बीटा-उत्सर्जन के समय, न्यूट्रान का तीन कणों में तत्क्षण परिवर्तन हो जाता है। इसी प्रकार का निवर्तन बीटा +उत्सर्जन में प्रोटान में हो जाता है।
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मेसॉन के अपक्षय की समस्याओं को हल करने के लिये भी न्यूट्रिनो परिकल्पना का प्रयोग किया गया। म्यू-मेसॉन (meson) जब एक इलेक्ट्रान में परिवर्तित होता है तब बीटा-किरण अभिक्रिया की भाँति, म्रमि तथा ऊर्जा स्थिरता के नियम खंडित हो जाते हैं। इन नियमों की सत्यता के लिये निम्नलिखित विधि बतलाई गई :
 
:म्यू-मेसॉन - बीटा कण + दो न्यूट्रिनो..............(ग)
 
उसी प्रकार ऐल्फ़ा-मेसॉन अपक्षय निम्नलिखित समीकरण द्वारा दिखलाया जा सकता है।
 
:ऐल्फा मेसान म्यू मेसॉन + न्यूट्रिनो..............(घ)
 
(ग) एवं (घ) समीकरणों के विरूद्ध कोई संपरिक्षीय साक्ष्य नहीं है
 
इस भाँति न्यूट्रिनो द्वारा बीटा किरण एवं मेसॉन के अपक्ष्य की समस्याओं का सामाधान हुआ है। इस कण के लिये सभी साक्ष्य अभी तक अप्रत्यक्ष ही हैं।
 
== इन्हें भी देखें==
* [[डार्क मैटर]]