"ब्रह्मचर्य": अवतरणों में अंतर

→‎योग: योग में ब्रह्मचर्य का महत्त्व
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== योग ==
[[योग]] में ब्रह्मचर्य का अर्थ अधिकतर [[यौन संयम]] समझा जाता है। [[यौन संयम]] का अर्थ अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग समझा जाता है, जैसे विवाहितों का एक-दूसरे के प्रति निष्ठावान रहना, या आध्यात्मिक आकांक्षी के लिये पूर्ण ब्रह्मचर्य।
 
योग के अंतर्गत ब्रह्मचर्य का अर्थ वीर्य का संरक्षण कर उससे प्राप्त शक्ति का ईश्वरीय अनुभव में प्रयोग करना है। वीर्य से अपार मानसिक तथा शारीरिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
जो योग मार्ग में लाभदायक है।
 
शक्ति ही जीवन का मूल है। शक्ति हीन मनुष्य कुछ नहीं कर सकता। वीर्य ही शरीर में ओज रूप में विचरण करता है। और शरीर को सुद्रढ़,आकर्षक,प्रभाव युक्त बनाता है।
 
एक व्यक्ति मंच पर भाषण सामान्य शैली में देता है परंतु वह अधिक प्रभावित करता है प्रभावशाली शैली युक्त भाषण बोलने वाले व्यक्ति से । यह ओज का ही कार्य हे जो चारो और फेलकर कार्य करता है। अतः सभी मानवीय शक्तियो का मूल यह वीर्य है।
 
याज्ञ्यवल्क्य सहिंता के अनुसार “तन,मन,वचन सर्वदा अवस्थाओ से मैथुन का त्याग ही वास्तविक ब्रह्मचर्य है।"
 
अतः योग साधनो को करते समाय वीर्यवान होना अति आवश्यक है। कुछ विशिष्ठ साधनो को करते समय मूल शक्ति ही होती है। और यही कुण्डलिनी शक्ति,सुष्मना नाडी तथा सातो चक्रों को जाग्रत करने में सहायक है। अतः ब्रह्मचर्य का योग में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।
 
== ब्रह्मचर्य और खानपान ==