"संघवाद": अवतरणों में अंतर

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प्रधानत: [[भारत का संविधान|भारत के संविधान]] में संघात्मक संविधान की सभी उपर्युक्त विशेषताएँ विद्यमान हैं। किंतु भारतीय संघात्मक संविधान में कुछ विशिष्ट प्राविधान है जिनका समावेश अन्य संविधानों के कार्यसंचालन से उत्पन्न कठिनाइयों को दृष्टिगत करके किया गया है।
 
उदाहरणार्थ, सबसे विशिष्ट तथ्य यह है कि भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी इसका निर्माण स्वतंत्र राष्ट्रों की किसी संविदा द्वारा नहीं हुआ है; बल्कि यह उन राज इकाइयों के मेल (यूनियन) से बना है जो परंतंत्र एकात्मक भारत के अंग के रूप में पहले से ही विद्यमान थे। दूसरी विशेषता यह है कि आपत्काल में [[भारतीय संविधान]] में एकात्मक संविधानों के अनुरूप केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए प्रावधान निहित हैं। तृतीय विशेषता यह है कि केवल एक नागरिकता (भारतीय नागरिकता) का ही समावेश किया गया है तथा एक ही संविधान केंद्र तथा राज्य दोनों ही सरकारों के कार्यसंचालन के लिए व्यवस्थाएँ प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त [[संविधान सभा]] के मतानुसार भारत एक शिशु गणतंत्र की अवस्था में है, अत: देश के तीव्र एवं सर्वतोमुखी विकास एवं उन्नति के लिए समय समय पर उपयुक्त प्रावधानों की आवश्यकता पड़ सकती है जिसके लिए संविधान संशोधन की तीन विभिन्न प्रक्रियाएँ दी गई हैं। केवल विशेष संघात्मक प्रावधानप्रावधानों के संशोधन के लिए ही राज्यों का मत आवश्यक है, बाकी संशोधन संसद् स्वयं कर सकती है। इस प्रकार संघात्मक संविधानों के विकास में भारतीय संविधान एक नई प्रवृत्ति, केंद्रीकरण, का सूत्रपात करता है।
ों के संशोधन के लिए ही राज्यों का मत आवश्यक है, बाकी संशोधन संसद् स्वयं कर सकती है। इस प्रकार संघात्मक संविधानों के विकास में भारतीय संविधान एक नई प्रवृत्ति, केंद्रीकरण, का सूत्रपात करता है।
 
==इन्हें भी देखें==