"मुहम्मद बिन तुग़लक़": अवतरणों में अंतर

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सिंहासन पर बैठने के बाद तुग़लक़ ने अमीरों एवं सरदारों को विभिन्न उपाधियाँ एवं पद प्रदान किया। उसने तातार ख़ाँ को 'बहराम ख़ाँ' की उपाधि, मलिक क़बूल को 'इमाद-उल-मुल्क' की उपाधि एवं 'वज़ीर-ए-मुमालिक' का पद दिया था, पर कालान्तर में उसे 'ख़ानेजहाँ' की उपाधि के साथ गुजरात का हाक़िम बनाया गया। उसने मलिक अरूयाज को ख्वाजा जहान की उपाधि के साथ ‘शहना-ए-इमारत’ का पद, मौलाना ग़यासुद्दीन को (सुल्तान का अध्यापक) 'कुतुलुग ख़ाँ' की उपाधि के साथ 'वकील-ए-दर' की पदवी, अपने चचेरे भाई फ़िरोज शाह तुग़लक़ को 'नायब बारबक' का पद प्रदान किया था।
 
Very Important..== गुणवान व्यक्ति ==
मुहम्मद बिन तुग़लक़ दिल्ली के सभी सुल्तानों में सर्वाधिक कुशाग्र, बुद्धि सम्पन्न, धर्म-निरेपक्ष, कला-प्रेमी एवं अनुभवी सेनापति था। वह अरबी भाषा एवं फ़ारसी भाषा का विद्धान तथा खगोलशास्त्र, दर्शन, गणित, चिकित्सा, विज्ञान, तर्कशास्त्र आदि में पारंगत था। अलाउद्दीन ख़िलजी की भाँति अपने शासन काल के प्रारम्भ में उसने, न तो ख़लीफ़ा से अपने पद की स्वीकृति ली और न उलेमा वर्ग का सहयोग लिया, यद्यपि बाद मे ऐसा करना पड़ा। उसने न्याय विभाग पर उलेमा वर्ग का एकाधिपत्य समाप्त किया। क़ाज़ी के जिस फैसले से वह संतुष्ट नहीं होता था, उसे बदल देता था। सर्वप्रथम मुहम्मद तुग़लक़ ने ही बिना किसी भेदभाव के योग्यता के आधार पर पदों का आवंटन किया। नस्ल और वर्ग-विभेद को समाप्त करके योग्यता के आधार पर अधिकारियों को नियुक्त करने की नीति अपनायी। वस्तुत: यह उस शासक का दुर्भाग्य था कि, उसकी योजनाएं सफलतापूर्वक क्रियान्वित नहीं हुई। जिसके कारण यह इतिहासकारों की आलोचना का पात्र बना।
 
Very Important == दिल्ली सल्तनत ==
मुहम्मद तुग़लक़ के सिंहासन पर बैठते समय दिल्ली सल्तनत कुल 23 प्रांतों में बँटा थी, जिनमें मुख्य थे - दिल्ली, देवगिरि, लाहौर, मुल्तान, सरमुती, गुजरात, अवध, कन्नौज, लखनौती, बिहार, मालवा, जाजनगर (उड़ीसा), द्वारसमुद्र आदि। कश्मीर एवं बलूचिस्तान दिल्ली सल्तनत में शामिल नहीं थे। दिल्ली सल्तनत की सीमा का सर्वाधिक विस्तार इसी के शासनकाल में हुआ था। परन्तु इसकी क्रूर नीति के कारण राज्य में विद्रोह आरम्भ हो गया। जिसके फलस्वरूप दक्षिण में नए स्वतंत्र राज्य की स्थापना हुई और ये क्षेत्र दिल्ली सल्तनत से अलग हो गए। बंगाल भी स्वतंत्र हो गया। राज्यारोहण के बाद मुहम्मद तुग़लक़ ने कुछ नवीन योजनाओं का निर्माण कर उन्हें क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया। जैसे -
* दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि (१३२६-२७ ई॰)