"आभीर": अवतरणों में अंतर
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सर्वप्रथम [[पतंजलि]] के [[महाभाष्य]] में अभीरों का उल्लेख मिलता है। [[महाभारत]] में [[शूद्र|शूद्रों]] के साथ आभीरों का उल्लेख है। विनशन नामक स्थान में ये जातियाँ निवास करती थीं, जहाँ [[राजस्थान]] के रेगिस्तान में [[सरस्वती नदी]] विलुप्त हो गई है। दूसरे ग्रंथों में आभीरों को अपरांत का निवासी बताया गया है जो भारत का पश्चिमी अथवा [[कोंकण]] का उत्तरी हिस्सा माना जाता है। पेरिप्लस और तोलेमी के अनुसार [[सिंधु नदी]] की निचली घाटी और [[काठियावाड़]] के बीच के प्रदेश को आभीर देश माना गया है।
आभीरों को म्लेच्छ देश में निवास करने के कारण अन्य स्थानीय आदिम जातियों के साथ म्लेच्छों की कोटि में रखा गया था
आभीरों का उल्लेख अनेक शिलालेखों में पाया जाता है। शक राजाओं की सेनाओं में ये लोग [[सेनापति]] के पद पर नियुक्त थे। आभीर राजा [[ईश्वरसेन]] का उल्लेख [[नासिक]] के एक [[शिलालेख]] में मिलता है। ईस्वी सन् की चौथी शताब्दी तक अभीरों का राज्य रहा। अंततोगत्वा कुछ अभीर राजपूत जाति में अंतर्मुक्त हुये व कुछ अहीर कहलाए, जिन्हें राजपूतों सा ही योद्धा माना गया।<ref>[https://books.google.co.in/books?id=XcBEAQAAIAAJ&dq=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF&focus=searchwithinvolume&q=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+ An̐dhere_ke_juganū] रांगेय राघव कृत, Publisher-Śabdakāra, 1974, Original from the University of California</ref>
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