"पुद्गल": अवतरणों में अंतर

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<blockquote>दूरयंति गलंति च</blockquote>
इसका संस्कृत एवं पाकृत में अर्थ हैं - "जो उत्पन्न होता हैं और गल जाता हैं"। आंशिक रूप से अंग्रेजी में पुद्गल को '''मैटर''' कहा जा सकता हैं, पर पाश्चात्य [[विज्ञान]] और [[जैन दर्शन]] में अणु की परिभाषा में भेद हैं, जिससे पुद्गल का भी मैटर कहा जाना संदिग्ध हैं।
 
==प्रकृति==
पुद्गल के पाँच गुण हैं - स्पर्श, दर्शन, रस, श्रवण और गंध। ततः, पुद्गल या तो छुआ जा सकता हैं या देखा जा सकता हैं या चखा जा सकता हैं या सुना जा सकता हैं या सूँघा जा सकता हैं। पुद्गल में इन में से एक या एक से अधिक गुण हो सकते हैं। पुद्गल का धर्म बनना और बिगड़ना हैं, अतः, पुद्गल को पूर्णतः नष्ट करना असंभव हैं। पुद्गल केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित हो सकता हैं। आत्मा और पुद्गल के मेल से, संसार चलायमान हैं।
 
==जैन दर्शन==
[[जैन दर्शन]] के अनुसार, पुद्गल एक [[अजीव]] [[तत्व]] हैं। वह चेतना रहित हैं। जब तक [[आत्मा]] पुद्गल से लिप्त हैं, तब तक वह [[संसार]] के जन्म-मरण के द्वंद्व में बंधी हुई हैं। पुद्गल से अलिप्त होने पर ही, आत्मा की [[मुक्ति]] संभव हैं।।
 
[[श्रेणी:भारतीय दर्शन]]