"मध्यकालीन केरल": अवतरणों में अंतर

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== मामान्कम ==
सामूतिरि साम्राज्य के विकास होने पर सामूतिरियों ने बेप्पूर, परप्पनाड, वेट्टत्तुनाड, कुरुम्ब्रनाड आदि पडोसी राज्यों को अपने अधीन कर लिया, लेकिन वल्लुवनाड के राजा (वल्लुवक्कोनातिरि) ने सामूतिरि के आधिपत्य को मान्यता नहीं दी । उन दिनों भारतप्पुष़ा नामक नदी के तट पर स्थित तिरुनावाया में आयोजित महोत्सव मामांकम (माघमकम्) के संरक्षक का पद वल्लुवनाट्ट राजा को ही प्राप्त था । इस पद का बडा राजनैतिक महत्व था, अतः इसे प्राप्त करने के लिए सामूतिरि ने वल्लुवनाड पर धावा बोल दिया । पन्नियूर और चोव्वरा नामक नंबूतिरि ग्रामों के बीच के प्रतिद्वन्द्व में सामूतिरि ने चोव्वरा का साथ देकर पन्नियूर से युद्ध किया । वल्लुवक्कोनातिरि ने पन्नियूर का पक्ष लिया । सामूतिरि ने वल्लुवनाड को परास्त कर मामांकम् के संरक्षक का पद ले लिया । तत्पश्चात् सामूतिरि ने कोच्चि राज्य में चल रहे छोटे - बडों के विवाद में हस्तक्षेप किया । सन् 1498 में जब पुर्तगाली केरल पहुँचे तब सामूतिरि उत्तर केरल के सर्वाधिक शक्तिशाली राजा थे । सामूतिरि ने अपने सबसे बडे शत्रु कोलत्तनाड को भी अपना अनुयायी बना लिया था ।
 
==पुर्तगाली आगमन==
सन् 1498 में जब वास्को द गामा केरल पहुँचे तब सामूतिरि ने उनका हार्दिक स्वागत किया । सन् 1500 में दूसरा पुर्तगाली दल पहुँचा जिसके नेता थे पेद्रो आलवरस कब्राल । सामूतिरि ने उन्हें कोष़िक्कोड में व्यापार केन्द्र स्थापित करने की अनुमति दी । लेकिन पुर्तगलियों ने अरब व्यापारियों के एकाधिकार को समाप्त करने के उद्देश्य से उन पर चढाई की जिससे सामूतिरि पुर्तगलियों का विरोध करने लगे । प्रांतीय लोगों ने पुर्तगालियों का व्यापार केन्द्र ध्वस्त कर दिया तो कब्राल कोच्चि पहुँचा । कोच्चि में व्यापार सम्बन्ध सुदृढ करने के बाद कब्राल कण्णूर की ओर बढा तो कोष़िक्कोड की नाविक सेना ने कब्राल के दल पर आक्रमण किया ।
 
==पुर्तगाली जीत==
जब वास्को द गामा सन् 1502 में पुनः भारत पहुँचा तब उन्होंने सामूतिरि से भेंट की । किन्तु सामूतिरि के मन में पुर्तगालियों के प्रति जो वैरभाव था वह कुछ कम नहीं हुआ था । उन्होंने कोष़िक्कोड से अरब व्यापारियों को निकाल देने की गामा की माँग पर सामूतिरि ने ध्यान नहीं दिया । लेकिन कोच्चि का पुर्तगाली प्रेम सामूतिरि को खटकता था, इसलिए उन्होंने कोच्चि से पुर्तगालियों को राज्य से निकाल देने की माँग की । किन्तु कोच्चि के महाराजा ने सामूतिरि की माँग को अनसुना कर दिया । परिणाम स्वरूप सन् 1503 के मार्च को कोष़िक्कोड सेना ने कोच्चि की तरफ प्रस्थान किया । पुर्तगालियों से सहायता मिलने पर भी कोच्चि को हार का सामना करना पड़ा । कोच्चि के महाराजा ने भागकर इलंकुन्नप्पुष़ा मंदिर में शरण ली । सितम्बर में पुर्तगाली सेना सहायता के लिए पहुँच गयी । उसने कोष़िक्कोड को परास्त कर कोच्चि राजा को पुनः गद्दी पर बिठाया । सामूतिरि ने 1504 में पुनः आक्रमण किया किन्तु इस बार उसे पराजित होना पड़ा । सामूतिरि के अधीन कोडुंगल्लूर प्रान्त को पुर्तगलियों ने जीत लिया ।
 
मध्ययुगीन केरल में यदि कोई पुर्तगालियों का सामना कर सका तो वह मात्र सामुतिरि ही थे । पुर्तगालियों के अधीनस्थ प्रदेशों के प्रतिनिधि बनकर 1505 में फ्रान्सिस्को अलमेयदा पहुँचे । उन्होंने कण्णूर और कोच्चि में किले बनवाये । राजा कोलत्तिरि ने पुर्तगालियों से मित्रता की । परंतु सामूतिरि की प्रेरणा से कोलत्तिरि पुर्तगालियों के विरुद्ध हो गये । सामूतिरि के सैनिकों ने कई बार पुर्तगालियों का सामना किया ।
 
सामीतिरि की इस शक्ति के पीछे वह नाविक सेना थी जिसका नेतृत्व कुंजालि मरक्कार कर रहे थे । कुंजालि द्वारा किया गया युद्ध केरल के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है । सन् 1531 में वेट्टत्तुनाड के चालियम में पुर्तगालियों द्वारा बनवाया गया किला सामूतिरि के सामने कड़ी चुनौती बन गया । सन् 1540 में सामूतिरि और पुर्तगालियों के बीच अस्थाई रूप में युद्ध बन्द करने केलिए संधि हुई । लेकिन कोच्चि और वडक्कुमकूर के बीच हुए विवादों में पुर्तगालियों के हस्तक्षेप के कारण पुनः युद्ध (1550) छिड गया । जब सामूतिरि के मित्र वडक्कुमकूर महाराजा का वध किया गया तो सामूतिरि ने कोच्चि पर आक्रमण किया । पुर्तगाली सैनिकों ने कोच्चि का पक्ष लिया और सामूतिरि पर आक्रमण किया । 1555 में पुनः शान्ति कायम हुई लेकिन अगले वर्ष कोलत्तिरि ने सामूतिरि की सहायता से पुर्तगालियों के कण्णूर दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया ।
 
===शासन की वापसी===
सामूतिरि ने बीजापुर और अहमदनगर के सुल्तानों से मैत्री स्थापित कर सन् 1570 में पुर्तगालियों पर चढाई की । सन् 1571 में कोष़िक्कोड की सेना ने कुंजालियों के नेतृत्व में चालियम दुर्ग को अधीन कर लिया । नौ सैनिक युद्ध में कुंजालियों ने पुर्तगलियों को कई बार हराया । इस तरह वे अप्रतिम शक्तिशाली बन गये । पराजित पुर्तगलियों ने सन् 1571 में सामूतिरि से पोन्नानि में व्यापार गृह बनाने की अनुमति प्राप्त कर ली । कुंजालियों की बढ़ती शक्ति देखकर सामूतिरि असंतुष्ट हो गये थे । अतः सन् 1588 में सामूतिरि ने पुर्तगलियों को अपना केन्द्र स्थापित करने की अनुमति दी । सन् 1600 ईं में पुर्तगलियों के सहयोग से सामूतिरि ने कुंजालि के दुर्ग पर आक्रमण कर दिया । क्षमा दान देने के वचन के उपरान्त कुंजालि ने पराजय स्वीकार की । लेकिन सामूतिरि ने वचन का उल्लंघन कर कुंजालि को पुर्तगलियों के सुपुर्द कर दिया । पुर्तगलियों ने कुंजालि और उनके अनुयायियों को गोवा ले जाकर मार डाला । लेकिन कुंजालियों को खात्मा किए जाने पर भी केरल पर पुर्तगाली अधीशत्व समाप्त हो गया । डचों ने उन्हें सत्ता से बाहर कर अपनी प्रभुता स्थापित की । तदनन्तर डचों से सामूतिरियों की कई लडाइयाँ हुईं । 1755 ईं में सामूतिरि ने डचों के अधीनस्थ कोच्चि प्रदेश पर अधिकार जमा लिया ।
 
==टीपू सुल्तान==
यद्यपि अब तक कोष़िक्कोड राज्य अत्यंत शक्तिशाली हो गया था, किन्तु 18 वीं शताब्दी में मैसूर के आक्रमण से कोष़िक्कोड राज्य धराशायी हो गया । हैदर अली और पुत्र टीपू सुलतान के आक्रमण के सामने सामूतिरि टिक नहीं सके । 1766 में हैदर के सिपाहियों ने उत्तरी केरल में प्रवेश कर कटत्तनाट और कुरुम्बनाट को अपने अधीन कर लिया । जब मैसूर सैनिक कोष़िक्कोड की तरफ आगे बढ़े तो सामूतिरि ने परिजनों को पोन्नानि भेजकर आत्महत्या कर ली ।
 
इस तरह टीपू सुलतान के हाथ में कोष़िक्कोड आ गया । लेकिन जब टीपू को श्रीरंग पट्टणम् संधि (1792) के तहत ब्रिटिशों के सामने हथियार डालना पडा तब कोष़िक्कोड समेत संपूर्ण मलबार क्षेत्र ब्रिटिशों के अधीन हो गया । सन् 1956 तक मलबार ब्रिटिश निर्मित मद्रास राज्य का एक जिला मात्र था । जब केरल राज्य का गठन हुआ (सन् 1956 में) तब मलबार को केरल राज्य में मिलाया गया ।
 
== कोलत्तुनाड ==